नई दिल्ली। केंद्र ने बुधवार को सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष भगोड़े इस्लामी उपदेशक जाकिर नाइक द्वारा दायर याचिका की स्वीकार्यता पर सवाल उठाया। दरअसल, नाइक ने साल 2012 में गणपति उत्सव के दौरान उसके कथित विवादित बयानों पर विभिन्न राज्यों में दर्ज एफआईआर को एक साथ जोड़ने की मांग की है।
न्यायमूर्ति अभय एस ओका, न्यायमूर्ति अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पूछा कि भगोड़ा घोषित किया गया व्यक्ति संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत याचिका कैसे दायर करता है। उन्होंने कहा, ‘मुझे उसके वकील ने बताया कि मामला वापस ले रहे हैं। मगर हमारा काउंटर तैयार था।’
नाइक के वकील ने कहा कि उन्हें इस तरह का कोई निर्देश नहीं मिला है। याचिका में विभिन्न राज्यों में दर्ज करीब 43 मामलों को एक साथ जोड़ने का अनुरोध किया गया है। उन्होंने आगे कहा कि उनके मुवक्किल के खिलाफ छह प्राथमिकी लंबित हैं और वह इसे रद्द कराने के लिए उच्च न्यायालय का रुख करेंगे।
याचिका पर शीर्ष अदालत ने नाइक के वकील को निर्देश दिया कि वह हलफनामा दायर कर बताएं कि क्या वह मामले को आगे बढ़ाएंगे या इसे वापस लेंगे। मामले की अगली सुनवाई 23 अक्तूबर को होगी। बता दें, राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) भी कथित आतंकी गतिविधियों के लिए नाइक की जांच कर रही है।
नाइक कथित धन शोधन और नफरत भरे भाषणों के माध्यम से उग्रवाद को भड़काने के लिए भारत में वांछित है। वह 2016 में भारत से चला गया था। मलेशिया में महाथिर मोहम्मद के नेतृत्व वाली पिछली सरकार ने इस्लामी उपदेशक को अपने देश में स्थायी निवास की अनुमति दी थी। जायसवाल ने कहा कि मलेशियाई सरकार के समक्ष भारत का प्रत्यर्पण अनुरोध लंबित है। माना जाता है कि भारत ने अगस्त में मलेशियाई प्रधानमंत्री अनवर इब्राहिम की नई दिल्ली यात्रा के दौरान इस मुद्दे को उठाया था।
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