– डॉ. वेदप्रताप वैदिक
राष्ट्रीय सवयंसेवक संघ के मुखिया मोहन भागवत का यह कथन कितना अर्थपूर्ण है कि हिंदू और मुसलमानों की एकता की बात करना व्यर्थ है, क्योंकि वे दो हैं ही नहीं। वे तो एक ही हैं। सैद्धांतिक तौर पर यह ठीक है लेकिन व्यवहार में क्या ऐसा है ? इस पर अमल तो तभी होगा जब देश के सभी नागरिकों में रोटी-बेटी के संबंध खुलें। हिंदू-मुसलमान की बात जाने दीजिए। आज क्या कोई भी हिंदू किसी भी हिंदू के साथ रोटी-बेटी का संबंध मुक्त रूप से करता है ? हमारे मुसलमानों में भी यह देखा जाता है। भारत में ही नहीं, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के मुसलमानों में भी मैंने जातिवाद और वंशवाद की मजबूत दीवारें खड़ी देखी हैं। ऐसी स्थिति में भारत के हिंदुओं और मुसलमानों, दोनों को अपने में काफी बदलाव लाने की जरूरत है।
भारत के मुसलमान नेताओं को शायद यह पता नहीं है कि दुनिया के ईसाई, यहूदी, बौद्ध और कम्युनिस्ट देशों में उनके मुसलमान अल्पसंख्यकों की कैसी दुर्दशा है? मैंने खुद अपनी आंखों से रूस, चीन, यूरोप, जापान, इस्राइल आदि के मुसलमानों की दुर्दशा को देखा है। उन सबकी तुलना में भारत का मुसलमान मुझे बहुत भाग्यशाली लगता है। मैं तो यह मानता हूं कि भारत का मुसलमान दुनिया का सर्वश्रेष्ठ मुसलमान है, क्योंकि वह इस्लाम को तो मानता ही है, उसमें भारतीयता भी कूट-कूट कर भरी हुई है। यह बात कुछ साल पहले मैंने दुबई की एक बड़ी सभा में कह दी थी, जहां अगली पंक्तियां शेखों से भरी हुई थीं।
मैं चाहता हूं कि भारत का मुसलमान अपनी मौलिकता के लिए सारी दुनिया में जाना जाए। वह अरबों या ईरानियों का नकलची क्यों बना रहे? वह अपनी भाषा, भूषा, भोजन, भजन और भेषज में मूल रुप से भारतीय बना रहे और साथ में ही कुरान की एकेश्वरवादी, क्रांतिकारी और समतावादी धारणाओं का जीवंत उदाहरण बनकर दिखाए। सभी मजहबों के अनुयायिओं से मैं कहता हूं कि संत कबीर के इस कथन को वे हमेशा ध्यान में रखें कि ‘‘सार-सार को गहि रहें, थोथा देइ उड़ाय।’’
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं जाने-माने स्तंभकार हैं।)
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