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    दो साल बाद हुआ हिंगोट युद्ध, एक-दूसरे पर हिंगोट फेंके, 15 योद्धा घायल

  • October 27, 2022

    इंदौर। इंदौर जिला मुख्यालय से 55 किलोमीटर दूर ग्राम गौतमपुरा (Village Gautampura) में बुधवार की रात पारम्परिक हिंगोट युद्ध (Traditional Hingote War) हुआ। देवनारायण भगवान (Lord Devnarayan) के दर्शन के बाद तुर्रा गौतमपुरा और कलंगी रूणजी दल के योद्धा आमने-सामने आ गए और दोनों गुटों के बीच हिंगोट युद्ध (hingot war) शुरू हो गया। कोरोना के कारण पिछले दो साल से हिंगोट युद्ध नहीं हुआ था, इसलिए इस बार लोगों ने जमकर एक-दूसरे पर हिंगोट फेंके। इसमें 15 लोगों के घायल होने की सूचना है। युद्ध देखने के लिए हजारों लोग पहुंचे। प्रशासन ने सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम कर रखे थे।

    दरअसल, वर्षों से गौतमपुरा और कलंगी रुणजी के बीच हिंगोट युद्ध की परम्परा चली आ रही है। दीपावली के अगले दिन पड़वा पर तुर्रा-गौतमपुरा और कलंगी-रूणजी के निशान लेकर दो दल यहां पहुंचते हैं। सजे-धजे यह योद्धा कंधों पर झोले में भरे हिंगोट (अग्निबाण), एक हाथ में ढाल और दूसरे में जलती बांस की कीमची लिए नजर आते हैं। योद्धा सबसे पहले बड़नगर रोड स्थित देवनारायण मंदिर के दर्शन करते हैं। इसके बाद मंदिर के सामने ही मैदान में एक-दूसरे से करीब 200 फीट की दूरी पर एक-दूसरे पर हिंगोट चलाते हैं।



    परम्परा का निर्वहन करते हुए बुधवार की शाम दोनों दल के योद्धा जुलूस के रूप में देवनारायण मंदिर पहुंचे। भगवान देवनारायण मंदिर में दर्शन करने के बाद दोनों दलों के योद्धा उस्तादों ने युद्ध की घोषणा के रूप में हिंगोट छोड़ी। संकेत मिलते ही दोनों दलों ने एक-दूसरे पर हिंगोट चलाना शुरू किए। देखते ही देखते दोनों तरफ से जलते हुए हिंगोट बरसने लगे और यह सिलसिला देर रात तक जारी रहा। दो साल बाद हुए हिंगोट युद्ध को देखने के लिए रतलाम, उज्जैन, इंदौर सहित कई जिलों से लोग पहुंचे। इस दौरान 450 पुलिसकर्मियों का बल तैनात रहा।

    बताया जाता है कि गौतमपुरा और रुणजी गांवों के बीच इसकी शुरुआत हुई थी। यह भाईचारे की परंपरा निभाने के लिए लड़ा जाता है। युद्ध की शुरुआत कब हुई थी, इसका इतिहास किसी को नहीं पता है। इसमें हार-जीत का निर्णय नहीं होता है। परंपरा के तौर पर यह युद्ध दो घंटे लड़ा जाता है। हिंगोट एक तरह का जंगली फल होता है। गूदा निकालकर उसे सुखाया जाता है। फिर छेद करके उसमें बारूद भरा जाता है। इसी बारूद में आग लगाकर एक-दूसरे पर फेंका जाता है। इसमें कई लोग घायल हो जाते हैं, इसके बावजूद उनके उत्साह में कमी नहीं आती।

    कलंगी दल के एक योद्धा का कहना था कि यह परंपरा हमारे पूर्वजों ने हमें दी है। रतलाम, उज्जैन, इंदौर सहित कई जिलों से लोग यहां युद्ध देखने आते हैं। पिछले कई सालों से हिंगोट युद्ध देखने आ रहे लोगों के अनुसार ये अनूठा खेल है, जो उन्हें बहुत लुभाता है। इसका रोमांच भी भारत-पाकिस्तान के बीच होने वाले क्रिकेट मैच की तरह ही है। इस बार युद्ध में संशय होने से वे थोड़े निराश नजर आए। एजेंसी

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