शिमला (Shimla)। हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) की राजनीतिक आग बुझाने के लिए विधानसभा स्पीकर (Assembly Speaker) ने कांग्रेस के 6 विधायकों (6 Congress MLAs) की सदस्यता रद्द (Membership cancelled.) कर दी. दल-बदल विरोधी कानून (Anti-defection law) के इतिहास में पहली बार 22 घंटे के भीतर विधायकों पर कार्रवाई हुई. इन विधायकों पर पार्टी व्हिप न मानने का आरोप था।
विधानसभा रिकॉर्ड के मुताबिक 28 फरवरी को दोपहर 12 बजे इन विधायकों के दल बदल की शिकायत की गई, जिस पर अध्यक्ष ने तुरंत सुनवाई की और अगले दिन 29 फरवरी को 10 बजे के आसपास इन विधायकों की सदस्यता रद्द करने का फैसला सुनाया।
बागी नेताओं ने इस एक्शन को गलत कहा है और फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी है. हालांकि, यह पहली बार नहीं है, जब दल बदल कानून एक्शन की वजह से सुर्खियों में है. भारत में सरकार बनाने और गिराने में यह कानून कई मौकों पर महत्वपूर्ण भूमिका निभा चुका है। आइए जानते हैं, दल बदल विरोध कानून की पूरी कहानी….
एंटी डिफेक्शन लॉ यानी दल बदल विरोध कानून क्या है?
साल 1985 में केंद्र सरकार ने विधायिका के भीतर दलबदल को रोकने के लिए भारत के संविधान में 52वां संशोधन किया गया. इसके बाद 10वीं अनुसूची आस्तित्व में आई.
10वीं अनुसूची के मुताबिक दलबदल के मुद्दे पर सांसदों और विधायकों पर कार्रवाई का अधिकार स्पीकर के पास है. 10वीं अनुसूची में आखिरी संशोधन 2003 में किया गया था.
इसके मुताबिक अंदर और बाहर दोनों जगह उनके आचरण के लिए अयोग्यता की कार्रवाई का अधिकार सदन के स्पीकर को दिया गया है. इस कानून का उपयोग कर स्पीकर दलबदलुओं पर कार्रवाई कर सकते हैं.
दल बदल विरोध कानून में कब-कब हुई बड़ी कार्रवाई?
भारत में अब तक 7 मौकों पर दल बदल विरोध कानून के तहत विधायकों पर कार्रवाई हुई है. दो मौकों पर सांसदों के ऊपर भी गाज गिरी है. आइए इसे विस्तार से जानते हैं.
हरियाणा में भजनलाल पर पहला बड़ा एक्शन
2008 में एंटी डिफेक्शन लॉ के तहत पहली बड़ी कार्रवाई हुई थी. हरियाणा के स्पीकर ने दल बदल के आरोप को सही मानते हुए पूर्व मुख्यमंत्री भजनलाल की सदस्यता रद्द कर दी थी. भजनलाल उस वक्त कांग्रेस में थे.
भजनलाल पर आरोप था कि कांग्रेस से जीतने के बाद उन्होंने खुद की नई पार्टी बना ली है, जो कांग्रेस के खिलाफ काम कर रही है. इस मामले की सुनवाई करीब 2 महीने तक चली थी.
4 दिन की सुनवाई में 16 विधायक निपटे
2010 में कर्नाटक में बीजेपी की येदियुरप्पा सरकार से 16 विधायकों ने समर्थन वापस ले लिया, जिसमें 5 निर्दलीय विधायक भी शामिल थे. सरकार बचाने के लिए येदियुरप्पा ने इन विधायकों के खिलाफ एंटी डिफेक्शन लॉ के तहत कार्रवाई की मांग की.
4 दिन तक स्पीकर केजी बोपैया ने इस मामले की सुनवाई की. सुनवाई के बाद स्पीकर ने सभी 16 विधायकों की सदस्यता रद्द कर दी.
निर्दलीय विधायकों की सदस्यता रद्द करने के पीछे स्पीकर का दलील दिलचस्प था. स्पीकर का कहना था कि निर्दलीय विधायक बीजेपी की मीटिंग में आए, इसलिए उनकी सदस्यता रद्द की जा सकती है.
हालांकि, 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने स्पीकर के इस फैसले को रद्द कर दिया. कोर्ट के इस फैसले के 3 महीने बाद येदि को मुख्यमंत्री की गद्दी छोड़नी पड़ी.
दल-बदल विरोधी कानून की पूरी कहानी: 39 साल में कब-कब इसने सरकार बचाने और गिराने का काम किया?
यूपी में भी हो चुकी है दल बदल की कार्रवाई
2011 में मायावती पार्टी के शेर बहादुर सिंह ने पाला बदल लिया, जिसके बाद बहुजन समाज पार्टी ने उनके खिलाफ दल बदल विरोध कानून के तहत कार्रवाई की सिफारिश की.
शेर बहादुर सिंह मामले की सुनवाई स्पीकर सुखदेव राजभर की कोर्ट में चला. यह सुनवाई करीब 4 महीने तक चला.
नीतीश ने 8 विधायकों की सदस्यता रद्द करवाई
2014 चुनाव के बाद बिहार में सियासत ने 360 डिग्री यूटर्न ले ली. नीतीश कुमार ने पहले जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बनाया, लेकिन कुछ महीने बाद ही उन्होंने मांझी से इस्तीफा देने के लिए कह दिया.
मांझी ने इस्तीफा देने से इनकार कर दिया, जिसके बाद बिहार में हॉर्स ट्रेडिंग का दौर शुरू हुआ. अप्रैल 2014 में राज्यसभा चुनाव के दौरान कई विधायकों ने क्रॉस वोटिंग कर दी.
