नई भागवत कथा… संघ प्रमुख मोहन भागवत ने अपनी मोहनी शैली में नई भागवत सुनाते हुए समाज में ऊंची-नीची जाति बनाने का दोष पंडितों पर मढ़ते हुए कहा कि भगवान ने जातियों में कोई वर्ग भेद नहीं किया… यह सब किया धरा पंडितों का है और इससे समाज विभक्त हुआ… संघ प्रमुख की यह भागवत शिरोधार्य कर भी लें तो कई सवाल मन में उठने लगेंगे… फिर कुरूक्षेत्र के मैदान में जिस तरह श्रीकृष्ण ने अर्जुन के मन में उठते सवालों का उत्तर दिया था, उसी तरह इस युग के मोहन को भी प्रश्नों की जिज्ञासा को शांत करना ही पड़ेगा… भगवान ने इंसान बनाया… इंसान ने जातियां… यही इंसान पहले धर्म और मजहब में बंटा… कोई मुसलमान बना तो कोई हिन्दू… कोई ईसाई बना तो किसी ने बौद्ध धर्म अपनाया… लेकिन हिन्दुओं में ऊंच-नीच का जाति भेद कहां से आया… हमें तो स्कूल में पढ़ाया था कि जिसने जो पेशा अपनाया, वो उस जाति का कहलाया… व्यापार करने वाला वैश्य… राज करने वाला क्षत्रिय… रक्षा करने वाला सिख बनकर समाज में आया… फिर इस भेद को समाज ने और बढ़ाया… दर्जी, कुम्हार, लुहार, नाई जैसे अनेक पेशेवरों ने अपने -अपने काम के हिसाब से समाज में स्थान पाया… सफाई करने वाला हरिजन कहलाया तो चमड़े का काम करने वाला मोची… जिसने जैसे कामों को अपनाया, उसने वैसा सम्मान पाया… इस वर्ग भेद में तो कहीं कोई पंडित नजर नहीं आया… क्योंकि पंडितों ने तो हर वर्ग के व्यक्ति को पूजा-पाठ, धर्म -शा, कर्म-कांड का पाठ पढ़ाया… फिर जातियों के इस शांत प्रभाव में ऊंच-नीच का भेद कौन लाया… देश ने जब गुलामी को भुगता तो हिन्दू हो या मुसलमान, सिख हो या क्षत्रिय सबने मिलकर अंग्रेजों का मुकाबला किया… गांधी ने हरिजनों को गले लगाया… वैश्यों ने धन लुटाया… लुहारों ने शस्त्र बनाए… जिससे जो बन पड़ा वो किया और थर्राए अंग्रेज देश छोड़ते नजर आए… देश तो आजाद हो गया भागवतजी… लेकिन हम नेताओं के गुलाम हो गए… नेताओं ने पाकिस्तान बनाया… नेताओं ने कश्मीर का झगड़ा बढ़ाया… नेताओं ने हिन्दू और मुसलमानों में बंटवारा कराया… इतने पर भी उनका पेट नहीं भर पाया तो नेताओं ने ही समाज में ऊंच-नीच का भेद कराया… जातियों को अगड़ों-पिछड़ों में बंटवाया… पिछड़ों को शिक्षा से लेकर नौकरी तक में आरक्षण देकर अगड़ों से लड़वाया… और अगड़ों को यह बताया कि यह पिछड़ा है… और पिछड़ों को बताया कि यह अगड़ा है… जब एक के अधिकारों पर दूसरे का डाका नजर आया, तब नफरत और वर्ग भेद ने सिर उठाया… भागवतजी इसमें पंडित कहां से आया… आज नेता चुनाव पर भी आरक्षण लादते हैं… जाति और वर्ग भेद के आधार पर टिकट बांटते हैं… दलितों और सामान्य वर्गों को आपस में बांटते हैं… हम तो बस उन नेताओं को वोट डालते हैं… जो जीत जाए, उसे सिर पर बिठाते हैं… सच तो यह है कि सरकार के आरक्षण की व्यवस्था ऊंच-नीच की श्रेणी बनाती है… भगवान के बनाए इंसानों में वर्ग भेद कराती है… आप तो भागवतजी इस युग के मोहन बन जाइये… राजनीतिक दलों से यह वर्ग भेद मिटवाइये और हमें एक कर हमारा हिन्दुस्तान दिलवाइये, वरना ये भागवत कथा मत दोहराइये कि समाज में ऊंच-नीच की श्रेणी पंडितों ने बनाई है… देश में जाति-भेद की गंदगी समाज ने फैलाई है…
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