नई दिल्ली: 6 अप्रैल, 1980 भारतीय राजनीति के इतिहास (history of indian politics) का अहम दिन है. इस दिन भारतीय जनता पार्टी (Bharatiya Janata Party) की स्थापना हुई थी. दूसरे शब्दों में कहे इस दिन भारतीय सियासत (Indian Politics) में एक पौधा रोपा गया था, अब 45 सालों के बाद यह पौधा एक सियासी बरगद बन गया है. भले ही इस दिन भारतीय जनता पार्टी की एक राजनीतिक दल के रूप में नींव रखी गयी थी, लेकिन भाजपा की जड़ें भारतीय जनसंघ में हैं, जिसकी स्थापना श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने 1951 में की थी.
महात्मा गांधी की हत्या के बाद, श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने हिंदू महासभा से इस्तीफा देकर भारतीय जनसंघ की नींव रखी. इसके बाद, जनसंघ ने भारतीय राजनीति में धीरे-धीरे अपनी पहचान बनाई और 1977 में जनता पार्टी के गठन के बाद इसे इस पार्टी में विलय कर दिया गया. लेकिन जनता पार्टी आपसी प्रतिद्वंद्विता और सत्ता की राजनीति का शिकार हो गई. वर्चस्व की होड़ में जनसंघ के कार्यकर्ताओं के सामने दोहरी सदस्यता का सवाल खड़ा कर दिया गया. या तो जनसंघ के लोग जनता पार्टी छोड़ दें या फिर आरएसएस से अपना रिश्ता खत्म कर लें.
इसी मुद्दे पर जनसंघ के नेताओं ने जनता पार्टी छोड़ दी और 6 अप्रैल 1980 को पंच निष्ठाओं के आधार पर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का गठन किया. जनता पार्टी के भीतर संघर्षों के चलते 1979 में सरकार गिर गई और इसके बाद भाजपा के नेताओं ने 6 अप्रैल 1980 को मुंबई में भारतीय जनता पार्टी का पुनः गठन किया. यह तारीख इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि 6 अप्रैल 1930 को महात्मा गांधी ने नमक कानून तोड़ा था.
इंदिरा गांधी 1980 के लोकसभा उपचुनाव में पहले ही जीत चुकी थीं. जनता पार्टी के विभाजन के बाद, कांग्रेस से लड़ने के लिए गैर-कांग्रेसी दलों को एक साथ लाने के प्रयास फिर से शुरू हुए, जनसंघ के नेता, जो एक बार काटे जाने के बाद दो बार डरे हुए थे, बहुत सतर्क थे और उन्हें लगा कि वे फिर कभी ऐसा गठबंधन नहीं करेंगे जो उनकी पहचान को प्रभावित कर सके.
31 अक्टूबर 1984 को इंदिरा गांधी के एक निजी सुरक्षा गार्ड ने उनकी हत्या कर दी, जिसके कारण बड़े पैमाने पर सिख विरोधी दंगे भड़क उठे. जनसंघ और संघ कार्यकर्ताओं ने सक्रिय रूप से उन सभी प्रयासों को विफल करने की कोशिश की, जो हिंदुओं और सिखों के बीच दुश्मनी पैदा करते थे. तत्कालीन भारत के राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने 31 अक्टूबर को राजीव गांधी को प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाई. लोकसभा चुनाव घोषित हुए. चुनाव इंदिरा गांधी की सहानुभूति लहर में बह गए, यह भारतीय जनता पार्टी का पहला चुनाव था और वह केवल दो सीटें जीत सकी.
इस तरह से शुरुआती सफर काफी मुश्किलों के साथ शुरू हुआ. 1986 में पार्टी के अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी लाल कृष्ण आडवाणी को सौंपी गई. उस सयम राजीव गांधी काफी लोकप्रिय हो रहे थे, क्योंकि उनकी छवि ‘मिस्टर क्लीन’ की थी. ऐसा लग रहा था कि भाजपा राजनीति से दूर हो गई है, लेकिन ऐसा नहीं था. 1987 में बोफोर्स घोटाला सामने आया, जिसमें वरिष्ठ मंत्री वीपी सिंह ने बगावत कर दी. ‘मिस्टर क्लीन’ की छवि ध्वस्त हो गई.
शाहबानो मामले में उनकी अल्पसंख्यक वोट बैंक की राजनीति उजागर हुई. भाजपा कार्यकर्ताओं ने इस मुद्दे पर बड़े पैमाने पर जन जागरण कार्यक्रम आयोजित किए और समान नागरिक संहिता की फिर से मांग की गई. जनवरी 1988 में भाजपा ने राजीव गांधी के इस्तीफे और मध्यावधि चुनाव की घोषणा की मांग की. पूरे देश में सत्याग्रह हुए.
