इंडोनेशिया।हिंदू धर्म (Hindu Religion) में त्रिदेव की मान्यता सबसे ज्यादा है. त्रिदेव मतलब ब्रह्मा (Brahma), विष्णु (Vishnu) और महेश (Mahesh). इसमें से भगवान विष्णु को संसार का पालनकर्ता माना जाता है. भारत में वैष्णव लोग भी मिलते हैं, जो हिंदू धर्म के अहम अंग हैं. हिंदुओं में शैव, वैष्णव और शक्ति से उपासक खासतौर पर होते हैं. इसमें से वैष्णव के उपासक सात्विक जीवन जीते हैं. लेकिन क्या आपको पता है कि भगवान विष्णु की सबसे बड़ी मूर्ति कहां है? आप सोच रहे होंगे कि ये तो भारत में ही होना चाहिए. ऐसा होना भी चाहिए था. लेकिन आप ये जानकर हैरान होंगे कि भगवान विष्णु की सबसे ऊंची मूर्ति भारत (India) में नहीं, बल्कि एक मुस्लिम देश (Muslim country) में है.
मुस्लिम देश में भगवान विष्णु की मूर्ति
इस देश का नाम इंडोनेशिया (Indonesia) है. जिसके रग-रग में हिंदुत्व दिखता है. इंडोनेशिया (Indonesia) में भले ही सबसे ज्यादा संख्या मुस्लिमों की हो और दुनिया में मुस्लिमों की आबादी के मामले में नंबर वन देश हो, लेकिन यहां के कण कण में हिंदुतेव बसता है. तभी तो इस देश की एयरलाइन (airline) का नाम भी गरुणा एयरलाइन है. गरुड़ यानी भगवान विष्णु की सवारी. यहीं पर बाली द्वीप पर भगवान विष्णु की दुनिया की सबसे ऊंची मूर्ति भी है.
अरबों रुपये में बनी मूर्ति
ये मूर्ति स्टैच्यू ऑफ गरुणा के नाम से जगप्रसिद्ध है. यह मूर्ति इतनी विशाल और इतनी ऊंचाई पर है कि आप देखकर ही हैरान हो जाएंगे. इस मूर्ति को बनवाने में अरबों रुपये खर्च हुए थे. भगवान विष्णु के इस मूर्ति का निर्माण तांबे और पीतल का इस्तेमाल किया गया है
24 साल में बनी मूर्ति
भगवान विष्णु की यह मूर्ति करीब 122 फुट ऊंची और 64 फुट चौड़ी है. इस मूर्ति को बनाने में 2-4 साल नहीं, बल्कि करीब 24 साल का समय लगा है. साल 2018 में यह मूर्ति पूरी तरह बनकर तैयार हुई थी. अब इसे देखने और भगवान के दर्शन के लिए दुनियाभर से लोग आते हैं.
भारत सरकार ने किया है सम्मानित
इस मूर्ति को बनाने की शुरुआत साल 1994 में शुरू हो पाई. हालांकि, बजट की कमी से 2007 से 2013 तक मूर्ति बनाने का काम रूका रहा था, लेकिन उसके बाद जब इसका काम दोबारा शुरू हुआ तो फिर वो पूरा बनने के बाद ही रूका. बाली द्वीप के उंगासन में स्थित इस विशालकाय मूर्ति का निर्माण करने वाले मूर्तिकार बप्पा न्यूमन नुआर्ता को भारत में सम्मानित भी किया गया था. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने उन्हें पद्मश्री पुरस्कार प्रदान किया था.
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