रेन बसेरों को और बेहतर बनाने के भी दिए निर्देश, इंदौर की तरह अन्य शहरों में पुनर्वास केन्द्र भी नहीं हैं
इंदौर। हाईकोर्ट ने एक जनहित याचिका (public interest litigation) की सुनवाई करते हुए बिना वारंट भिखारियों (beggars) की गिरफ्तारी को लेकर शासन को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है। याचिकाकर्ता (petitioner) ने इस बात पर आपत्ति ली कि एक तरफ तो शासन अलग-अलग योजनाओं के तहत भिखारियों के पुनर्वास और उनको सुविधाएं देने के दावे करता है, दूसरी तरफ कानून के जरिए बिना वारंट गिरफ्तारी करवाई जाती है। दरअसल, मध्यप्रदेश भिक्षावृत्ति निवारण अधिनियम की धाराओं को चुनौती दी गई।
दिल्ली हाईकोर्ट और जम्मू कश्मीर हाईकोर्ट राज्यों द्वारा लागू किए गए ऐसे कानूनों को पहले ही रद्द कर चुकी है। वहीं संस्था मातृ फाउंडेशन द्वारा इंदौर हाईकोर्ट में भी इसी आशय की जनहित याचिका दायर की गई, जिसमें याचिकाकर्ता ने मध्यप्रदेश भिक्षावृत्ति निवारण अधिनियम 1973 और उसके रुल्स की संवैधानिक वैधता को संविधान के अनुच्छेद 14, 19 और 21 के खिलाफ बताया। इस जनहित याचिका की पैरवी कर रहे अभिभाषक अमेय बजाज के मुताबिक अधिनियम की कई धाराएं पुलिस को किसी भी भिक्षुक या भिखारी को बिना वारंट गिरफ्तारी के अधिकार देती है, जिसके उपरांत उन पर क्रिमिनल ट्रायल चलाया जाता है, दूसरी तरफ राज्य सरकार भिखारियों के पुनर्वास और अन्य सुविधाओं की बात करती है। इंदौर को ही प्रोजेक्ट स्माइल के तहत इसी विषय पर करोड़ों रुपए का फंड देना तय किया गया है। सिर्फ इंदौर जिले में ही भिखारियों के लिए अधिकृत संस्था है, लेकिन बाकी शहरों में ऐसी कोई सुविधा नहीं है, लिहाजा हाईकोर्ट ने इस मामले में शासन को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है।
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