करीब से देखा कोरोना…खाकी में नजर आया समर्पण का ऐसा रंग कि जो उंगलियां उठाते हैं उनके सिर झुक जाएं….
बेटी भी थी अस्पताल में भर्ती, नहीं हारी हिम्मत और फिर एएसआई आ गया ड्यूटी पर
इंदौर। कोरोना (Corona) ने कई परिवारों से उनके अपनों को छीन लिया, लेकिन यातायात पुलिस (Traffic Police) के एक एएसआई की कहानी तो दु:ख की पराकाष्ठा है। ड्यूटी से लौटते समय कुछ साल पहले उसका एक पैर कट गया था, लेकिन कोरोना ने तो जैसे उसका सब कुछ छीन लिया। बेटे की कोरोना से मौत हो गई। पगड़ी के दिन पत्नी भी चल बसी। बेटी अस्पताल में थी और वह उसकी सेवा में लगा था। कोई और कोरोना का शिकार न हो, इसलिए रिश्तेदारों को रवाना कर दिया और बहू को मायके भेज दिया, फिर बेटी की सेवा में लग गया। दु:खों का पहाड़ टूटने के बाद भी उसने हिम्मत नहीं हारी और पांच दिन बाद फिर ड्यूटी पर आ गया। हालांकि वह ऑफिस में सेवा देता है, लेकिन कोरोना में उसने एक भी छुट्टी नहीं ली थी।
यह कहनी है यातायात पुलिस (Traffic Police) के एएसआई मोहनलाल ठाकुर की। वे सराफा ट्रैफिक थाने में डीएसपी के रीडर हैं। मोहनलाल पहले अन्य थानों में रहे। इस दौरान 2006 में ड्यूटी कर घर लौटते समय जिंसी में दो शराबी बाइक लेकर उनकी गाड़ी में घुस गए और वे गंभीर रूप से घायल हो गए। इस दुर्घटना में उनका एक पैर काटना पड़ा। उन्होंने नकली पैर लगवाया और फिर ड्यूटी शुरू कर दी, लेकिन कोरोना ने तो जैसे उनके जीने का मकसद ही छीन लिया। एक साल पहले उन्होंने नया घर बनाया और बेटे पीयूष ठाकुर की वहां से शादी की। शादी को नौ माह ही हुए थे कि कोरोना ने एक-एक कर पूरे परिवार को चपेट में ले लिया। बेटे ने एमसीए किया था और एक निजी कंपनी में नौकरी करता था। बेटी नीलम बैंगलुरु में नौकरी करती थी, लेकिन कोरोना के कारण ये सभी लोग घर पर ही थे। इस दौरान कोरोना ने पहले बेटे और फिर पत्नी शोभा को चपेट में ले लिया। दोनों राजमोहल्ला स्थित अस्पताल में भर्ती थे। बेटी भी पॉजिटिव हो गई। उसे अरबिंदो अस्पताल में भर्ती किया गया। मोहनलाल खुद एक ड्राइवर के सहारे सभी की देखभाल कर रहे थे। इस दौरान पहले बेटे की मौत हो गई। उसकी पगड़ी के दिन पत्नी शोभा का निधन हो गया। पगड़ी नहीं हो सकी। कुछ रिश्तेदार आए तो वे चपेट में न आ जाएं, इसलिए उसने सभी को रवाना कर दिया और बहू को भी उसके मायके भेज दिया। बेटी की देखरेख की और अब वह ठीक है। परिवार में अब दोनों ही बचे हैं। पिछली कोरोना लहर में रतलाम में रहने वाले उनके भाई की भी मौत हो गई थी। इतना सब होने के बाद भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और फिर कुछ ही दिनों में नौकरी पर जाने लगे। हालांकि वे ऑफिस में हैं, लेकिन कोरोना काल में स्टाफ की ड्यूटी और अन्य कार्यों से एसपी ऑफिस से लेकर कई जगह जाना होता है। इसके बावजूद वे ये सब होने के बाद भी आपने काम को अंजाम दे रहे हैं।
मैंने वैक्सीन के दोनों डोज लगवा लिए थे इसलिए संभवत: बच गया
इस संबंध में मोहनलाल से बात करने पर वे कहते हैं कि भगवान ने उनकी उम्र इतनी ही लिखी थी। मैंने हर प्रयास किया। अब जीने का सहारा बेटी ही है। वे कहते हैं कि भगवान पर विश्वास रखें और कोरोना की गाइड लाइन (Guide Line) का पालन करें। उन्होंने कहा कि मुझे फ्रंटलाइन वर्कर होने के कारण वैक्सीन के दोनों डोज लग गए थ, इसलिए परिवार में सबके पॉजिटिव होने के बाद भी मैं बच गया। लोगों से उनकी अपील है कि वैक्सीन (Vaccine) लगवाएं और कोरोना गाइड लाइन का पालन करें।
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