3 मार्च 1988 को लालकृष्ण आडवाणी पुनः पार्टी के अध्यक्ष चुने गए. अगस्त 1988 में राष्ट्रीय मोर्चा बना और एनटी रामाराव इसके अध्यक्ष तथा वीपी सिंह संयोजक बने. यहीं से जनता दल का जन्म हुआ. 25 सितम्बर 1989 को भाजपा और शिवसेना का गठबंधन बना. चुनाव परिणाम अपेक्षित रूप से ही आए. राजीव गांधी सरकार का बहुमत नहीं मिला.
1984 में भाजपा को दो सीटें मिली थीं, लेकिन अब उसकी सीटें बढ़कर 86 हो गई हैं. बोफोर्स मुद्दे के साथ-साथ भाजपा ने इन चुनावों में सबको न्याय, किसी का तुष्टिकरण नहीं के नारे पर ध्यान केंद्रित किया. लालकृष्ण आडवाणी पहली बार लोकसभा के लिए चुने गए. जून 1989 में पालमपुर (हिमाचल प्रदेश) में राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में श्री राम जन्मभूमि आंदोलन को समर्थन देने का निर्णय लिया गया. यह सांस्कृतिक राष्ट्रवाद का ज्वलंत मुद्दा था. यह छद्म धर्मनिरपेक्षता और हर धर्म के प्रति वास्तविक समान सम्मान के बीच संघर्ष था.
आडवाणी की राम रथ यात्रा 25 सितंबर को पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जयंती पर सोमनाथ से शुरू हुई थी और इसे 30 अक्टूबर को अयोध्या पहुंचकर कार सेवा में भाग लेना था. रथ यात्रा को लोगों का अभूतपूर्व समर्थन मिला. 23 अक्टूबर को रथ यात्रा को बिहार के समस्तीपुर में रोक दिया गया और आडवाणी को पांच सप्ताह तक वहां रोके रखा गया. 30 अक्टूबर को सभी सरकारी प्रतिबंधों को दरकिनार करते हुए कारसेवा की गई. चंद्रशेखर कांग्रेस के बाहरी समर्थन से प्रधानमंत्री बने और उन्होंने अयोध्या मुद्दे को सुलझाने के लिए, हालांकि ईमानदारी से, असफल प्रयास किए. राजीव गांधी ने सात महीने के भीतर अपनी सरकार से कांग्रेस का समर्थन वापस ले लिया.
जुलाई 1991 में हुए उत्तर प्रदेश राज्य विधानसभा चुनावों में भाजपा विजयी हुई. छद्म धर्मनिरपेक्षता पराजित हुई. कल्याण सिंह मुख्यमंत्री बने. लोकसभा चुनावों के दौरान राजीव गांधी की हत्या कर दी गई और कांग्रेस को सहानुभूति वोट मिले. भाजपा की सीटें 86 से बढ़कर 119 हो गईं. पीवी नरसिम्हा राव के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार बनी. राम मंदिर का मुद्दा हल नहीं हो सका और 6 दिसंबर 1992 की कार सेवा के दौरान कारसेवकों ने विवादित ढांचे को गिरा दिया. 1996 में पार्टी ने 161 सीटों के साथ संसद में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरकर अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में सरकार बनाई, हालांकि बहुमत नहीं होने के कारण यह सरकार केवल 13 दिनों तक चल पाई.
इसके बाद 1999 में भाजपा ने फिर से एनडीए गठबंधन के साथ 303 सीटें जीतीं और वाजपेयी के नेतृत्व में सरकार को पांच साल तक चलाने का मौका मिला. 2004 और 2009 में भाजपा को कम सीटें मिलीं, लेकिन 2014 में पार्टी ने 283 सीटों के साथ प्रचंड जीत हासिल की और नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में सरकार बनाई. 2019 में पार्टी ने 300 से ज्यादा सीटें जीतीं और एनडीए के साथ मिलकर 350 सीटों से अधिक पर जीत दर्ज की. अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण सहित कश्मीर में धारा 370 समाप्त करने जैसे कदम उठाए गये. 2024 में हुए लोकसभा चुनाव में एनडीए को 294 सीटों पर जीत के साथ फिर से बहुमत मिला और नरेंद्र मोदी तीसरी बार देश के प्रधानमंत्री बने हैं.
भाजपा की यह यात्रा न केवल पार्टी के विकास का प्रतीक है, बल्कि यह भारतीय राजनीति में एक गहरे बदलाव का भी संकेत देती है. यह सफर भाजपा के नेताओं जैसे अटल बिहारी वाजपेयी, लाल कृष्ण आडवाणी और नरेंद्र मोदी के संघर्ष और नेतृत्व की कहानी है, जिन्होंने पार्टी को इस मुकाम तक पहुंचाया.
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