शिमला। दिवाली (Diwali) की दस्तक के बीच हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) में सियासी त्योहार (political festival) भी पूरे रंग में है। पहाड़ी राज्य में विधानसभा चुनाव (assembly elections) की तैयारियां जारी हैं। खास बात है कि यहां बीते तीन दशकों में सत्ता कांग्रेस (Congress) और भारतीय जनता पार्टी (Bharatiya Janata Party) के बीच बार-बार बदलती रही है, लेकिन इस बार मुकाबला अलग है। क्योंकि आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) की एंट्री से चुनावी युद्ध त्रिकोणीय होता दिख रहा है। इधर, तीनों ही दल अपने-अपने स्तर पर परेशानियों का भी सामना कर रहे हैं।
भाजपा: बगावत, बगावत और बगावत
राज्य में सत्तारूढ़ भाजपा सत्ता में बने रहने की कोशिश कर रही है। हालांकि, उम्मीदवारों की घोषणा के बाद पार्टी नेताओं की बगावत का भी सामना कर रही है। इससे मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर (Ram Thakur) का गृहजिला मंडी भी अछूता नहीं है। यहां पार्टी के मीडिया सह प्रभारी प्रवीण शर्मा ने टिकट नहीं मिलने के चलते मंडी सदर से निर्दलीय उतरने का फैसला किया है। दरअसल, भाजपा ने 11 मौजूदा विधायकों के टिकट काट दिए हैं। साथ ही बागियों को 6 साल के निलंबन की चेतावनी भी दे दी है।
इसके अलावा कांग्रेस से आने वाले नेताओं को टिकट मिलने से भी पार्टी के पूर्व विधायक नाराज हैं। नलगढ़ सीट से कांग्रेस विधायक लखविंदर सिंह राणा को टिकट मिलने पर भाजपा के पूर्व विधायक केएल ठाकुर ने निर्दलीय नामांकन भरा है। धर्मशाला में भी भाजपा के मौजूदा विधायक विशाल नेहरिया के करीब 200 समर्थकों ने कांग्रेस से आने वाले राकेश चौधरी को टिकट दिए जाने के विरोध में इस्तीफा दे दिया है।
परिवार में कलह
इसके अलावा भाजपा और कांग्रेस दोनों ही पार्टियां टिकट बंटवारे पर परिवारों में भी चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। जलशक्ति मंत्री महेंद्र सिंह ठाकुर के बेटी वंदना गुलेरिया ने भाई रजत ठाकुर को टिकट मिलने के चलते महिला मोर्चा पद से इस्तीफा दे दिया। कुल्लू (सदर) से भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष माहेश्वर सिंह को टिकट मिलने पर बेटे हितेश्वर सिंह ने बंजार से निर्दलीय लड़ने की चेतावनी दी है। दरअसल, भाजपा में एक परिवार एक टिकट का नियम है।
हालांकि, कांग्रेस भी इससे अछूती नहीं है। पूर्व मंत्री करण सिंह के बेटे आदित्य विक्रम सिंह ने टिकट नहीं मिलने पर कांग्रेस छोड़ दी। अब भाजपा में शामिल होने पर अगर उनके कजिन हितेश्वर निर्दलीय चुनाव लड़ते हैं, तो वह अपने ही भाई के खिलाफ प्रचार करते नजर आएंगे।
कांग्रेस: नेतृत्व का संकट
राज्य के 6 बार के मुख्यमंत्री रहे वीरभद्र सिंह के निधन के बाद कांग्रेस नेतृ्त्व संकट से जूझ रही है। हालांकि, पार्टी ने उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह को जिम्मेदारी सौंपी है, लेकिन कहा जा रहा है कि इससे भी पार्टी को खास फायदा नहीं हुआ है। खबर है कि कांग्रेस भी आंतरिक झगड़ों के चलते मुश्किलों का सामना कर रही है। कांग्रेस को कुछ सीटों पर टिकट वितरण में जमकर माथापच्ची करनी पड़ी थी।
आम आदमी पार्टी: बिखर रहे नेता
पहाड़ी राज्य में कुछ महीनों पहले मुकाबला त्रिकोणीय होता नजर आ रहा था। क्योंकि आप के राष्ट्रीय संयोजक और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल दिग्गजों के साथ दम भर रहे थे। हालांकि, मौजूदा स्थिति में आप की रफ्तार धीमी पड़ती नजर आ रही है। साथ ही पार्टी नेताओं के साथ को भी तरस रही है। कई बड़े नाम भाजपा या कांग्रेस के साथ चले गए हैं। इनमें अनूप केसरी, निक्का सिंह पटियाल का नाम शामिल है। हालांकि, आप दावा कर रही है कि पार्टी के कई उम्मीदवार शानदार प्रदर्शन करेंगे।
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