– जावेद अनीस
अक्टूबर 2009 में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने बक्सवाहा में ऑस्ट्रेलिया की हीरा कंपनी रियो टिन्टो के हीरा सेम्पल प्रोसेसिंग प्लांट का उद्घाटन करते हुये कहा था कि जल्दी ही इस क्षेत्र में उच्च कोटि का हीरा मिलने की संभावना है, जिससे क्षेत्र का विकास होगा, आर्थिक समृद्धि आएगी और साथ ही स्थानीय लोगों को रोजगार भी मिलेगा।
आज यही उच्च कोटि का हीरा इस क्षेत्र के जंगल और इकोसिस्टम के लिये सिरदर्द बन चुका का है. दरअसल बकस्वाहा के इस जंगल में 3.42 करोड़ कैरेट हीरे दबे होने का अनुमान लगाया गया है, जिसे देश का सबसे बड़ा हीरा भंडार बताया जा रहा है साथ ही इसकी गुणवत्ता भी बहुत अच्छी बतायी जा रही है। इसी हीरे के भंडार को निकालने के लिये बकस्वाहा के करीब 382.131 हेक्टेयर जंगल क्षेत्र को खत्म करने की योजना है, और सरकारी अनुमान के मुताबिक़ इसमें करीब 2 लाख 16 हजार पेड़ काटे जायेंगें। जाहिर है वास्तविक रूप में यह संख्या कहीं अधिक हो सकती है। लेकिन यह सिर्फ पेड़ों की कटाई का ही मसला नहीं है बल्कि इससे एक जंगल का इकोसिस्टम भी खत्म हो जायेगा, जिसमें इस जंगल मे रहने वाले हजारों जानवर, पक्षी, औषधीय पेड़, पौधे और अन्य जीव शामिल हैं। किसी भी जंगल के इकोसिस्टम को बनने में हजारों साल लग जाते हैं।
गौरतलब है कि मई 2017 में मध्यप्रदेश के जियोलॉजी एंड माइनिंग विभाग और हीरा कंपनी रियो टिन्टो द्वारा पेश किये गये रिपोर्ट में बताया गया था कि बकस्वाहा के जंगल में तेंदुआ, बाज, भालू, बारहसिंगा, हिरण, मोर जैसे वन्यजीव पाए जाते हैं लेकिन अब बताया जा रहा है कि इस जंगल में संरक्षित वन्यजीव नहीं हैं।
लंबे समय से बुंदेलखंड गरीबी और पलायन का शिकार रहा है, यहां की हरियाली और जल स्रोत पहले से ही नाजुक स्थिति में पहुंच चुकी है, लेकिन अब इस इलाके के बचे-खुचे हरे हिस्से पर भी इस प्रोजेक्ट की नजर लग गयी है। बक्स्वाहा क्षेत्र के ज़मीन में दफन हीरा ही उसका दुश्मन बन चूका है। हीरे के चक्कर में अगर जंगल नष्ट किया जाता है तो पहले से पानी की कमी की मार झेल रहे बुंदेलखंड के इस क्षेत्र में पानी की भीषण समस्या और गहरा सकती है। इसका असर पूरे बुंदेलखंड इलाके के ईको-सिस्टम पर असर पड़ना तय है। हीरा निकालने के लिये खदान को करीब 1100 फीट गहरा खोदा जाएगा जिससे आसपास के इलाके का भूमिगत जल स्तर प्रभावित हो सकता है साथ ही इस प्रोजेक्ट में रोजाना बड़ी मात्रा में पानी की जरूरत होगी, जिसे ज़मीन से निकाला जायेगा, जिससे बुंदेलखंड जैसा पहले से ही सूखाग्रस्त क्षेत्र बंजर बन सकता है। इसी प्रकार से बकस्वाहा के जंगल पर आसपास के गावों के एक हजार से ज्यादा परिवार अपने जीविकोपार्जन के लिये जंगल पर निर्भर हैं, जिनमें से अधिकतर आदिवासी हैं। अगर जंगल नष्ट किया जाता है तो इन परिवारों का जीविकोपार्जन भी पूरी तरह से प्रभावित होगा। फिलहाल प्रोजेक्ट बक्सवाहा को राज्य सरकार से हरी झंडी मिल चुकी है और केंद्र सरकार से मंजूरी मिलने का इन्तेजार है.
