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    उच्च शिक्षा विभाग ने सरकार को लगा दिया 300 करोड़ का चूना

  • October 18, 2020

    • नियमों की गलत व्याख्या कर प्राध्यपकों को कर दिया ज्यादा भुगतान

    भोपाल। आर्थिक संकट से जूझ रही राज्य सरकार को उच्च शिक्षा विभाग ने 300 करोड़ रुपए का चूना लगा दिया है। उच्च शिक्षा विभाग में प्रोफेसर्स को दिए जा रहे पांचवें यूजीसी वेतनमान के प्लेसमेंट (स्थानन) में बड़ी अनियमितता सामने आई है। मप्र शासन ने 1999 में 5वां यूजीसी वेतनमान लागू किया। इसमें 1996 की स्कीम में पात्र फैकल्टी को सीनियर स्केल में 5 वर्ष की सर्विस की अनिवार्यता की शर्त में छूट देकर नियमविरुद्ध तरीके से लाखों का फायदा वर्तमान में पहुंचाया जा रहा है। हालांकि उच्च शिक्षा मंत्री मोहन यादव ने गलत भुगतान पर रिकवरी की बात कही है। हालांकि उन्हें इसकी ज्यादा जानकारी नहीं है। इसमें विभागीय मंत्रालय व संचालनालय में ओएसडी बन कार्य कर रही फैकल्टी ने अपने फायदे के लिए प्रशासनिक अधिकारियों के साथ मिल नियमों को तोड़ मरोड़ कर फायदा लिया। साथ ही अपने जैसे करीब 300 प्रोफेसर्स को भी गलत लाभ पहुंचाया। इससे राज्य सरकार को 300 करोड़ से अधिक का नुकसान इस कोराना के संक्रमण काल में हुआ है। इससे एक प्रोफेसर्स को 8 से 10 लाख रुपए एरियर मिल रहा है। साथ ही 10 से 15 हजार प्रतिमाह अतिरिक्त फायदा मिल रहा है। खास बात यह है कि इसके लिए यूजीसी 7वें वेतानमान के लिए वित्त विभाग द्वारा दी गई सहमति का नियमविरूद्ध तरीके से वेतन प्लेसमेंट आदेशों में इस्तेमाल किया जा रहा है।

    नियमों को तोड़मरोड़ कर लिया फायदा
    यूजीसी ने पांचवें यूजीसी वेतनमान में फिक्सेशन के लिए सीनियर स्केल में 5 वर्ष की सर्विस अनिवार्य रखी और उन प्रोफेसर्स को इससे छूट दी गई, जिनका 1986 की स्कीम में फिक्सेशन हो चुका था। लेकिन ओएसडी स्तर के अधिकारियों ने नियमों की गलत व्याख्या कर 1996 की अपात्र फैकल्टी को भी इसका लाभ दे दिया। 2008 में एक स्पष्टीकरण जारी किया गया। इसमें सिलेक्शन ग्रेड के लिए सीनियर ग्रेड में सभी फैकल्टी की 5 वर्ष की सर्विस अनिवार्य की गई। इसके कारण सीनियर फैकल्टी द्वारा हाईकोर्ट में सैंकड़ों याचिकाएं दायर की गई। जिसमें कोर्ट ने शासन द्वारा की गई कार्रवाई को गलत माना। उन्हें 5 वर्ष की छूट देने के मामले में फिर से परीक्षण के आदेश दिए। विभाग ने कोर्ट के आदेश पर कार्रवाई करते हुए 2008 के स्पष्टीकरण आदेश के कारण बने विवाद को 13 दिसंबर 2019 को एक आदेश जारी खत्म कर दिया। विवाद खत्म होने के बाद भी विभाग द्वारा गलत तरीके से वेतनमान आदेश की अनदेखी कर जूनियर फैकल्टी को नियमविरुद्ध तरीके से सीनियर स्केल में 5 वर्ष की अनिवार्यता से छूट दे दी।

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