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    अफगान शांति वार्ता की अड़चनों को कितना दूर कर पाए अमेरिकी विदेश मंत्री पोम्पियो?

    November 23, 2020

    कतर दौरे पर आए अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पियो ने शनिवार देर शाम यहां तालिबान और अफगानिस्तान सरकार के प्रतिनिधियों से बातचीत की। इसके ठीक पहले काबुल में जोरदार आतंकवादी हमले हुए। वहां दहशतगर्दों ने घनी आबादी वाले इलाकों पर कई रॉकेट दागे, जिनसे आठ लोगों की मौत हो गई। उनमें से एक रॉकेट काबुल स्थित ईरानी दूतावास की इमारत से टकराया, हालांकि वहां कोई हताहत नहीं हुआ। इन हमलों ने एक बार फिर अमेरिका की तरफ से शुरू की गई अफगानिस्तान शांति प्रक्रिया पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। इस बीच अपनी पूर्व घोषणा के मुताबिक अमेरिका अगले 15 जनवरी तक अफगानिस्तान से अपने ज्यादातर सैनिक वापस बुला लेने का इरादा जता चुका है।

    शनिवार को हुए हमलों की जिम्मेदारी इस्लामिक स्टेट (आईएस) ने ली है। जानकारों ने अंदाजा लगाया है कि इस दावे में दम हो सकता है, क्योंकि तालिबान शांति प्रक्रिया में शामिल है और उसने पोम्पियो से वार्ता से ठीक पहले हमले नहीं किए होंगे। फिर पहली बार पाकिस्तान को अफगानिस्तान की शांति प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका मिली है। तालिबान के सूत्र हमेशा ही पाकिस्तान की खुफिया और सुरक्षा एजेंसियों के हाथ में रहे है। शनिवार के हमलों के बाद पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने ‘ऐसी ताकतों से सावधान रहने की अपील की, जो अफगान शांति प्रक्रिया की अनदेखी करने पर तुले हैं।’

    सितंबर में समझौते पर दस्तखत होने के बाद अफगान सरकार और तालिबान के बीच वार्ता के बुनियादी ढांचे और उससे संबंधित मजहबी व्याख्याओं को लेकर मतभेद खड़े हो गए। मिली खबरों के मुताबिक शनिवार को पोम्पियो ने दोनों पक्षों से कहा कि वे बातचीत से अपने मतभेदों को हल करें। अल-जरीरा टीवी चैनल के मुताबिक मतभेद का एक बड़ा मसला यह है कि तालिबान अफगानिस्तान में सुन्नी मत की हनीफी धारा की न्याय प्रणाली लागू करना चाहता है। लेकिन अफगान सरकार का कहना कि ये न्याय प्रणाली लागू होने पर हाजरा समुदाय और अन्य अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव होगा। हाजरा समुदाय के ज्यादातर लोग शिया मत को मानते हैं।

    दोहा शांति वार्ताओं का रास्ता पिछले फरवरी में अमेरिका और तालिबान के बीच हुए एक समझौते से खुला था। उस समझौते में यह तय हुआ था कि अमेरिका अफगानिस्तान से अपनी सारी फौज इस शर्त पर वापस बुला लेगा कि तालिबान शांति वार्ता में शामिल हो। लेकिन फरवरी में हुए समझौते में शामिल होने के बावजूद तालिबान पर आतंकवादी हमले जारी रखने के आरोप लगे हैं। पाकिस्तानी मीडिया में छपे आंकड़ों के मुताबिक पिछले छह महीनों में तालिबान ने 53 फिदायीन हमले किए हैं और 1200 से ज्यादा विस्फोट किए हैं। इनमें 1210 नागरिकों की जान गई है और ढाई हजार से ज्यादा लोग घायल हुए हैं। अब डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन अपने आखिरी दिनों में है। इस बीच पोम्पियो ने शांति वार्ता में आई अड़चनों को दूर करने का प्रयास किया है। लेकिन अब सबकी निगाहें आगामी जो बाइडन प्रशासन पर होंगी। उसका अफगानिस्तान शांति प्रक्रिया और तालिबान के प्रति क्या रुख होता है, संभवतः उससे ही अफगानिस्तान का भविष्य तय होगा।  

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