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    ‘मराठी मानुस’ की बात कहते हुए कैसे हिंदू हृदय सम्राट बने बाला साहेब? जानें 56 साल में कितनी बदली शिवसेना

  • June 25, 2022


    नई दिल्ली। शिवसेना में बगावत से दो गुट बन गए हैं। एक उद्धव ठाकरे तो दूसरा एकनाथ शिंदे का गुट है। दोनों अपने आप को सच्चा शिवसैनिक और बाला साहेब ठाकरे का पक्का सारथी बता रहे हैं। एकनाथ शिंदे का दो दिन पहले एक बयान भी सामने आया था। इसमें उन्होंने कहा था, ‘मुझे लगातार बागी बताया जा रहा है जो बिल्कुल गलत है। हम लोग बाला साहेब ठाकरे के भक्त हैं शिवसैनिक हैं।’

    शिंदे ने एक ट्विट भी किया। इसमें उन्होंने लिखा, ‘हम बाला साहेब के पक्के शिवसैनिक हैं। सत्ता के लिए कभी धोखा नहीं दिया और न कभी देंगे।’ इस बयान पर उद्धव ठाकरे का जवाब भी आया। उन्होंने कहा, ‘जैसी शिवसेना बाल ठाकरे के समय थी, वैसी ही अब भी है।’

    कैसे हुई थी शिवसेना की शुरुआत?
    बात 19 जून 1966 की है। इसी दिन बाला साहेब ठाकरे ने अपनी नई राजनीतिक पार्टी शिवसेना की नींव रखी थी। शिवसेना के गठन से पहले बाल ठाकरे एक अंग्रेजी अखबार में कार्टूनिस्ट थे। उनके पिता ने मराठी बोलने वालों के लिए अलग राज्य की मांग को लेकर आंदोलन किया था। बाला साहेब ने भी बॉम्बे (अब मुंबई) में दूसरे राज्य के लोगों की बढ़ती संख्या को देखते हुए ‘मार्मिक’ नाम से अखबार शुरू किया था।


    अखबार में बाला साहेब भी इस विषय पर खूब लिखते थे। शिवसेना के गठन के समय बाला साहेब ठाकरे ने नारा दिया था, ‘अंशी टके समाजकरण, वीस टके राजकरण’। मतलब 80 प्रतिशत समाज और 20 फीसदी राजनीति। इसका कारण था। वह यह कि मुंबई में मराठियों की संख्या कहीं ज्यादा थी, लेकिन नौकरी, व्यापार में गुजरात और नौकरियों में दक्षिण भारतीयों का दबदबा था।

    तब बाला साहेब ने दावा किया था कि मराठियों की सारी नौकरी दक्षिण भारतीय लोग ले लेते हैं। इसके खिलाफ उन्होंने आंदोलन शुरू किया और ‘पुंगी बजाओ और लुंगी हटाओ’ का नारा दिया। यही वह दौर था जब शिवसेना ने देखते ही देखते पूरे महाराष्ट्र में मजबूत पहचान बना ली। बाला साहेब ठाकरे मराठी मानुस की बात करते। उस दौरान गैर मराठियों पर खूब हमले भी हुए।

    हालांकि, तब तक शिवसेना पूरे महाराष्ट्र की सियासत पर अपनी अलग छाप छोड़ चुकी थी। इसी के साथ-साथ शिवसेना ने अपनी विचारधारा में मराठी मानुस के साथ-साथ हिंदुत्व को भी जोड़ लिया। तब तक 80 और 90 का दौर शुरू हो चुका था। पूरे देश में राम मंदिर की सियासत पर महौल गर्म था। शिवसेना इसमें काफी सक्रिय थी।

    हिंदुत्व के सहारे राजनीति में बनाया नया मुकाम
    1987 में मुंबई के विलेपार्ले विधानसभा सीट के लिए हुए उप-चुनाव में पहली बार शिवसेना ने ‘गर्व से कहो हम हिंदू हैं’ का नारा दिया। हिंदुत्व के नाम पर वोट मांगने पर चुनाव आयोग ने ठाकरे से छह साल के लिए मतदान का अधिकार छीन लिया था। शिवसेना का ये पहला विधानसभा चुनाव था।

    1989 के लोकसभा चुनाव के पहले पहली बार भाजपा और शिवसेना के बीच गठबंधन हुआ। इसके बाद ये गठबंधन लंबे समय तक चला। 1990 के विधानसभा चुनाव में शिवसेना 183 सीटों पर लड़ी और 52 पर जीत हासिल की, वहीं भाजपा के 104 उम्मीदवारों में से 42 को जीत मिली। तब शिवसेना के मनोहर जोशी विपक्ष के नेता बने।

    इसके बाद 1995 में फिर से भाजपा-शिवसेना ने मिलकर चुनाव लड़ा। शिवसेना के 73, तो भाजपा के 65 प्रत्याशी जीतकर विधानसभा पहुंचे। दोनों के गठबंधन ने सरकार बनाई और शिवसेना के मनोहर जोशी मुख्यमंत्री, जबकि भाजपा के गोपीनाथ मुंडे उप-मुख्यमंत्री बने। 2004 के चुनाव में शिवसेना को 62 और भाजपा को 54 सीटों पर जीत मिली।


    फिर शिवसेना से आगे निकल गई भाजपा, साथ भी छूट गया
    आमतौर पर महाराष्ट्र में शिवसेना हमेशा से बड़ी पार्टी बनकर रही, जबकि भाजपा छोटी। लेकिन 2009 में इसके उलट हुआ। तब दोनों पार्टियों की सीटें कम हुईं, लेकिन भाजपा को पहली बार शिवसेना से ज्यादा सीटें मिलीं। भाजपा ने तब 46 सीटें और शिवसेना ने 45 सीटें जीतीं। 17 नवंबर 2012 को बाला साहेब ठाकरे का निधन हो गया।

    उद्धव ठाकरे ने शिवसेना की कमान संभाल ली थी। इसके बाद से शिवसेना और भाजपा के बीच दूरियां भी बढ़ती गईं। 2014 की बात है। जब 1989 के बाद पहली बार दोनों पार्टियां अलग हुईं। शिवसेना ने सभी 288 सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन शिवसेना को केवल 63 सीटों पर जीत मिली। वहीं, भाजपा के 122 उम्मीदवार जीतकर विधानसभा पहुंचे। परिणाम आने के बाद फिर से दोनों पार्टियों के बीच गठबंधन हुआ और भाजपा के देवेंद्र फड़णवीस मुख्यमंत्री बने।

    फिर आया 2019 तब लोकसभा चुनाव के लिए दोनों पार्टियों ने गठबंधन किया। भाजपा 25 तो शिवसेना 23 सीटों पर चुनाव लड़ी। भाजपा ने पूर्ण बहुमत हासिल की। तब शिवसेना के कोटे से एक सांसद को मंत्री बनाया गया। हालांकि, इसके कुछ दिनों बाद ही विधानसभा चुनाव हुए। भाजपा ने 105 और शिवसेना ने 56 सीटों पर जीत हासिल की। तब शिवसेना प्रमुख ने ढाई-ढाई साल सरकार का फॉर्मेट दिया।

    मतलब ढाई साल भाजपा और ढाई साल शिवसेना का मुख्यमंत्री रहेगा। हालांकि भाजपा ने ये ऑफर ठुकरा दिया और दोनों का गठबंधन फिर टूट गया। बाद में शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे ने कांग्रेस अध्यक्षा सोनिया गांधी और एनसीपी प्रमुख शरद पवार से बात करके गठबंधन कर लिया। उद्धव मुख्यमंत्री बन गए।

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