वेलिंगटन। ‘रॉकेट लैब’ ने मंगलवार को अपने छोटे इलेक्ट्रॉन रॉकेटों को पुन: इस्तेमाल योग्य बनाने की कोशिश की। इसके तहत उपग्रहों को अंतरिक्ष में पहुंचाने के लिए इस्तेमाल किए गए एक रॉकेट को हेलीकॉप्टर की मदद से पकड़ने की कोशिश की गई, लेकिन उसे पकड़ते ही हेलीकॉप्टर के चालक दल के सदस्यों को सुरक्षा कारणों के चलते उसे छोड़ना पड़ा और रॉकेट प्रशांत महासागर में गिर गया।
यहां से उसे एक नाव की मदद से बाहर लाया गया। इस अभियान को सफल बताते हुए कंपनी ने अप्रत्याशित भार को एक छोटी समस्या माना, जिसे जल्द ठीक कर दिया जाएगा। ‘रॉकेट लैब’ के सीईओ पीटर बेक ने बताया कि उपग्रहों को अंतरिक्ष में पहुंचाने के बाद पृथ्वी की ओर लौटते रॉकेट को हेलिकॉप्टर से पकड़ने का काम बेहद जटिल है। उन्होंने इस काम की तुलना ‘सुपरसोनिक बैले’ से की है। लेकिन इसमें सुधार किया जाएगा।
पैराशूट के जरिये पकड़ा रॉकेट
मंगलवार को एक इलेक्ट्रॉन रॉकेट को प्रक्षेपित किया गया और मुख्य बूस्टर सेक्शन के पृथ्वी पर गिरने से पहले उसने 34 उपग्रहों को कक्षा में भेजा। एक पैराशूट द्वारा उसके नीचे आने की गति को धीमा भी किया गया। इसके बाद हेलिकॉप्टर के चालक दल के सदस्यों ने रॉकेट को पैराशूट के जरिये पकड़ा, लेकिन हेलिकॉप्टर पर कुल भार, परीक्षण तथा ‘सिमुलेशन’ के मापदंडों से अधिक हो गया और इसलिए उन्होंने उसे गिराने का फैसला किया।
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