– आर.के. सिन्हा
कोराना काल के बाद पहले चुनाव तो बिहार विधानसभा के लिये नवंबर-दिसंबर 2020 में ही हुए थे। उन चुनावों को आयोजित करने के बाद चुनाव आयोग ने अपनी पीठ भी थपथपाई थी। उसके बाद देश ने पश्चिम बंगाल विधानसभा के चुनाव भी देख लिए। वहां आठ चरणों में हुए चुनाव मार्च- अप्रैल 2021 में हुए थे। तब कोरोना की दूसरी लहर से देश जूझ रहा था। अब चुनाव आयोग ने पांच राज्यों गोवा, उत्तर प्रदेश, पंजाब, मणिपुर और उत्तराखंड विधान सभा चुनावों के कार्यक्रम की घोषणा भी कर दी है। इन चुनावों के बाद देश को 690 नए विधायक और लगभग बीस नए राज्य सभा सदस्य मिलेंगे। इन विधानसभा चुनावों की प्रक्रिया में लगभग दो महीने का वक्त लगेगा। इसमें साढ़े 18 करोड़ के आसपास मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग करेंगे। कुल मिलाकर बड़े स्तर पर होंगे ये विधानसभा चुनाव।
हालांकि आशंका थी कि कोरोना की तीसरी लहर के चलते चुनाव प्रक्रिया शायद टल जाएगी, पर हालात का सघन जायजा लेने के बाद चुनाव आयोग इस नतीजे पर पहुंचा है कि चुनाव संपन्न कराए जाएँगे। वैसे भी चुनाव टालना इतना आसान नहीं है। आचार संहिता लागू होते ही विभिन्न जिलों में प्रशासन ने विधानसभा क्षेत्र स्तर तक पोस्टर और होर्डिंग्स हटवाने का काम तेज कर दिया है। अब राजनीतिक पार्टियों के लिए कोरोना संक्रमण के बीच हर दरवाजे तक पहुंचना एक बड़ी चुनौती होगी। पंचायत, नगर निगम और विधानसभा चुनावों में तो उम्मीदवार लगभग घर-घर जाते रहे हैं। अब विधानसभा क्षेत्र में यह उम्मीद करना सही नहीं होगा। जब वैश्विक महामारी खत्म होने का नाम ही नहीं ले रही है तो चुनावों का चेहरा- मोहरा तो बदलेगा ही।
अब तो चुनाव इस तरह से कराना होगा ताकि महामारी का असर न के बराबर ही हो। ये जिम्मेदारी सिर्फ चुनाव आयोग की नहीं है कि वह चुनावों को सफलतापूर्वक तरीके से सम्पन्न करवा ले। इसके लिए राजनीतिक दलों के नेताओं से लेकर कार्यकर्ताओं को भी सक्रिय होना होगा। मतदाताओं को भी लोकतंत्र के पर्व को संपन्न करवाने की बाबत मतदान की आहुति तो देनी ही होगी।
खैर, सबको पता है कि चुनाव कार्यक्रम की घोषणा के साथ ही आदर्श चुनाव आचार संहिता भी लागू हो गई है। कोरोना की तीसरी लहर के डर और भय के बीच दो बातों से संतोष हो सकता है। पहला, जिन राज्यों में चुनाव हो रहा है वहां पर लगभग सबको कोरोना का कम से कम एक टीका लग चुका है। यह स्थिति तब नहीं थी जब बिहार या पश्चिम बंगाल में चुनाव हुए थे। पंजाब में टीकाकरण की रफ्तार धीमी अवश्य रही है। सबको पता है कि कोरोना से बचने का एक मात्र तरीका यही है कि इसका टीका जल्द लगवा लिया जाए। मास्क पहनना और सोशल डिस्टेंसिंग तो हैं ही।
दूसरी बात यह है कि इन चुनावों में सभी राजनीतिक दल अपने मतदाताओं के पास आभासी दुनिया के मार्फत भी पहुंचना होगा। वे वर्चुअल रैलियों पर ही ज्यादा जोर देंगे। इस तरह से भीड़ से बचा जा सकेगा। भारतीय जनता पार्टी इंटरनेट के विभिन्न माध्यमों पर काफी सशक्त है। ट्विटर, यूट्यूब, फेसबुक, इंस्टाग्राम पर उसके फालोवरों की संख्या बहुत बड़ी है जो लगातार बढ़ रही है । वाट्सएप ग्रुपों का भी उसका व्यापक संजाल है। ऐसे में वह जब चाहे वर्चुअल मोड में सभा कर सकती है।
