उज्जैन। पिछले 11 वर्षों से हाउसिंग बोर्ड किसी भी नई योजना को मूर्तरूप नहीं दे पाया है। अभी तक सिर्फ बकायादारों से पुरानी वसूली के दम पर ही विभाग की साख बचाई जा रही है। दो साल पहले गोयलाखुर्द में कब्जे से मुक्त कराई गई विभाग की जमीन पर आवासीय योजना बनाने का प्रोजेक्ट भी अटका पड़ा है। उल्लेखनीय है कि लगभग डेढ़ दशक पहले तक हाउसिंग बोर्ड द्वारा लगातार आवासीय प्रोजेक्ट के तहत कॉलोनियाँ बनाने और उनकी देख रेख करने का काम चलता रहा। उस दौरान हालत यह रहती थी कि तैयार की गई कॉलोनियों तथा विभाग की रिक्त पड़ी जमीन की निगरानी के लिए स्टाफ की कमी पड़ती थी परंतु पिछले 11 सालों से तो नए प्रोजेक्ट के नाम पर विभाग में एक भी काम नहीं किया है। जबकि हाउसिंग बोर्ड में अभी भृत्य से लेकर आयुक्त स्तर तक के 75 अधिकारी-कर्मचारी पदस्थ हैं।
पिछले एक दशक से नई आवासीय योजना विभाग द्वारा पूरी नहीं की जा सकी है। इस अवधि में केवल पूर्व में बनाए गए प्रोजेक्टों की बकाया वसूली के कारण ही विभाग की साख बचती रही है। इधर साल 2020 में इंदौर रोड स्थित गोयलाखुर्द में विभाग की करोड़ों की बेशकीमती जमीन को नगर निगम और जिला प्रशासन के सहयोग से कोर्ट के आदेश पर विभाग ने मुक्त कराया था। उस दौरान यहाँ 160 प्लाटों की रहवासी कॉलोनी बनाने के अलावा कमर्शियल निर्माण कार्य के लिए 60 करोड़ की योजना तैयार की गई थी। अधिकारियों ने रेरा में इसकी मंजूरी के लिए फाइल भी आगे बढ़ाई थी। विभाग के कार्यपालन यंत्री आर.सी. पंवार के मुताबिक इस प्रोजेक्ट की अभी तक रेरा से अनुमति नहीं मिली है। उल्लेखनीय है कि उज्जैन की तरह हाउसिंग बोर्ड के देवास और शाजापुर डिवीजन में भी इसी तरह के हालात रहे हैं। देवास में तो योजना के अभाव में कुछ साल पहले ऑफिस बंद करना पड़ा था तथा वहाँ के स्टाफ को भी उज्जैन डिवीजन के स्टाफ के साथ मर्ज किया गया था। उसके बाद से लेकर अब तक केवल पुरानी बकाया वसूली के दम पर ही अधिकारियों-कर्मचारियों का वेतन जुट पा रहा है। सूत्र बताते हैं कि वसूली भी अब ज्यादा शेष नहीं रह गई है, इस कारण विभाग के अधिकारियों-कर्मचारियों के वेतन पर हाउसिंग बोर्ड को हर महीने लगभग 5 लाख रुपए अपनी जेब से खर्च करने पड़ रहे हैं।
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