सूबेदार मल्हारराव होलकर ने महाराष्ट्र के अनुसार शुरू की , आज भी परिवार के वंशज पहुंचेंगे दशहरा मैदान
इंदौर। शहर में दशहरे (Dushhera) पर शमी पूजन की परंपरा सन 1735 से जारी है … इस परंपरा को महाराष्ट्रा्र से इंदौर (Mharashtr to indore) लाने का श्रेय सूबेदार मल्हारराव होलकर (Malhar rao holakr) को जाता है। हालांकि पुराना वैभव और राजसी ठाठ-बाट नहीं रहा, लेकिन दशहरा मैदान पर शमी पूजन आज भी लगातार 287 वर्षों से जारी है।
दशहरा मैदान स्थित होलकर राजवंश के लिए आरक्षित ओटले पर शमी पूजन देवी अहिल्याबाई होलकर गादी रक्षण समिति द्वारा राजवंश की परंपरानुसार चल समारोह निकालकर किया जाएगा। चल समारोह में कुलदेवी तुलजा भवानी, कुलस्वामी मल्हारी मार्तंड, देवी अहिल्या की पालकी, छत्री, होलकर निशान आदि शामिल होंगे। पहले जहां इन्हें होलकर राजवंश के सैनिक उठाते थे, लेकिन अब उन परिवारों के वंशज इस परंपरा को निभा रहे हैं। आज भी हर साल अपनी भूमिका निभाने के लिए सेना के अलग विभागों के सैनिकों के वंशज आते हैं। शमी पूजन की परंपरा के पहले मालवा में अश्व पूजन किया जाता था। राज परिवार के सदस्य पगड़ी बांधकर शामिल होते हैं। शुरुआत में चल समारोह में महारुद्र देवात और कुल स्वामी की पालकी रहती थीं, बाद में देवी अहिल्या की पालकी भी शामिल की गई।
दोपहर 3 बजे आड़ा बाजार से निकलेगा चल समारोह
श्री देवी अहिल्याबाई होलकर गादी रक्षण समिति द्वारा सरदार प्रतापसिंहराव होलकर साहब की आड़ा बाजार स्थित हवेली से चल समारोह दोपहर 3 बजे निकाला जाएगा। यहां पर सरदार उदयसिंहराव होलकर शमी पूजन करेगें। पूजन विधि पं. रामप्रसाद शर्मा द्वारा सम्पन्न कराई जाएगी। उक्त जानकारी समिति के मानवेन्द्र कुमार त्रिवेदी ने दी।
त्रेता युग में रावण वध के बाद श्रीराम ने किया था शमी पूजन
पुराणों के अनुसार त्रेता युग में श्रीराम ने रावण के वध के बाद शमी वृक्ष का पूजन किया था। इसी वजह से आज भी दशहरे पर इस पेड़ की पूजा की जाती है, वहीं महाभारत में पांडवों ने अज्ञातवास के समय में अपने अस्त्र-शस्त्र शमी के वृक्ष में ही छिपाए थे। आयुर्वेद में भी शमी का काफी अधिक महत्व है। कई दवाओं में इस पेड़ की पत्तियां, जड़ और तने का उपयोग होता है।
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