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    E-Rupee ऑनलाइन पेमेंट से कितना है अलग; UPI, NEFT, RTGS के मुकाबले ये है फर्क

  • December 16, 2022

    नई दिल्ली: भारतीय रिजर्व बैंक यानी RBI ने हाल ही में अपने डिजिटल रूपी के पायलट को लॉन्च किया था. यह भारत की खुद की डिजिटल करेंसी है. सेंट्रल बैंक डिजिटल करेंसी (CBDC) एक लीगल टेंडर है, जिसे केंद्रीय बैंक डिजिटल फॉर्म में जारी करता है. डिजिटल रूपी साधारण से नोट या सिक्के की ही तरह है, जिसका हम रोजाना इस्तेमाल करते हैं. यह केवल डिजिटल फॉर्म में है. अब सवाल उठता है कि आरबीआई का रिटेल डिजिटल रूपी यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI), नेशनल इलेक्ट्रॉनिक्स फंड्स ट्रांसफर (NEFT) और रियल टाइम ग्रॉस सेटलमेंट (RTGS) से कैसे अलग है. आइए इसे समझ लेते हैं.

    ई-रूपी कानूनी टेंडर है, भुगतान का माध्यम नहीं
    ई-रूपी सॉवरेन करेंसी का इलेक्ट्रॉनिक फॉर्म है. जबकि, यूपीआई ऐप्लीकेशन्स जैसे गूगल पे, फोन पे, NEFT और RTGS फंड ट्रांसफर करने के माध्यम हैं.

    डिजिटल रूपी केवल करेंसी तक सीमित नहीं
    इस बात का ध्यान रखें कि ई-रूपी का इस्तेमाल केवल भुगतान तक ही सीमित नहीं है. क्योंकि ये करेंसी है. डिजिटल रूपी एक यूनिट ऑफ अकाउंट है. यह एक स्टोर ऑफ वैल्यू है. इसके अलावा ई-रूपी में वे सारे चीजें जोड़ी जा सकती हैं, जो करेंसी के लिए मौजूद हैं. इसे भविष्य में टेस्ट किया जा सकता है. ई-रूपी को भविष्य में पेमेंट ट्रांजैक्शन्स के अलावा दूसरी चीजों के लिए भी इस्तेमाल किया जा सकता है. जैसे कर्ज देना, ट्रेड फाइनेंस आदि.


    ई-रूपी में बैंक इंटरमीडिएट नहीं
    यूपीआई में डिजिटल ट्रांजैक्शन या NEFT या RTGS को बैंक के जरिए जाना होता है. जबकि, ई-रूपी के मामले में, पैसा एक वॉलेट से दूसरे में ट्रांसफर हो जाता है. कुछ दिनों पहले आरबीआई के गवर्नर शक्तिकांत दास ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा था कि किसी भी यूपीआई ट्रांजैक्शन में बैंक इंटरमीडिएट होता है. उन्होंने कहा था कि CBDC में, जैसे आप पेपर करेंसी के लिए बैंक जाते हैं, उसे निकालते हैं और अपने वॉलेट में रख लेते हैं. फिर दुकान पर जाकर वॉलेट से भुगतान करते हैं. इसी तरह, यहां भी आप डिजिटल करेंसी को निकालकर अपने वॉलेट में रख सकते हैं. वॉलेट यहां आपका मोबाइल फोन होगा. आप उससे भुगतान करेंगे. इसमें बैंक शामिल नहीं होगा.

    ई-रूपी में कुछ सीमा के बाद पैन की होगी जरूरत
    मौजूदा समय में, कैश ट्रांजैक्शन करने वाले व्यक्ति को एक सीमा के बाद अपना पैन सब्मिट करना होता है. यह नियम डिजिटल रूपी पर भी लागू होगी. पेपर करेंसी और डिजिटल करेंसी के बीच कोई अंतर नहीं है. इनकम टैक्स विभाग कैश पेमेंट के लिए कुछ सीमा के बाद पैन नंबर मांगता है. यही नियम सीबीडीसी के मामले में भी लागू होंगे. क्योंकि दोनों करेंसी ही हैं.

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