उदयपुर: उदयपुर जिले का मेनार कस्बा बर्ड विलेज के लिए तो प्रसिद्ध है, लेकिन यहां का कण-कण इतिहास भी शौर्य की गाथा भी गाता है. यह मेवाड़ के सूर्यवंशी राणा प्रताप के विजयोत्सव का भी साक्षी है. सदियों पुराने गांव मेनार में होली के बाद चैत्र कृष्ण द्वितीया को जमरा बीज पर गैर नृत्य बड़े उल्लास से मनाया जाता है. खास बात यह है कि यहां मारवाड़ और बाड़मेर की तरह डंडों पर नहीं बल्कि तलवारों से गैर नृत्य किया जाता है.
इतिहासकार डॉ. गिरीश माथुर ने बताया कि जमरा बीज के गैर नृत्य की पृष्ठभूमि में मेवाड़-मुगल संघर्ष में महाराणा प्रताप के समय में स्थानीय मेनारिया ब्राह्मणों के साथ स्थानीय जातियों के सक्रिय योगदान का इतिहास छिपा है. समाज की महिलाओं के वीर रस भरे गीतों के साथ तलवारों, बंदूकों और अन्य रणभेरी युक्त थाप, ढोल-नगाड़ों आदि के संग सांस्कृतिक महोत्सव आयोजित होता है.
मेनारिया जाति के पुरुष-महिलाएं पारंपरिक वेशभूषा के साथ सजधज कर इसमें शामिल होते हैं. नृत्य में पुरुषों के पांच दल कसूमल पाग, सफेद धोती-कुर्ता पहने गांव के पांचों मार्गों से मशालचियों की अगुवाई में औंकारेश्वर चौराहे पर बिछी लाल जाजम पर कसूबें की रस्म पूरी करते हैं, तब नृत्य प्रारम्भ होता है.
दरअसल, महाराणा उदय सिंह के समय मेनार गांव के पास मुगलों की एक चौकी थी, जहां से मुगल सेना ने मेवाड़ पर आक्रमण करने को योजना बनाई. इसकी जानकारी गांव के मेनारिया ब्राह्मण समाज के लोगों को लग गई. सर्वसम्मति से ये सभी वीर योद्धा की तरह मुगलों की चौकी पर टूट पड़े, जिसमें मेनारिया समाज के कुछ लोग शहीद भी हो गए. लेकिन वे मुगलों को खदेड़ने में सफल रहे. इसके बाद से ही मेनार गांव में होली के दूसरे दिन जमरा बीज के मौके पर लोग बारूद से होली खेल कर मुगल सेना पर अपनी जीत का जश्न मनाते हैं. मेनारिया समाज के इस वीरता पर उन्हें मेवाड़ के महाराणा ने विशेष उपाधि भी प्रदान की थी.
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