नई दिल्ली । उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) के पास एक ऐसा मामला पहुंचा, जिसमें पहले तो नीचे की अदालत (High Court) ने यह देखना उचित नहीं समझा कि विवाह कानून द्वारा तय उम्र में हुआ भी है या नहीं, फिर उस पर गुजारा भत्ता देने का जो निर्णय लिया गया वह सुप्रीम कोर्ट को पूरी तरह से अजीबोगरीब फैसला (Judgment) लगा है। दरअसल एक मामले में 20 वर्षीय युवक को लड़की को गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया गया है। कानूनन जिस उम्र में विवाह नहीं हो सकता, उसके बावजूद एक नहीं, बल्कि दो अदालतों ने ऐसा आदेश पारित किया है। अब सुप्रीम कोर्ट इसी आदेश से हैरान है।
उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट में शुक्रवार को जब यह मामला पहुंचा, तो चीफ जस्टिस एस ए बोबडे भी अचरज में पड़ गए। तीन सदस्यीय पीठ की अध्यक्षता कर रहे चीफ जस्टिस ने अपने दो साथी जजों से भी इस मामले को लेकर चर्चा की, लेकिन सभी इस फैसले से हैरान थे। वकील रचिता प्रियंका राय ने कहा कि उनका मुवक्किल जब महज 20 वर्ष का था, मार्च 2006 को अपने गांव की ही एक लड़की के साथ भाग गया था। दोनों जमशेदपुर गए और और वहां करीब एक हफ्ते तक साथ रहे।
याचिका के मुताबिक, इसके बाद दोनों वापस अपने गांव गए। गांव की पंचायत ने दोनों की शादी कराने की कोशिश की, लेकिन कुछ परिस्थितिवश दोनों की शादी नहीं हो सकी। इसके बाद लड़की ने लड़के के खिलाफ प्रताड़ना और गुजारे भत्ते की मांग के लिए दो मुकदमे दर्ज कराए। लड़की का कहना था कि उसके लिव इन रिलेशन को शादी के संबंध के समान माना जाए।
ट्रायल कोर्ट ने लड़की की बातों को स्वीकार करते हुए लड़के को प्रताड़ना के जुर्म में एक वर्ष कैद की सजा सुनाई। साथ ही अदालत ने लड़के को हर महीने 5,000 रुपये लड़की को गुजारा भत्ता देने के लिए कहा। ट्रायल कोर्ट के इस आदेश को लड़के ने झारखंड हाईकोर्ट में चुनौती दी। हाईकोर्ट ने शादी न होने की बात मानते हुए आपराधिक मुकदमा तो खत्म कर दिया, लेकिन गुजारा भत्ता देने का आदेश बरकरार रखा। वकील रचिता ने पीठ के समक्ष हाईकोर्ट के आदेश पर सवाल उठाते हुए कहा कि कानून 20 वर्ष की उम्र में कोई शादी नहीं कर सकता, तो लड़की के साथ किसी भी संबंध को शादी के समान कैसे माना जा सकता है।
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