- याचिकाकर्ता का तर्क- हजारों करोड़ बकाया वसूलने के बजाए घाटा बताकर बजली दरें बढ़ाना गलत होगा ऐसा
इंदौर। नगर निगम, सरकारी विभाग और बड़ी प्रायवेट कंपनियों पर मप्र पश्चिम क्षेत्र विद्युत वितरण कंपनी इंदौर द्वारा बकाया 16000 करोड़ रुपए वसूलने के बजाए घाटे की आड़ लेकर बिजली (Electricity) दरें बार बार बढ़ाकर आम जनता पर भार बढ़ाना गलत है एवं इसका बोझ जनता पर डालने के बजाई वसूलकर कोविड परेशानी में राहत मिले ! इस मांग को लेकर हाई कोर्ट इंदौर (High Court bench Indore) में दायर जनहित याचिका (PIL) की सुनवाई सोमवार को हुई। इसमें बिजली कंपनी ने जवाब देने के बजाई अपनी प्रारम्भिक पेश करते हुए कहा कि बढ़ी दरों को लेकर आपत्ति है तो याचिककर्ता मप्र विद्युत नियामक आयोग के समक्ष आपत्ति दर्ज करा सकते हैं। इस पर याचिकाकर्ता ने कोर्ट को बताया कि वे नियामक आयोग में आपत्ति उठाई उठा चुके हैं किंतु आयोग में सुनवाई ही नहीं हुई उसके बिना ही दरे बढ़ाना जारी हैं। सप्रीम कोर्ट के हाल ही में दिए निर्णय अनुसार भी ऑल्टर्नटिव रेमडी के बावजूद भी हाई कोर्ट मामले में हस्तक्षेप कर सकती हैं।
जनहित याचिका एडवोकेट प्रतीक माहेश्वरी के जरिए पूर्व पार्षद महेश गर्ग ने लगाई है। याचिका में कहा गया है कि बिजली कंपनी खातों में घाटा बताकर नियामक आयोग से बिजली दर (Electricity Prices in Madhya Pradesh) बढ़ाने की स्वीकृति प्राप्त कर लेती है लेकिन वास्तविकता यह है कि बिजली कंपनी के नगर निगम, शासकीय विभाग व प्रायवेट सेक्टर की बड़ी कंपनियों से हजारों करोड़ रुपए बकाया है। यह भरी भरकम राशि वसूलने के बजाए बिजली कंपनी खाते में घाटा दिखाकर बिजली की दरें बढ़ा लेती हैं। इससे आम उपभोक्ता पर बोझ लगातार बढ़ता जा रहा है। याचिका में मांग की गई है कि राज्य में दरे देश में सबसे महंगी हैं जबकि दूसरे राज्यों में काफ़ी कम हैं। ऐसे में लोगों पर और बोझ देना ग़लत होगा। याचिका के निराकरण तक आगे बिजली की दरों की और बढ़ोतरी को रोका जाए ऐसी माँगे याचिका में की गई हैं। याचिका की सुनवाई के दिन ही बिजली विभाग ने तकनीकी आपत्ति ली हैं की दरो की बढ़ोतरी पर अपील हो सकती हैं तो या याचिका क्यों जिस पर याचिका कर्ता द्वारा विस्तृत जवाब देने हेतु अगली सुनवाई एक सप्ताह बाद होगी।