गौरतलब है कि 2004 में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा बुंदेलखंड क्षेत्र में हीरा की खोज के लिए सर्वे का काम रियो टिंटो कंपनी को दिया गया, जिसके तहत कंपनी को एक्सप्लोर करने की प्रोसपेक्टिंग लाइसेंस दिया गया था। उस दौरान स्थानीय स्तर पर इस प्रोजेक्ट और कंपनी का भी काफी विरोध हुआ था। बाद में रियो टिंटो ने खनन लीज के लिए आवेदन किया था। लेकिन मई 2017 में रियो टिंटो ने अचानक यहां अपना काम बंद कर दिया और कंपनी इस पूरी प्रक्रिया से अलग हो गयी।
इसके बाद 2019 में आदित्य बिड़ला समूह की कंपनी एसल माइनिंग ऐंड इंडस्ट्रीज़ लिमिटेड ने बकस्वाहा में माइनिंग के लिये सबसे ज्यादा बोली लगाई, जिसके बाद मध्यप्रदेश सरकार द्वारा इस कंपनी को जंगल 50 साल की माइनिंग लीज़ पर दिया गया है। स्थानीय अखबारों के अनुसार कंपनी ने कुल 382.131 हेक्टेयर का जंगल क्षेत्र मांगा है, जिसके एक हिस्से का उपयोग खनन करने और प्रोसेस के दौरान खदानों से निकला मलबा डंप करने में किया जाएगा। बताया जा रहा है कि है एक बार ये प्रोजेक्ट शुरू हो गया तो ये एशिया का सबसे बड़ा डायमंड माइन्स बन सकता है।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान बक्सवाह जंगल में कटने वाले पेड़ों के एवज़ में क्षतिपूर्ति में एक के मुकाबले चार पेड़ लगाने की बात कर रहे हैं, लेकिन खुद शिवराज सरकार ने अभी तक जितने भी वनीकरण किये हैं, वो बस हवाई साबित हुये हैं। साथ ही हम सब जानते हैं कि एक जंगल की भरपाई पौधे लगाकर तो नहीं की जा सकती है, जंगल तो सदियों में बनते हैं। इसीलिए “प्रोजेक्ट बक्सबाहा” के विरोध का दायरा लगातार बढ़ता जा रहा है। खास बात यह है कि इस मुद्दे के दायरे को बड़ा बनाने में युवाओं और सोशल मीडिया की महत्वपूर्ण भूमिका है, स्थानीय युवा समूह बक्सबाहा के मुद्दे को ट्विटर पर कई बार ट्रेंड करा चुके हैं जिससे देश भर के लोग और समूह इससे परिचित हुये हैं और जुड़े हैं।
साथ ही इस मुद्दे को लेकर सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका भी दायर की गयी है। शायद विरोध के दायरे को बढ़ता देखते हुये प्रदेश भाजपा अध्यक्ष वीडी शर्मा को सामने आकर कहना पड़ा कि “बकस्वाहा प्रोजेक्ट का विरोध करने वाले लोग वामपंथी हैं जो विकास में रोड़ा पैदा कर रहे हैं”। इधर लॉकडाउन हटने के बाद से कुछ जमीनी कारवाही भी शुरू हुयी हैं। इसी कड़ी में एक से चार जुलाई के दौरान युवाओं द्वारा दमोह शहर से बक्सवाहा के जंगल तक पदयात्रा निकाली जा गयी है, जिसका मकसद स्थानीय स्तर पर लोगों के बीच इस मुद्दे को पहुंचाते हुये उनका समर्थन जुटाना था।
इस मामले में नागरिक उपभोक्ता मंच द्वारा राष्ट्रीय हरित अधिकरण भोपाल में भी एक याचिका दायर की गयी थी, जिसपर बीते 2 जुलाई को सुनवाई करते हुये एनजीटी ने कहा है कि बिना वन विभाग की अनुमति के बक्सवाहा के जंगलों में एक भी पेड़ न काटा जाए। साथ ही एनजीटी ने बक्सवाहा मामले में में फॉरेस्ट कंजर्वेशन एक्ट, इंडियन फॉरेस्ट एक्ट तथा सुप्रीम कोर्ट द्विया दिये गये निर्देशों के पालन करने का भी निर्देश दिया है। एनजीटी द्वारा इस मामले में अगली सुनवाई 27 अगस्त को तय की गयी है।
जंगल हमारी धरती के फेफड़े हैं, ये इंसानों द्वारा पैदा किये गये कार्बन सोखकर ग्लोबल वार्मिंग को कम करते हैं, इन्हीं के बदोलत हमें साफ़ हवा मिलती है जो अभी भी काफी हद तक मुफ्त और सबकी पहुँच में है। करोना की दूसरी लहर के दौरान आक्सीजन की मारा-मारी ने तो हमें समझा ही दिया है कि बिना आक्सीजन के कोई भी इंसान बिन पानी के मछली की तरह है। लेकिन इन सबके बावजूद भी विकास के नाम पर इंसानी लालच का आत्मघाती खेल मुसलसल जारी है। पिछले कुछ वर्षों से ब्राजील में अमेज़न के वर्षा वनों के साथ जो खेल खेला जा रहा उसे हम देख ही रहे हैं। कुछ ऐसे ही खेल भारत के बक्सवाहा में भी खेला जा रहा है जहां बदकिस्मती से उच्च कोटि के हीरे की कीमत एक बसे –बसाये जंगल को उजाड़ने की तैयारी की जा रही है। प्रोजेक्ट बक्सवाहा जैसी परियोजनाओं का व्यापक देशव्यापी विरोध जरूरी है। साथ ही इसके बरअक्स हवा, पानी, जंगल और जानवरों को इंसानी लालच से बचाने वाली परियोजना चलाये जाने की जरूरत है जो दरअसल इंसानों को बचाने की परियोजना होगी।
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved