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    बिहार में नहीं चलेगा हिन्दू-मुस्लिम का ड्रामा… नीतीश कुमार को मुस्लिम वोटरों की नाराजगी का भय

  • November 02, 2024

    नई दिल्ली: बिहार (Bihar) एनडीए में शामिल पांच पार्टियों के प्रमुखों, संसद के दोनों सदनों के सदस्यों, विधानसभा और विधान परिषद के सदस्यों के अलावा पार्टी पदाधिकारियों और जिलाध्यक्षों को भी बैठक में न्यौता गया. बैठक स्थल सीएम आवास था. लोजपा-आर के अध्यक्ष चिराग पासवान बैठक में नहीं आए, लेकिन अपने सांसद अरुण भारती को भेजा. हम प्रमुख जीतन राम मांझी भी नहीं आए, लेकिन उनके बेटे ने शिरकत की. राष्ट्रीय लोक मोर्चा प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा के अलावा भाजपा और जेडीयू के नेताओं का जमावड़ा लगा. नीतीश ने बैठक में सहयोगी दलों को साफ और कड़ा संदेश दिया.

    बैठक का संदेश साफ था. नीतीश कुमार यह बताना चाहते थे कि बिहार में भले वे 43 विधायकों वाली पार्टी के नेता हैं, लेकिन रुतबा बड़े भाई का बरकरार है. वे विरोधियों को संदेश देना चाहते थे कि उन्हें बूढ़ा और बीमार बता कर खारिज करने की भूल न करें. गिरिराज सिंह, हरिभूषण बचौल और प्रदीप सिंह जैसे भाजपा नेताओं को भी नीतीश कड़ा संदेश देना चाहते थे. उन्हें उनकी औकात बताना चाहते थे. इसमें नीतीश सफल रहे. उनके बड़बोलेपन से नीतीश नाराज थे. गिरिराज सिंह की हिन्दू स्वाभिमान यात्रा, बचौल की सीमांचल को अलग राज्य बनाने की मांग और प्रदीप सिंह की मुसलमानों को अररिया में हिन्दू बन कर रहने की हिदायत से नीतीश कई दिनों से आहत थे.

    नीतीश कुमार को पता है कि उन्हें मुस्लिम वोटरों को आरजेडी के चंगुल से मुक्त कराने में कितनी मेहनत करनी पड़ी है. मुसलमानों में पसमांदा को खास तवज्जो नीतीश ने दिया, जिससे पिछड़े मुसलमानों में उनकी पैठ मजबूत हुई. अपनी सेकुलर इमेज से उन्होंने मुसलमानों को अपने पाले में लाने में बड़ी मुश्किल से कामयाबी हासिल की. नीतीश कुमार के भाजपा के साथ रहने के बावजूद मुसलमानों ने अब तक उनका साथ नहीं छोड़ा है तो इसकी वजह उनकी सेकुलर छवि ही है. नीतीश जिन तीन ‘C’ (क्राइम, कम्युनलिज्म और करप्शन) की बात करते हैं, उनमें कम्युनलिज्म दूसरे ही नंबर पर रहता है.


    कम्युनलिज्म से नीतीश को कितनी चिढ़ है, वह इससे समझा जा सकता है. नरेंद्र मोदी के गुजरात का सीएम रहते जब वहां दंगा हुआ तो इसके छींटे उन पर भी पड़े. हालांकि बाद में मोदी को क्लीन चिट कानून मिल गई और जनता ने भी बेदाग बता दिया. बहरहाल, इससे नीतीश के मन में उनके प्रति नफरत पैदा हो गई. दोनों के बीच की तल्खी पहली बार वर्ष 2010 में तब देखी गई, जब नीतीश ने पटना में नरेंद्र मोदी के लिए भोज का आयोजन किया था. उस दिन के अख़बारों में छपे एक विज्ञापन में मोदी के साथ अपनी तस्वीर देख नीतीश इतने नाराज़ हुए थे कि उन्होंने भोज ही रद्द कर दिया. इससे पहले 2008 में कोसी बाढ़ राहत के तौर पर गुजरात सरकार से आए 5 करोड़ रुपए भी नीतीश ने लौटा दिए थे.

    नरेंद्र मोदी से नीतीश की चिढ़ तीसरी बार तब उजागर हुई, जब भाजपा ने वर्ष 2014 के लोकसभा चुनावों के पहले नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का चेहरा घोषित किया. नीतीश कुमार हत्थे से उखड़ गए और भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए से अलग हो गए. तब बिहार में नीतीश कुमार की अभिन्न सहयोगी भाजपा थी. भाजपा के सहयोग से ही वे नीतीश बिहार में सरकार चला रहे थे. खैर, बाद में नीतीश एनडीए में लौट आए थे. साल 2022 में नीतीश ने एक बार और एनडीए छोड़ा दावा किया कि अब वे मरना पसंद करेंगे, लेकिन भाजपा के साथ नहीं जाएंगे. भाजपा नेता भी उनके लिए एनडीए का दरवाजा हरदम के लिए बंद बता रहे थे. इस साल लोकसभा चुनाव के पहले नीतीश का मन बदला और फिर भाजपा के साथ हो गए.

    दरअसल, नीतीश कुमार की छवि एक सेकुलर नेता की रही है. भाजपा के साथ आने पर नीतीश कुमार को कई ऐसी स्थितियों का सामना करना पड़ा है, जिससे उनकी सेकुलर छवि को नुकसान हो रहा था. मसलन वक्फ संशोधन बिल उनकी मर्जी के खिलाफ है. हालांकि जेडीयू ने लोकसभा में इसका समर्थन किया है. टूंकि यह बिल अभी जेपीसी के पास है, इसलिए नीतीश को बोलने के लिए कुछ नहीं है. गिरिराज सिंह की हिन्दू स्वाभिमान यात्रा भी नीतीश की मर्जी के खिलाफ है. भाजपा सांसद प्रदीप सिंह का मुसलमानों को लक्ष्य कर दिया गया बयान भी उन्हें आहत करने वाला है. पहले चूंकि नीतीश 3 विधायकों वाली पार्टी के नेता के रूप में खुद को कमजोर स्थिति में देख रहे थे, पर अब स्थितियां बदल गई हैं. नीतीश कुमार 12 सांसदों के साथ अब बिहार में भाजपा की बराबरी में खड़े हैं.

    नीतीश को यह भी पता है कि लोकसभा में मुसलमानों की मदद के बिना उन्हें 12 सीटों पर जीत मिलनी संभव नहीं थी. इसलिए वे मुसलमानों में अपनी पैठ को कमजोर करना नहीं चाहेंगे. खासकर तब, जब आरजेडी या इंडिया ब्लाक की दूसरी पार्टियां मुसलमान वोटों को अपने पाले में करने की तमाम कोशिशें कर रही हैं. जन सुराज के प्रशांत किशोर ने भी मुसलमानों को ही लक्ष्य कर अपनी चुनावी रणनीति बिहार में बनाई है. बेलागंज विधानसभा सीट पर हो रहे उपचुनाव की सभा में प्रशांत किशोर ने जिस तरह मुस्लिम बहुल इलाके में भारी भीड़ जुटाई, उससे सबके कान खड़े हो गए हैं. यही वजह है कि नीतीश ने पिछले दिनों एनडीए नेताओं की बठक बुला कर साफ संदेश दिया कि हिन्दू-मुस्लिम नहीं चलने वाला है. यह नीतीश की भाजपा नेताओं को चेतावनी भी हो सकती है कि नहीं सुधरे तो वे नया साथी तलाशने में तनिक भी विलंब नहीं करेंगे.

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