नई दिल्ली (New Delhi) । प्रवर्तन निदेशालय (Enforcement Directorate) की शक्तियों की समीक्षा के लिए अब सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में नई पीठ का गठन होगा। मामले की सुनवाई कर रही मौजूदा पीठ में शामिल जस्टिस संजय किशन कौल के अगले माह सेवानिवृत्त होने के मद्देनजर खुद को भंग कर दिया है। इसके साथ ही शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार को मामले में दाखिल संशोधित याचिका पर जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया। इसके साथ ही अदालत ने मामले की सुनवाई 8 सप्ताह के लिए स्थगित कर दी।
जस्टिस संजय किशन कौल, संजीव खन्ना और बेला एम. त्रिवेदी की पीठ ने मामले की सुनवाई तब स्थगित कर दी, जब केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि याचिकाकर्ताओं द्वारा पेश दलीलों पर विस्तार से ध्यान देने के लिए उन्हें वक्त चाहिए। पीठ ने याचिकाकर्ता की ओर से दाखिल संशोधित याचिका को सुनवाई के लिए स्वीकार करते हुए, केंद्र सरकार को चार सप्ताह में इस पर अपना जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया है।
शीर्ष अदालत ने इसके साथ ही याचिकाकर्ताओं से कहा है कि केंद्र द्वारा जवाब दाखिल करने के बाद चार सप्ताह के भीतर वे अपनी जवाबी रिपोर्ट दाखिल करे। पीठ ने कहा कि मामले की सुनवाई स्थगित किए जाने से इस पीठ के पास फैसला लिखने के लिए वास्तव में समय नहीं बचेगा। इसके साथ ही पीठ ने कहा कि ‘हमारे एक साथी (जस्टिस कौल) के सेवानिवृत होने की स्थिति में मुख्य न्यायाधीश को मामले की सुनवाई के लिए पीठ का पुनर्गठन करना होगा। इस बारे में मुख्य न्यायाधीश से जरूरी आदेश प्राप्त करने का निर्देश देते हुए मामले की सुनवाई स्थगित कर दी। जस्टिस कौल 25 दिसंबर को सेवानिवृत्त होंगे। केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने बुधवार को मामले में दाखिल संशोधित याचिकाओं पर आपत्ति जाहिर की थी।
समय देने की मांग का विरोध
केंद्र सरकार की ओर से दलील पेश करने के लिए समय देने की मांग का याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने विरोध किया और कहा कि सरकार सुनवाई से बचने के लिए इस तरह की तकनीक का सहारा ले रही है। उन्होंने कहा कि सरकार पहले ही कुछ याचिकाओं पर जवाब दाखिल कर चुकी है, ऐसे में और समय देने की जरूरत नहीं है। वहीं, एक अन्य याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने पीठ से कहा कि यदि मामले को बड़ी पीठ या पांच न्यायाधीशों की पीठ को भेजा जाता है, तो तीन जजों की पीठ से विस्तृत फैसले की जरूरत नहीं होगी। हालांकि, शीर्ष अदालत ने इससे सहमत नहीं था।
विस्तार से विचार-विमर्श की आवश्यकता
जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी ने कहा कि हम इसे सरसरी तौर पर नहीं देख सकते और मामले में विस्तार से विचार-विमर्श करने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि मेरा मत है कि इसे बड़ी पीठ के पास भेजते समय हमें अपनी राय जाहिर करनी होगी। मेरी धारणा है कि इस पर पहले से कोई निर्णय है, हमें बड़ी पीठ के समक्ष भेजने के लिए कारण बताने होंगे। उन्होंने कहा कि सिर्फ इसलिए नहीं कि हम पिछले दृष्टिकोण से सहमत नहीं हो सकते हैं। इसलिए इसे संदर्भ के लिए दो पीठों के विचार होने चाहिए।
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