बाकी दल भी सोशल मीडिया के महत्व को समझते हैं। चूंकि चुनाव लड़ने के लिए 40 लाख खर्च की सीमा तय हो चुकी है, ऐसे में विभिन्न पार्टियों के प्रत्याशियों को बहुत-सोच समझकर ही काम करना पड़ेगा, क्योंकि इस तकनीकी के युग में एक-एक पैसे का हिसाब रखना चुनाव आयोग के लिए मुश्किल काम नहीं है। हालांकि सभी राजनीतिक पार्टियां दागी नेताओं से दूरी बनाने की बात तो कह रही हैं, लेकिन हर पार्टी को जिताऊ प्रत्याशी की भी जरूरत है।
भारतीय जनता पार्टी उत्तर प्रदेश समेत सभी चार अन्य सूबों में किला फतेह करने की हर चंद कोशिश कर रही है। वह इस बाबत कसकर मेहनत भी कर रही है। फिलहाल वह अन्य दलों से मैदान में आगे नजर आ रही है। भाजपा ने विपक्ष के हाथ से लगभग सारे मुद्दे छीन लिए हैं। विभिन्न पार्टियों की चुनावी घोषणाओं के अलावा समग्रता में बात करें तो भाजपा जीवन को प्रभावित करने वाले लगभग सभी क्षेत्रों में कदम बढ़ा रही है। चाहे वह क्षेत्रीय समस्याओं के समाधान की बात हो अथवा विभिन्न जातियों, वर्गों को अपने पक्ष में करने की या फिर धार्मिक भावना को भुनाने की। पार्टी के तमाम बड़े नेता इस समय फील्ड में ही नजर आ रहे हैं।
समाजवादी पार्टी सिर्फ उत्तर प्रदेश में सीमित है। कांग्रेस उत्तर प्रदेश में चौथे नंबर की पार्टी बनने के लिए ही लड़ रही है। उसके लिए देश के इतने खास राज्य में अब कोई सम्मानजनक स्थान नहीं बचा है। हालांकि गांधी परिवार अपने को उत्तर प्रदेश वाला ही बताता है। आम आदमी पार्टी (आप) पंजाब और उत्तराखंड में नजर आ रही है। वह भी उत्तर प्रदेश में कहीं नहीं है। तो बहुत साफ है कि देश की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा सभी पांच राज्यों में अपनी सरकार बनाने की कोशिश में जुटेगी। हालांकि विभिन्न दल उसे चुनौती तो देंगे ही खासकर उत्तर प्रदेश में समाजवादी और उत्तराखंड और पंजाब में कांग्रेस और आप।
आगामी विधानसभा चुनाव में सारे देश को पंजाब के हालात पर नजर रखनी होगी। वहां लगातार स्थितियां प्रतिकूल बनी हुई हैं। किसान आंदोलन की आड़ में देश विरोधी तत्व खुलकर सामने आ रहे हैं। इन्हें पाकिस्तान में बैठे अपने आकाओं से हरसंभव खाद-पानी भी मिलता है। वहां कांग्रेस की सरकार है लेकिन कांग्रेस के भीतर टूट और क्लेश जारी है। भाजपा विरोधी शक्तियां भी सक्रिय हैं। भाजपा नेताओं को रैलियां निकालने में अवरोध झेलने पड़ रहे हैं।
पंजाब के नए पुलिस महानिदेशक और चुनाव आयोग को वहां पर निष्पक्ष चुनाव कराने होंगे। पंजाब देश का सीमावर्ती राज्य है। उसे राम भरोसे नहीं छोड़ा जा सकता। वहां हाल ही में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के काफिले को भी षड्यंत्रपूर्वक रोका गया था। यह सारे देश ने देखा था। देश की चाहत है कि पंजाब विधानसभा चुनाव के दौरान मतदाता देश विरोधी ताकतों को खारिज कर देंगे। सारे देश की यह भी कामना है कि पांच राज्यों के चुनावों के दौरान कोरोना का असर सामने न आए। उम्मीद भी है कि कोरोना के व्यापक स्तर पर हुए टीकाकरण के चलते देश अपने लोकतांत्रिक पर्व को सही से मना लेगा।
(लेखक वरिष्ठ संपादक, स्तंभकार और पूर्व सांसद हैं।)
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