शिमला (Shimla) । रेप पीड़िता (rape victim) नाबालिग का गलत टू फिंगर टेस्ट (two finger test) किए जाने के मामले में शिमला हाई कोर्ट (Shimla High Court) ने कांगड़ा सिविल हॉस्पिटल के डॉक्टरों (doctors) पर भारी-भरकम जुर्माना (Fine) लगाया है। कोर्ट ने राज्य सरकार को आदेश दिया है कि पीड़िता को पांच लाख रुपये का मुआवजा दिया जाए। बाद में यह रकम डॉक्टरों की सैलरी से काटी जाए और ठीक से जांच कराकर दोषी डॉक्टरों को जिम्मेदार ठहराया जाए। जस्टिस तरलोक सिंह चौहान और जस्टिस सत्येन वैद्य की पीठ ने आदेश सुनाते हुए कहा कि रेप पीड़िता की गरिमा को ठेस पहुंचाई गई है। उसकी निजता का भी ध्यान नहीं रखा गया जिसके चलते पीड़िता को मानसिक कष्ट पहुंचा है। इसके अलावा उसे टू फिंगर टेस्ट से पहले भी डराया धमकाया गया।
कोर्ट ने कहा कि डॉक्टरों ने जो किया है वह महिला की पवित्रता और उसके सम्मान के खिलाफ है। किसी का शरीर उसके लिए मंदिर की तरह होता है और इस तरह से उसपर अतिक्रमण नहीं किया जा सकता। बता दें कि केंद्र सरकार ने टू फिंगर टेस्ट को प्रतिबंधित किया है। इसके अलावा हिमाचल प्रदेश की सरकार ने भी केंद्र के निर्देशों को अपनाया है।
क्या होता है टू फिंगर टेस्ट
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने भी टू फिंगर टेस्ट को अवैज्ञानिक और गलत बताया था। कोर्ट ने कहा था कि इस टेस्ट से पीड़िताओं को प्रताड़ित किया जाता है। झारखंड सरकार की याचिका पर सीजेआई चंद्रचूड़ और जस्टिस हिमा कोहली की बेंच ने यह फैसला सुनाया था। बता दें कि टू फिंगर टेस्ट में पीड़िता के प्राइवेट पार्ट में दो उंगलियां डालकर पता लगाने की कोशिश होता है कि वह सेक्शुअली ऐक्टिव है या नहीं। इस टेस्ट से हाइमन को जांचा जाता है। हाइमन से ही पता लगाने की कोशिश होती है कि वह सेक्शुअली ऐक्टिव है या नहीं। हालांकि इस पद्धति को गलत बताया जाता है। हाइमन कई कारणों से फट सकता है। मेडिकल साइंस भी इस बात को स्वीकार करता है कि चोट लगने या फिर खेलकूद के दौरान भी इसे नुकसान पहुंच सकता है। 2013 में ही सुप्रीम कोर्ट ने इसपर रोक लगा दी थी।
सिविल अस्पताल पालमपुर में डॉक्टरों पर सख्ती बरती जाएगी। उन सभी डॉक्टरों के खिलाफ जांच होगी जिन्होंने प्रोफॉर्मा तैयार किया और एमएलसी जारी की। कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर कोई डॉक्टर रिटायर हो गया है तो उसके खिलाफ भी जांच होनी चाहिए। उसे छोड़ा नहीं जाना चाहिए।
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