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    हिजबुल्लाह ने इजरायल पर किया बड़ा हमला, दागे 1300 से ज्यादा ड्रोन और रॉकेट, तबाह हुआ मिलिट्री बेस

  • September 14, 2024

    नई दिल्ली: ईरान समर्थित लेबनान (Iran-backed Lebanon) के आतंकी समूह हिजबुल्लाह (Hezbollah) ने शनिवार को इजरायली टारगेट्स (Israeli Targets) पर 1307 ड्रोन्स और सैकड़ों रॉकेटों से हमला किया. दावा किया गया है कि सभी ड्रोन्स इजरायली टारगेट पर सटीक तरीके से गिरे. लेकिन इजरायल का कहना है कि उसके आयरन डोम ने अधिकतर हमलों को हवा में ही नष्ट कर दिया.

    इजरायल ने कहा कि जो भी ड्रोन्स और रॉकेट ने इजरायली जमीन पर हमला किया, वो या तो खुले इलाके में गिरे या फिर उन्हें एयर डिफेंस सिस्टम ने आसमान में खत्म कर दिया. हिजबुल्लाह ने इजरायल को धमकी दी है कि अगर उसने गाजा पट्टी में फिलिस्तीनी लोगों का जनसंहार खत्म नहीं किया तो और ज्यादा घातक हमले होंगे.


    जब से इजरायल ने फिलिस्तीन के खिलाफ जंग छेड़ी है, तब से लेकर अब तक गाजा में 41 हजार फिलिस्तीनी लोग मारे जा चुके हैं. इसमें ज्यादातर महिलाएं और बच्चे हैं. इसके अलावा हिजबुल्लाह के रॉकेट हमले में अल-मायादीन के जलील में मौजूद इजरायली बेस बर्बाद हो गया. इतना ही नहीं, हिजबुल्लाह ने अमियाद इलाके में इजरायली मिलिट्री बेस पर भी हमला किया. इसके लिए हिजबुल्लाह ने कात्युशा रॉकेट का इस्तेमाल किया है. कात्युशा रॉकेट सेकेंड वर्ल्ड वॉर से लेकर अब तक इस्तेमाल हो रहा है. जैसे- पहला इंडो-चाइना वॉर, कोरियन वॉर, वियतनाम युद्ध, ईरान-इराक की जंग, लीबिया और सीरिया युद्ध और अब इजरायल हिजबुल्लाह के बीच.

    1941 से यह रॉकेट बनाया जा रहा है. अब तक एक लाख से ज्यादा रॉकेट्स बन चुके हैं. कात्युशा रॉकेट के कई वैरिएंट्स हैं. इसलिए हर वैरिएंट का अलग-अलग वजन और कैलिबर होता है. जैसे 82 मिलिमीटर से लेकर 300 मिलिमीटर तक के 8 वैरिएंट्स हैं. उसी हिसाब से इनका वजन होता है. 640 ग्राम से लेकर 28.9 किलोग्राम तक.

    उसी हिसाब से इनकी रेंज भी है. 2800 मीटर से लेकर 11,800 मीटर तक. यानी करीब तीन किलोमीटर से लेकर 12 किलोमीटर तक. रूस इस रॉकेट को बनाने में 1928 से लगा था. मार्च 1928 में जो पहला रॉकेट टेस्ट किया गया था. वो 1300 मीटर जाकर गिर गया था. इसके बाद इसे और अपग्रेड किया गया. मजेदार बात ये है कि इसे लॉन्च करने के लिए ट्रक, टैक्टर, टैंक, कार, नाव, स्लेज, ट्रॉलर या ट्राईपॉड का इस्तेमाल कर सकते हैं.

    सोवियत संघ के समय बने इस रॉकेट को BM-13 भी बुलाते हैं. एक बीएम-13 बैटरी में चार से छह जवानों वाली फायरिंग व्हीकल होते हैं. दो फायरिंग के लिए और दो लोडिंग के लिए. ये लॉन्चर लगातार रॉकेट हमला करके किसी भी इलाके को बर्बाद कर सकता है, इससे पहले की दुश्मन इस पर हमला करें, ये अपनी जगह बदल सकता है.

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