दुनिया में फिलहाल जो देश सबसे ज्यादा चर्चा में है, वो है चीन. कथित तौर पर चीन से ही कोरोना वायरस की शुरुआत हुई, जो लगभग दो सालों से दुनिया में तबाही मचा रहा है. कोई दूसरा देश होता तो अब तक भारी दबाव में होता, लेकिन चीन में इसे लेकर कोई अफरा-तफरी नहीं. इसकी वजह है वहां के राष्ट्रपति शी जिनपिंग (Xi Jinping). चीन समेत दुनिया की कुछ बेहद ताकतवर शख्सियतों में शुमार जिनपिंग का आज जन्मदिन है. 68 साल का ये नेता एक किसान से चीनी राजनीति का सबसे कद्दावर चेहरा कैसे बना, इसकी कहानी काफी दिलचस्प है.
इस तरह गुजरा जिनपिंग का बचपन
जिनपिंग के पिता शी झोंगशुअन एक क्रांतिकारी कम्युनिस्ट नेता थे. वहीं उनकी मां पेंग लियुआन की पहचान एक गायिका के तौर पर थी. वे क्रांति से जुड़े या फिर लोकगीत गाया करतीं. 15 जून साल 1953 में बीजिंग में जन्मे जिनपिंग ने जीवन की शुरुआत से दो एकदम अलग चीजें देखीं, खेती-किसानी और क्रांति.
स्कूल छोड़ना पड़ा था
साठ के दशक में चीन में सांस्कृतिक और औद्योगिक क्रांति का तूफान आया हुआ था. तब जिनपिंग की उम्र 15 साल थी. श्रमिक नेता उनके पिता ने उन्हें खेती करते हुए स्थानीय लोगों से जुड़ने के लिए लियांगजिआहे भेजा. इसके लिए उनका स्कूल छुड़वा दिया गया. वहां की पीली मिट्टी में काम करते हुए जिनपिंग ने जल्द ही स्थानीय जमीन पर अपनी जगह बना ली.
माओ के आदेश से छूटे युवाओं के स्कूल
वैसे बीजिंग में जन्मे जिनपिंग के लियांगजिआहे गांव जाने के बारे में कई बातें कही जाती हैं. जैसे बीबीसी की एक रिपोर्ट में जिक्र है कि तब माओ जेडांग ने देश के विकास के लिए आदेश दिया था कि युवा शहर छोड़कर गांवों में जाएं ताकि बदलाव के बीज वहां भी बोए जा सकें. साथ ही शहरी आरामतलब युवा किसानों और मजदूरों से मेहनत का सबक सीखें.
खुद को कहते हैं पीली मिट्टी का बेटा
देश के सर्वोच्च नेता बनने के बाद अक्सर जिनपिंग अपने उस दौर को याद करते हैं. वे कहते हैं कि उन्हें जो कुछ भी बनाया, वो लियांगजिआहे में बीते उसी समय ने बनाया.वे खुद को उस जगह की पीली मिट्टी का बेटा भी कहते सुने गए हैं.
ऐसे पहुंचे सक्रिय राजनीति में
गांवों से राजनीति की अ-ब-स सीखते हुए साल 1974 में वो आठ बार की नाकामी के बाद कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य बने थे. उन्होंने विभिन्न ग्रामीण और शहरी प्रांतों का प्रमुख बनाया गया. साल 2008 में वो देश के उप राष्ट्रपति बनाए गए. इसके बाद से जिनपिंग ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. साल 2012 में उन्होंने कम्युनिस्ट पार्टी की सबसे ताकतवर पोस्ट यानी जनरल सक्रेटरी का पद संभाला. साल 2013 में वो चीन के राष्ट्रपति बनाए गए और अब उनका बतौर राष्ट्रपति दूसरा कार्यकाल चल रहा है.
कोई राष्ट्रपति नहीं है चीन में
वैसे बता दें कि जिनपिंग आधिकारिक तौर पर चीन के राष्ट्रपति नहीं, बल्कि जनरल सेक्रेटरी हैं. साल 2020 में जब कोरोना से भड़के अमेरिका का चीन से तनाव खुलकर आया, तभी अमेरिका ने पहली बार इसपर बात की थी. उन्होंने कहा कि जिनपिंग चूंकि जनरल सेक्रेटरी ऑफ चाइनीज कम्युनिस्ट पार्टी (CCP) हैं, लिहाजा उन्हें राष्ट्रपति कहना बंद करना होगा.
अमेरिका ने जिनपिंग को कहा जनरल सेक्रेटरी
तब अमेरिका में रिपब्लिकन पार्टी के सांसद स्कॉट पेरी ने कहा था कि जिनपिंग को चीन की जनता से लोकतांत्रिक तरीके से नहीं चुना, लिहाजा वे राष्ट्रपति नहीं हैं. और बहुत हद तक ये सच भी है. फिलहाल जिनपिंग के पास तीन उपाधियां हैं. इनमें से एक स्टेट चेयरमैन का पद है. दूसरा पद केंद्रीय सैन्य आयोग के अध्यक्ष का है, वहीं तीसरी उपाधि कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव की है. इनमें में से कोई भी उपाधि चीन के राष्ट्रपति के समकक्ष नहीं है. यहां तक कि खुद चीन का मीडिया जिनपिंग को उनकी पार्टी के लीडर के नाम से संबोधित करता है. वहीं अमेरिका समेत अंग्रेजी बोलने वाले सारे देश यानी पूरा पश्चिम और साथ में एशियाई देश भी अब देखादेखी शी जिनपिंग को चीन का राष्ट्रपति कहने लगे हैं.
लोकल फूड खाते और गांवों की बोली बोलते हैं
विरोध जितना भी हो, फिलहाल जिनपिंग चीनी राष्ट्रपति के तौर पर ही पहचाने जाते हैं और बेहद ताकतवर हैं, इसमें भी कोई शक नहीं. वे अपने देश में खुद को किसान की संतान के तौर पर दिखाते हैं. जननेता की तरह वे चीन की गलियों में घूमते और लोकल फूड खाते हैं. यहां तक कि बात भी वे इसी तरह से करते हैं. वो अक्सर गांव के लोगों से मिलने जाते रहे हैं. वो खुद को कम्युनिस्ट पार्टी के रईस और भ्रष्ट नेताओं से अलग रखकर पेश करते हैं.
कई बार जिनपिंग की सख्त और आत्ममुग्ध छवि भी दिखी
वे स्कूल-कॉलेजों में अपने नाम पर सिलेबस शुरू कर चुके हैं ताकि हमेशा वे माओ के बाद चीन के दूसरे महान नेता के तौर पर याद रखे जाएं. यहां ये जानना भी जरूरी है कि खुद जिनपिंग को स्कूल की पढ़ाई भी माओ के चलते छोड़नी पड़ी थी. वे 13 साल के थे, जब बीजिंग के सारे स्कूल बंद हो गए थे और क्लचरल और औद्योगिक क्रांति की शुरुआत हुई थी. ये भी हो सकता है कि उस दौर की मुश्किलों का असर जिनपिंग की शख्सियत पर पड़ा हो और वे यहां तक पहुंच सके. अब वे सेंसरशिप करते हैं और युवाओं को चीन के लिए देशभक्त बनाने की कोशिश में हैं.
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