नई दिल्ली: कई देशों में कोरोना (corona) के कारण लगाए गए प्रतिबंधों में ढील दे दी गई है या इसे हटा दिया गया है. अब पूरी आजादी के साथ लोग कहीं भी जा सकते हैं. ऐसे में लोगों के मन में यह सवाल उठना लाजिमी है कि क्या कोरोना का खात्मा हो गया है. लोग इस तरह के कयास लगा ही रहे थे कि दुनिया के कई देशों में कोरोना ने एक बार फिर नए सिरे से अपना सिर उठाना शुरू कर दिया है. अब डेल्टाक्रॉन वेरिएंट (deltacron variant) का खतरा बढ़ने लगा है. इससे पहले पूरी दुनिया में ओमिक्रॉन (Omicron) ने कहर मचाया. गनीमत यह रहा कि ओमिक्रॉन अन्य वेरिएंट की तुलना में कम घातक रहा. अब माना जा रहा है कि नया वेरिएंट पहले से ज्यादा खतरनाक है. इसे डेल्टाक्रॉन (deltacron ) कहा जा रहा है. यह हाइब्रिड वेरिएंट (Hybrid Variant) है यानी इसमें डेल्टा (delta) और ओमिक्रॉन दोनों के कुछ अंश हैं.
फरवरी के मध्य में डेल्टाक्रॉन की पहचान हुई थी जब पेरिस के इंस्टीट्यूट पासटियूर के वैज्ञानिकों ने इसकी खोज की थी. इसके जीन सीक्वेंस को बताते हुए वैज्ञानिकों ने कहा था कि इसका सीक्वेंस पहले के वेरिएंट के सीक्वेंस से एकदम अलग है. पिछले साल तक ज्यादातर वेरिएंट का जेनेटिक सीक्वेंस डेल्टा वेरिएंट जैसा ही था लेकिन डेल्टाक्रॉन के अदरूनी संरचना में स्पाइक प्रोटीन बिल्कुल अलग था. कोरोनावायरस की बाहरी सतह पर उपर की ओर मुकुट की तरह एक संरचना होती है, इसे ही स्पाइक प्रोटीन कहा जाता है. इसी स्पाइक प्रोटीन के कारण किसी व्यक्ति में संक्रमण की शुरुआत होती है.
डेल्ट्रक्रॉन के 60 से ज्यादा सीक्वेंस
मार्च में ही अमेरिका में डेल्टाक्रॉन के हाइब्रिड सीक्वेंस का पता चला है. अब तक इसके 60 से ज्यादा सीक्वेंसेज अलग-अलग देशों में खोजे जा चुके हैं. अब सवाल यह है कि यह हाइब्रिड के रूप में बनता कैसे है. अगर एक ही कोशिका को दो अलग-अलग वायरस संक्रमित करते हैं तो इन दोनों के अंश एक साथ मिल जाते हैं. इसे रिकॉम्बीनेशन या पुनर्संयोजन कहते हैं. जब एक वायरस अपना जेनेटिक सीक्वेंस दूसरे वायरस के जेनेटिक सीक्वेंस के साथ साझा करता है तो यह अपनी ही कॉपी करने लगता है. वायरस अपनी प्रतिकृति बनाने में ऐसा करते रहता है. इसी प्रक्रिया को हाइब्रिड वेरिएंट कहते हैं.
ओमिक्रॉन पर ज्यादा देने की जरूरत
हालांकि वैज्ञानिकों को अभी डेल्टाक्रॉन के बारे में ज्यादा कुछ पता नहीं है. डेल्टा और ओमिक्रॉन दोनों अलग-अलग वेरिएंट हैं और दोनों का प्रभाव भी अलग-अलग होता है. दोनों वेरिएंट कोशिकाओं को अलग-अलग तरह से संक्रमित करते हैं और अलग-अलग तरह से इम्युनिटी से बच निकलते हैं. लेकिन हमें अभी तक डेल्टाक्रॉन के बारे में सही जानकारी नहीं है और अब तक हम यह भी नहीं जानते कि यह अन्य वेरिएंट से कितना अलग है. चूंकि यह आस-पास के कई देशों में पाया गया है, इसलिए संभावना है कि डेल्टाक्रॉन अभी आगे भी फैल सकता है. लेकिन फिलहाल यूरोप में ओमिक्रॉन का प्रभाव ज्यादा है, इसलिए अभी भी हमें ओमिक्रॉन पर ज्यादा ध्यान देने की आवश्यकता है.
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