भोपाल। हाई कोर्ट ने पीएससी प्रारंभिक परीक्षा में पूछे गए एक प्रश्न के दो उत्तरों के विवाद में अहम फैसला दिया। मुख्य न्यायाधीश रवि मलिमठ व न्यायमूर्ति पुरुषेंद्र कुमार कौरव की युगलपीठ इस ने एकलपीठ के उस फैसले को स्थगित कर दिया, जिसमें केंद्र सरकार की रिपोर्ट को राज्य सरकार की रिपोर्ट पर वरीयता देते हुए मध्य प्रदेश में सागौन वनक्षेत्र 30 प्रतिशत माना गया था। कोर्ट ने तल्ख टिप्पणी में कहा कि एक्सपर्ट कमेटी के मत पर एकलपीठ ने अपीलीय अधिकारी की तरह निर्णय दिया, जो गलत था। यदि एकलपीठ के आदेश का पालन हुआ तो इसके गंभीर परिणाम होंगे। मध्य प्रदेश में सागौन के वन क्षेत्र प्रतिशत के संबंध में पीएससी में पूछे गए एक प्रश्न के उत्तर को लेकर विरोधाभास है। अभिजीत चौधरी सहित आठ उम्मीदवारों ने इसे याचिका के माध्यम से चुनौती दी है।
याचिकाकर्ताओं की ओर से कोर्ट को बताया कि केन्द्र सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय द्वारा जारी इंडिया स्टेट आफ फारेस्ट रिपोर्ट 2019 के अनुसार मप्र में 29.54 प्रतिशत सागौन आच्छादित जंगल है। वहीं मध्य प्रदेश सरकार ने यह आंकड़ा 19.36 बताया है। पीएससी उम्मीदवारों ने केन्द्र सरकार की रिपोर्ट को आधार मानकर उत्तर दिया है, जबकि पीएससी राज्य सरकार की रिपोर्ट को आधार मान रही है। हाई कोर्ट की एकलपीठ ने केंद्र सरकार के डेटा को सही ठहराते हुए 30 फीसदी सागौन के वन को सही उत्तर माना था। इसी के खिलाफ एमपीपीएससी ने अपील दायर की थी, जिसे कोर्ट ने स्वीकार कर लिया। कोर्ट ने कहा कि एकलपीठ ने एक्सपर्ट कमेटी की राय पर अपीलीय अधिकारी की तरह आदेश दिया, जो गलत है। केंद्र के डेटा को राज्य के डेटा पर वरीयता देने के सम्बंध के कोई न्यायिक प्राक्कथन नहीं है।
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