नई दिल्ली: भारत में भीषण गर्मी हर साल रिकॉर्ड तोड़ रही है. इस साल उत्तर भारत में गर्मी अभी भी झुलसा रही है. तापमान सामान्य से ज्यादा हो रहा है. गर्मी के मौसम में राजधानी दिल्ली समेत कई हिस्सों में पारा 45 डिग्री के पार चला गया था. लेकिन बढ़ती गर्मी से जितने बुरे हालात हमने अभी तक देखे हैं, उससे भी बदतर हालात आने वाले समय में बनने वाले हैं. ऐसा इसलिए, क्योंकि इस सदी के आखिर तक भारत का तापमान लगभग साढ़े 4 डिग्री तक बढ़ सकता है.
अमेरिका स्थित इंटरनेशनल फूड पॉलिसी रिसर्च इंस्टीट्यूट (IFPRI) की ग्लोबल फूड पॉलिसी पर ताजा रिपोर्ट में अनुमान लगाया गया है कि आने वाले समय में दक्षिण एशिया क्लाइमेट चेंज का सबसे बड़ा हॉटस्पॉट बन सकता है. इस रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2100 तक दक्षिण एशिया का तापमान 1.2 से 4.3 डिग्री सेल्सियस, जबकि भारत का तापमान 2.4 से 4.4 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है. क्लाइमेट चेंज की वजह से भारत में हीट वेव की घटनाएं भी तीन से चार गुना तक बढ़ सकती हैं.
रिपोर्ट में कहा गया है कि क्लाइमेट चेंज से निपटने के लिए अलग-अलग देश अपने-अपने स्तर पर कदम उठा रहे हैं, लेकिन दक्षिण एशियाई देश के एक्शन नाकाफी हैं. हालांकि, इंटरनेशनल वॉटर मैनेजमेंट इंस्टीट्यूट की प्रिंसिपल रिसर्चर अदिती मुखर्जी ने न्यूज एजेंसी को बताया कि वैश्विक औसत तापमान की तुलना में दक्षिण एशिया का औसत तापमान थोड़ा कम बढ़ा है.
IFPRI की रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले कुछ सालों से तापमान बढ़ने, सूखा पड़ने और बाढ़ आने की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं. इन सब घटनाओं से प्रोडक्टिविटी और प्रोडक्शन पर असर पड़ रहा है. रिपोर्ट में कहा गया है कि 1980 के दशक के बाद से दक्षिण एशिया में बाढ़ आना या सूखा पड़ना ज्यादा बढ़ गया है. वहीं, भारत में भी कुछ दशकों से गर्मियों में होने वाली बरसात में कमी आई है. इसी तरह पाकिस्तान में भी सूखे की तीव्रता और गंभीरता बढ़ी है.
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में कुछ जगहों पर कम समय में ज्यादा बारिश होने से बाढ़ का खतरा बढ़ा है. सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र नदी में बाढ़ का खतरा ज्यादा बढ़ा है. दूसरी ओर, उत्तरी हिंद महासागर क्षेत्र में चक्रवाती तूफान थोड़े कम जरूर हुए हैं, लेकिन मॉनसून के बाद ‘बेहद गंभीर’ चक्रवाती तूफान बढ़ गए हैं.
इतना ही नहीं, समंदरों और तालाब का पानी भी खारा होता जा रहा है, जिससे मछलियों की आबादी कम हो रही है. रिपोर्ट के मुताबिक, अगर सही कदम नहीं उठाए गए तो अगले 30 साल में दक्षिण एशिया में जीरो हंगर के टारगेट को हासिल नहीं किया जा सकेगा. रिपोर्ट्स के मुताबिक, फूड सिस्टम में क्लाइमेट से जुड़े लक्ष्यों को पूरा करने के लिए हर साल 350 बिलियन अमरीकी डॉलर की जरूरत होगी.
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