नई दिल्ली: पोप फ्रांसिस ने एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए नए बदलावों को मंजूरी दी है. पहली बार महिलाओं को अक्टूबर में होने वाली बिशप की वैश्विक बैठक में वोट करने की अनुमति दे दी है. इस कदम से रोमन कैथोलिक चर्च में निर्णय लेने में अधिक सहभागिता हो सकती है. इससे पहले महिलाओं को ऑडिटर के तौर पर सिनॉड्स, एक पोप सलाहकार निकाय में भाग लेने की अनुमति थी, लेकिन वोट देने का कोई अधिकार नहीं था. पोप का ये क्रांतिकारी नियम पांच रिलीजियस सिस्टर को वोट के अधिकार की अनुमति देता है.
चर्च में महिलाओं के ग्रुप कई सालों से हाई-प्रोफाइल धर्मसभाओं में वोट के अधिकार की मांग कर रहे हैं, जोकि रेजोल्यूशन तैयार करते हैं. जिसे आमतौर पर कैथोलिक डॉक्यूमेंट में बदलाव की तैयारी मानी जाती है. बिशपों की ये बैठक लोगों को बेहतर ढंग से जोड़ने पर ध्यान केंद्रित करने वाली है. बताया जा रहा है कि इस बैठक में चर्च और एलजीबीटीक्यू रिश्तों में महिलाओं की भूमिका जैसे प्रमुख मुद्दों पर विचार करने की उम्मीद है.
बताया गया है बिशप की वैश्विक बैठक में अब अतिरिक्त 70 गैर-बिशप वोटिंग सदस्यों को शामिल किया जाएगा, जिनमें आधी महिलाओं की भूमिका हो सकती है. राष्ट्रीय बिशप कॉन्फ्रेंस की ओर से सिफारिश की गई है कि पोप 140 लोगों की सूची में से 70 पादरियों, रिलीजियस सिस्टर, डीकॉन्स और कैथलिकों का चयन करेंगे. वेटिकन का कहना है कि 70 में से 50 फीसदी महिलाएं हैं.
कैथोलिक चर्च में महिलाओं को नहीं बनाया जाता पादरी
इस बैठक में आमतौर पर लगभग 300 लोग शामिल किए जाते हैं. इसलिए वोटिंग के अधिकार वाले अधिकांश लोग अभी भी बिशप रहेंगे. फिर भी कहा जा सकता है कि ये परिवर्तन उल्लेखनीय है क्योंकि सदियों से प्रथा पुरुष-प्रधान रही है. महिलाओं के अधिकार कम ही रहे हैं, लेकिन कुछ समय से महिला अधिकारों को लेकर जागरूकता बढ़ी है. यही वजह है कि टॉप पोजीशन के लिए उन्हें आगे किया जाने लग गया है. वहीं, कैथोलिक चर्च महिलाओं को पादरियों के रूप में नियुक्त नहीं करता है.
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