कटनी। पत्थरों पर छैनी हथौड़ी (chisel hammer on stones) की खनक, बारीकियों पर नजर और कई दिनों की कड़ी मेहनत और उस मेहनत उभरी कलाकृति, जिसे देखकर लोग दांतों तले उंगलियां दबा लेते हैं। हम बात कर रहे हैं, कटनी जिले के बिलहरी की वर्षों पुरानी मूर्तिकला (old sculpture) की। रीठी में निकलने वाले पत्थरों पर बिलहरी का बर्मन परिवार पिछली पांच पीढि़यों से इस कला से जुड़ा है। कटनी स्टोन पर उकेरी गई बोलती प्रतिमाओं की न सिर्फ जिले में बल्कि पूरे प्रदेश और उसके बाहर भी मांग है। बिलहरी कल्चुरी काल में राजाओं के कला का प्रमुख केन्द्र रहा है। जहां पर पत्थरों पर कलाकृतियां बनाने का काम होता था और उसे किला, मंदिरों सहित अन्य स्थानों पर राजा-महाराजा उपयोग करते थे। बिलहरी की वह कला आज भी जीवित है और लोगों को आकर्षित कर रही है।
बिलहरी में पत्थरों पर मूर्ति बनाने वाले बुजुर्ग जगदीश प्रसाद बर्मन ने बताया कि उनके परिवार में पहले स्वर्गीय काशी प्रसाद बर्मन काम करते थे। उनके बाद नर्मदा प्रसाद ने विरासत संभाली। नर्मदा प्रसाद दिवंगत हुए तो उनके परिवार के गिरधारी लाल, शंकर लाल व गोकुल प्रसाद बर्मन ने बुजुर्गों की विरासत को आगे बढ़ाने का काम किया। उनके बाद अब जगदीश और उनके साथ उनका बेटा जितेन्द्र बर्मन कला की इस विरासत को संभाले हुए है। बिलहरी में कटनी के पत्थरों की इसी कला का आगे बढ़ाने के लिए जिला प्रशासन द्वारा पत्थर को एक जिला एक उत्पाद में शामिल किया गया है और देशभर में पत्थर की डिमांड बढ़े इसके लिए कटनी स्टोन आर्ट फेस्टिवल का आयोजन किया जा रहा है।
शिल्पकार जगदीश बताते हैं कि शुरू से ही बिलहरी में बनाई जाने वाली पत्थर की दुर्गा प्रतिमा, हनुमान प्रतिमा की मांग रही है और आज भी है। इसके अलावा बिलहरी के ही गढ़ी घाट में निकली अनोखी शिव प्रतिमा को काफी लोग पसंद करते हैं। जिसमें पीछे के हिस्से में शिवलिंग है और आगे भगवान शिव का चेहरा बना हुआ है। इसके अलावा स्टैच्यू बनाने का काम भी वर्तमान में जगदीश, जितेन्द्र सहित उनके परिवार के राजकुमार, राजेश व सचिन कर रहे हैं।
शिल्पकार जगदीश ने बताया कि उनके बुजुर्ग बताया करते थे कि उनका परिवार पहले खजुराहो में रहता था और शिल्पकारी के चलते बिलहरी आया। जहां पर आज तक उस बुजुर्गों की विरासत को परिवार संभाले हुए है। उन्होंने बताया कि मूर्ति बनाने में वर्तमान में कुछ आधुनिक मशीनों का उपयोग पत्थर काटने को होने लगा है लेकिन अधिकांश काम छैनी व हथौड़ा के बल पर ही होता है। बिलहरी में बनी पत्थर की प्रतिमाओं व कलाकृतियों की मांग कटनी के अलावा आसपास के जिलों व खजुराहो, हैदराबाद तक है।
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