बगावत को देखते हुए नीतीश कुमार ने अपने 8 विधायकों पर दल बदल के तहत कार्रवाई करने की सिफारिश की. इन विधायकों में अजीत कुमार, राजू सिंह, सुरेश चंचल पूनम देवी, ज्ञानेश्वर ज्ञानू और नीरज बबलू प्रमुख थे.
दिसंबर 2014 में बिहार विधानसभा के स्पीकर ने सभी की सदस्यता रद्द कर दी.
तमिलनाडु में 18 विधायकों की गई थी सदस्यता
2017 में बगावत करने वाले एआईएडीएमके के 18 विधायकों की सदस्यता रद्द कर दी गई थी. यह सभी विधायक तत्कालीन सीएम पलानीस्वामी का विरोध कर रहे थे.
विधायकों का नेतृत्व टीटी दिनाकरण कर रहे थे. मामला हाईकोर्ट भी गया, लेकिन विधायकों को कोई राहत नहीं मिली.
विधायकों पर कार्रवाई की बड़ी वजह पलानीस्वामी का विरोध करना था. दिनाकरण गुट का कहना था कि पलानीस्वामी ने अम्मा (जयललिता) के सपनों को तोड़ने का काम किया है. इन लोगों ने पार्टी के भीतर अम्मा डीएमके नाम का संगठन भी तैयार कर लिया.
अलग पार्टी बनाने पर हरियाणा में कार्रवाई
2019 में इनेलो मुखिया ओम प्रकाश चौटाला के बड़े बेटे अजय चौटाला ने अपने दोनों बेटे के साथ मिलकर जननायक जनता पार्टी का गठन किया. इनेलो के लिए यह एक बहुत बड़ा झटका था.
अजय की इस पार्टी में इनेलो के 5 विधायक भी चले गए, जिसके बाद इनेलो ने दल बदल कानून के तहत इनके खिलाफ कार्रवाई की सिफारिश की. 7 महीने तक चली सुनवाई के बाद इनेलो के 5 विधायकों की सदस्यता रद्द कर दी गई. जिन विधायकों की सदस्यता रद्द की गई, उनमें नैना चौटाला, पिरथी सिंह, राजदीप और अनूप धानक का नाम प्रमुख था.
2019 में कर्नाटक के 17 विधायकों पर गाज गिरी
साल 2019 में कर्नाटक कांग्रेस के विधायकों ने एचडी कुमारस्वामी सरकार के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंक दिया. इन विधायकों ने विश्वास मत के दौरान में सरकार के पक्ष में वोटिंग नहीं की, जिसके बाद विधानसभा स्पीकर ने सभी विधायकों की सदस्यता रद्द कर दी.
स्पीकर ने बचे हुए कार्यकाल में सभी विधायकों के चुनाव लड़ने पर भी रोक लगा दिया. मामला सुप्रीम कोर्ट गया और विधायकों को बड़ी राहत नहीं मिली.
यहां दल बदल का मामला अब भी सालों से पेंडिंग
1. झारखंड में अयोग्ता का एक मामला 4 साल से पेंडिंग है. दरअसल, झारखंड में विधानसभा चुनाव के बाद झाविमो के मुखिया बाबूलाल मरांडी ने बीजेपी में अपनी पार्टी का विलय कर लिया. हालांकि, उनके 2 विधायकों ने इसका विरोध कर दिया.
इसके बाद यह मामला स्पीकर के पास चला गया. कई दफे की सुनवाई भी हो चुकी है, लेकिन इस मामले में स्पीकर कोर्ट का कोई फैसला नहीं आया है. झारखंड विधानसभा का कार्यकाल में अब एक साल से भी कम का वक्त बचा है.
2. पश्चिम बंगाल विधानसभा में भी 3 साल से अयोग्यता का केस पेंडिंग है. 2021 में बीजेपी के कई विधायकों ने दल बदल लिए, लेकिन अब तक किसी पर भी सदस्यता रद्द की कार्रवाई नहीं हुई है.
जिन विधायकों पर कार्रवाई लंबित है, उनमें मुकुल रॉय और सुमन कांजीलाल जैसे कद्दावर बीजेपी नेताओं के नाम शामिल हैं.
दल बदल पर ठोस और पारदर्शी कानून की जरूरत क्यों?
– लोकसभा के पूर्व महासचिव पीडीटी आचारी के मुताबिक पिछले 5-7 साल में जिस तरह से दलबदल कानून का हाल बना दिया गया है, उससे लगता है कि इस कानून की आवश्यकता ही खत्म हो गई है. कुछ लोगों ने इस कानून के तोड़ने की तरकीब निकाल रखा है, जो गलत है.
सत्ताधारी दल के सुविधानुसार स्पीकर दलबदल पर फैसला करते हैं. यही वजह है कि लंबे वक्त तक पार्टी बदलने के बावजूद भी नेता अपनी कुर्सी बचाए रखने में कामयाब रहते हैं.
दल-बदल विरोधी कानून की पूरी कहानी: 39 साल में कब-कब इसने सरकार बचाने और गिराने का काम किया?
– 2014 से लेकर 2021 तक भारत में सांसद और विधायक स्तर के करीब 1000 नेताओं ने दल बदले हैं. इन दलबदलुओं की वजह से कई मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र समेत कई राज्यों की सरकार अस्थिर हो गई.
दलबदलू नेताओं की वजह से 20 से ज्यादा उपचुनाव कराने पड़े हैं. इन उप-चुनावों में करोड़ों रुपए खर्च हुए हैं.
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