मुंबई (Mumbai) । बॉम्बे हाई कोर्ट (Bombay high court) ने सोमवार को कहा कि उसे अफसोस के साथ कहना पड़ रहा है कि मराठा समुदाय (Maratha Community) को आरक्षण (Reservation) देने के महाराष्ट्र सरकार (Maharashtra Government) के फैसले को चुनौती देने के लिए दाखिल कुछ याचिकाओं (Petitions) में बेतुकी दलीलें दी गई हैं। मुख्य न्यायधीश डी.के. उपाध्याय, न्यायमूर्ति जी.एस. कुलकर्णी और न्यायमूर्ति फिरदौस पूनीवाला की पूर्ण पीठ ने कहा कि यह मुद्दा गंभीर है और राज्य की बड़ी आबादी को प्रभावित करने वाला है। इसलिए याचिकाकर्ताओं को अपनी दलीलें पेश करते समय अधिक सावधानी बरतनी चाहिए थी।
महाराष्ट्र राज्य सामाजिक और शैक्षणिक पिछड़ा वर्ग आरक्षण अधिनियम-2024 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने के लिए कई याचिकाएं दायर की गई हैं। इस अधिनियम में मराठा समुदाय के लिए सरकारी नौकरियों और शिक्षा में 10 फीसदी आरक्षण का प्रावधान किया गया है।
कुछ याचिकाओं में सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति सुनील शुक्रे की अध्यक्षता में महाराष्ट्र राज्य पिछड़ा वर्ग आयोग की स्थापना, इसकी कार्यप्रणाली और मराठा समुदाय के लोगों को आरक्षण देने की सिफारिश करने वाली इसकी रिपोर्ट को भी चुनौती दी गई थी। उच्च न्यायालय की पीठ ने संबंधित सभी याचिकाओं पर शुक्रवार को अंतिम सुनवाई शुरू की।
याचिकाकर्ताओं में से एक भाऊसाहेब पवार ने सोमवार को अपने वकील सुभाष झा के माध्यम से एक अर्जी देकर आयोग को प्रतिवादी बनाने का अनुरोध किया। पवार ने अपनी याचिका में कानून और आयोग गठित करने की वैधता को चुनौती दी है। महाराष्ट्र सरकार की ओर से पेश हुए महाधिवक्ता बीरेंद्र सर्राफ ने कहा कि वह पहले दिन से ही कह रहे हैं कि इस मामले में आयोग को अपनी बात कहने का अधिकार होना चाहिए, क्योंकि इसकी नियुक्ति और इसकी रिपोर्ट को चुनौती दी गई है।
याचिकाकर्ताओं ने हालांकि आयोग को पक्षकार बनाये जाने का विरोध करते हुए दावा किया कि उनकी याचिकाओं में अधिनियम की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है, इसलिए आयोग के पक्ष को सुनने की आवश्यकता नहीं है। उन्होंने सुनवाई जारी रखने का अनुरोध किया।
राज्य सरकार की ओर से पेश अधिवक्ता वी.ए.थोराट ने रेखांकित किया कि कुछ याचिकाकर्ताओं ने आयोग के सदस्यों पर कई आरोप लगाए हैं। उन्होंने कहा, ‘‘एक याचिकाकर्ता ने सीमा लांघते हुए न्यायमूर्ति शुक्रे को मराठा कार्यकर्ता बताया है।’’ पीठ ने कहा कि वह अर्जियों से परेशान नहीं होती, लेकिन कुछ याचिकाओं में आयोग और उसकी रिपोर्ट के खिलाफ राहत मांगी गई है, और इसलिए, पहले आवेदन (पक्षकार बनाने के अनुरोध) पर सुनवाई करना उचित होगा।
मुख्य न्यायाधीश उपाध्याय ने कहा, ‘‘मुझे यह कहते हुए बहुत अफसोस हो रहा है, लेकिन कुछ याचिकाओं में बिना विचारे दलीलें दी गई हैं। यह एक गंभीर मामला है जो राज्य में बड़ी संख्या में लोगों को प्रभावित करने वाला है। आप सभी को दलीलें पेश करते समय अधिक सावधान रहना चाहिए था। अधिनियम की वैधता को चुनौती देते हुए स्पष्ट अनुरोध किया जाना चाहिए था।’’ अदालत ने कहा कि वह मंगलवार को भी सुनवाई करेगी और तय करेगी कि आयोग को पक्षकार बनाया जाए या नहीं।
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