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    महापौर की दौड़ में माननीय भी कूदे

  • May 31, 2022

    • निकाय चुनाव को लेकर भाजपा और कांग्रेस बड़ी मुश्किल में फंसीं

    भोपाल। मध्यप्रदेश में होने वाले चुनावों को लेकर भाजपा सहित कांग्रेस भी बड़ी मुश्किल में फंस गई है। चुनावों को लेकर जहां एक ओर वैसे ही दोनों पार्टियों में तनाव बना हुआ था, वहीं अब खुद के विधायक ही इन दोनों पार्टियों के लिए बड़ी परेशानी का विषय बनते दिख रहे हैं। दरअसल प्रदेश में महापौर पद के लिए टिकटों की खींचतान बढ़ती जा रही है। सबसे अहम ये कि विधायकों का इस पद के लिए दबाव बढ़ रहा है। इसमें भाजपा संगठन फिलहाल विधायकों को प्रारंभिक तौर पर टिकट देने के पक्ष में नहीं है, लेकिन चार प्रमुख शहरों में से तीन शहरों में विधायकों की दावेदारी ज्यादा है। वहीं, कांग्रेस को विधायकों को टिकट देने में कोई ऐतराज नहीं है। हालांकि जयपुर चिंतन के तहत एक पद-एक व्यक्ति के फॉर्मूले से उलझन की स्थिति है। इसलिए इस मामले में भी आगे निर्णय पर पेंच है। दरअसल, विधायकी से ज्यादा महापौर पद को पसंद करने के पीेछे सीधे चुनाव में महापौर पद का जलवा है। पूरे नगर निगम का बजट पर महापौर का अधिकार रहता है। उस पर सियासी तौर पर भी भोपाल-इंदौर जैसे शहरों का महापौर विधायकों से ज्यादा रूतबा व वजनदारी रखता है। सीधे तौर पर महापौर जिले-निगम का प्रथम नागरिक हो जाता है।


    भाजपा में दावेदार विधायक
    महापौर पद के लिए भाजपा में विधायकों की दावेदारी का सबसे ज्यादा जोर भोपाल-इंदौर में हैं। ग्वालियर में भी समीकरण विधायकों के जरिए प्रभावित हो रहे हैं। भोपाल से कृष्णा गौर, इंदौर से सुदर्शन गुप्ता और रमेश मेंदोला की दावेदारी है। खनिज निगम के पूर्व अध्यक्ष गोविंद मालू भी दावेदारी कर रहे हैं। ग्वालियर में विधायकों से ज्यादा पूर्व मंत्रियों की दावेदारी है। यहां से पूर्व मंत्री माया सिंह टिकट की दावेदारी में हैं। जबलपुर में भाजपा विधायक अजय विश्रोई की भी महापौर पद के लिए दावेदारी उभरी है, लेकिन सत्ता-संगठन दोनों उन पर सहमत नहीं है।

    फॉर्मूले में उलझ गई कांग्रेस
    महापौर पद के लिए कांग्रेस इंदौर से संजय शुक्ल का नाम घोषित कर चुकी है। यह नाम जयपुर चिंतन के पहले से घोषित है। अब चिंतन के बाद एक पद-एक व्यक्ति का फॉर्मूला है। इस कारण एक ही पद पर कोई नेता रह सकेगा। इस लिहाज से कांग्रेस अब जबलपुर या ग्वायिलर में इस फॉर्मूले को आजमाने में झिझक रही है। ग्वालियर में कमलनाथ संगठन के ही चेहरे को टिकट देने के पक्ष में हैं। दूसरी ओर, जबलपुर में विधायक के तौर पर तरुण भनोत और विनय सक्सेना का नाम भी महापौर पद के लिए पार्टी में उभरा है।

    दोनों पार्टियों में आड़े आएंगे नए मापदंड
    भाजपा संगठन 50 साल से ज्यादा उम्र और विधायक-सांसद पद वाले नेता को टिकट देने के पक्ष में नहीं है। हालांकि अभी इस पर निर्णय नहीं हुआ है, लेकिन प्रारंभिक तौर पर पार्टी में इस पर चर्चा हुई है। साथ ही पार्टी को यही सुझाव भी निकाय चुनाव कमेटी की बैठकों के दौरान मिले हैं। भाजपा के पास विकल्प भी बहुत है, इस कारण वह विधायक-सांसदों से हटकर नई पीढ़ी को टिकट देने के पक्ष में है। अगले हफ्ते टिकट के मापदंड तय हो जाएंगे। दूसरी ओर कांग्रेस ने सर्वे करके जीत के चेहरे के तौर पर टिकट देने का फॉर्मूला रखा है। पार्टी जयपुर चिंतन के बाद जरूरत विधायक-सांसदों को टिकट देने के पक्ष में नहीं है। इसका असर आगे के टिकट वितरण पर नजर आएगा।

    सिंधिया खेमे को साधना बड़ी चुनौती
    भाजपा में प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा और सीएम शिवराज सिंह चौहान टिकट वितरण में असरदार नजर आते हैं। संगठन के लिए सबसे बड़ी चुनौती केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया खेमे को साधना है। ग्वालियर-चंबल में केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर खेमे का संतुलन भी रखना होगा। वहीं, हर अंचल में क्षत्रपों को साधने की चुनौती है।

    संतुलन की राह पर आगे बढ़ रही पार्टी
    कांग्रेस में प्रदेश अध्यक्ष कमलनाथ और पूर्व सीएम दिग्विजय सिंह का खेमा असरदार है। कांग्रेस में इन दोनों के सामने क्षत्रपों को साधने की चुनौती नहीं है, पर गोविंद सिंह, अरुण यादव, अजय सिंह, जीतू पटवारी जैसे नेताओं की पसंद-नापसंद का तरजीह दी जा सकती है। फिलहाल पार्टी समन्वय और संतुलन की राह पर आगे बढ़ रही है।

     

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