कोरबाः हम सभी होली को लेकर उत्साहित है. होली की तैयारियां अभी से शुरू कर दिए हैं. सोशल मीडिया पर होली की अग्रिम बधाई दे रहे हैं. लेकिन छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में 2 गांव ऐसे हैं जहां होली का त्यौहार नहीं मनाया जाता है. गांव वालों का मानना है कि होली का त्यौहार मनाने से देवी- देवता नाराज हो जाते हैं.
वैसे तो हर त्यौहार का अपना एक अलग महत्व है. लेकिन हरे, पीले, लाल, गुलाबी सहित सभी रंग बिरंगे रंगो के त्यौहार होली का अपना अलग ही महत्व है. इस त्यौहार का मकसद सब को एक रंग में रंगकर आपसी सौहार्द को बढ़ावा देना होता है. इस बार होली का त्यौहार 18 मार्च को है. जिसको लेकर लोगों में उत्साह का माहौल है.
कोरबा जिले से 35 किलोमीटर दूर खरहरी गांव(मड़वारानी के प्राकट्य पहाड़ों के नीचे ) में होली के त्यौहार पर 150 सालों से न तो होलिका जलाई जाती है न ही रंग गुलाल उड़ाए जाते हैं. गांव के लोगों का मानना है कि यहां सालों पहले भीषण आग लगी थी, इस दौरान गांव की स्थिति इतनी खराब हो गई की गांव में भंयकर महामारी फैल गई थी.
ऐसे में एक दिन गांव के एक बैगा (हकीम) के सपने में देवी मडवारानी आई और उन्होंने त्रासदी से बचने का उपाय बताया. उन्होंने बैगा से सपने में बोली की गांव में होली का त्यौहार कभी नहीं मनाया जाएगा तो गांव में शांति वापस आ सकती है. तभी से उस गांव में होली का त्यौहार नहीं मनाया जाता है. हालांकि होली के दिन तरह-तरह के बनने वाले पकवान यहां भी बनते हैं.
होली खेलने से नाराज होते है देवी-देवता
खरहरी गांव से 6 किलोमीटर दूर धमनगुड़ी जो कोरबा जिले से 20 किलोमीटर दूर है. इस गांव में भी पिछले 150 सालों से न तो होलिका दहन होता है और न होली खेली जाती है. गांव के लोगों की मान्यता है कि होली खेलने से गांव के देवी-देवता नाराज हो जाते हैं. ग्रामीणों की माने तो सालों पहले जब गांव में पुरूष वर्ग होली मना रहे थे.
लोग नशे में गाली-गलौच कर रहे थे. उसी दौरान गांव की एक महिला के शरीर में डंगहीन माता प्रवेश कर गई. और डांग (बांस) से पुरूषो की पिटाई करने लगी. जिसके बाद पुरूषों ने माफी मांगी, तो डंगहीन माता ने उन्हें होली ना मनाने के शर्त पर माफ किया. उस समय से आज तक इस गांव में होली नहीं मनाई जाती है.
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved