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    माफिया मुहिम के नाम पर रसूखदारों और पैसों वालों की सुनवार्ई… आम आदमी खाक छानने को मजबूर

  • October 22, 2020

    • धोखाड़ी के प्रकरणों में पुलिस अपना रही तिहेरे मापदंड

    भोपाल। प्रदेश सरकार के आदेश पर माफिया मुहीम का आगाज सूबे के तमाम जिलों में किया गया था। जिसका मकसद गरीबों और आम आदमी को बदमाशों और माफिया के खौफ से निजात दिलाना था। वहीं राजधानी पुलिस ने माफिया मुहीम के तहत की जाने वाली कार्रवाई के दौरान अपने असल मकसद से भटक गई है। इस मुहीम के तहत शहर में इन दिनों जमकर धोखाधड़ी के प्रकरण दर्ज किए जा रहे हैं।
    अधिकतर प्रकरण रसूखदारों के लेन-देन तथा जमीन संबंधी विवादों को सुलझाने के लिए दर्ज किए जा रहे हैं। जबकि आम लोगों की आज भी सुनवाई नहीं हो रही है। भोपाल में मानो धोखाधड़ी तथा अमानत में खयानत का प्रकरण दर्ज कराने के लिए राजनेतिक एवं अधिकारिक पहुंच होना जरूरी हो गया है। दूसरी सुनवाई सिर्फ उन लोगों की की जा रही है जो सीधे तौर पर किसी भी माध्यम से पुलिस को लाभ पहुुंचाने में सक्षम हैं। उन लोगों की शिकायतों को सिरे से नजरअंदाज किया जा रहा है जो बिना किसी सोर्स सिफाािश के थाने पहुंच रहे हैं।
    जानकारी के अनुसार माफिया मुहीम के तहत सीएम शिवराज सिंह चौहान के आदेश के बाद भोपाल में चंद बड़ी कार्रवाई कर पुलिस ने जमकर वाहवाही लूटी। शुरुआत में प्यारे मियां, मुख्तार मलिक जैसे बड़े रसूखदारों पर कार्रवाई की गई। कई बड़े बिल्डर और भू माफिया पर शिकंजा कसने एफआईआर दर्ज की गई। चंद समय बाद भी पुलिस ने मुहीम के तहत की जाने वाली कार्रवाई में अपने निजी हित साधना शुरु कर दिए। अब आलम यह है कि किसी भी थाने में धोखाधड़ी का प्रकरण दर्ज कराने से पूर्व आपके पास बड़े राजनेता अथवा पुलिस प्रशासन के बड़े अधिकारी का सोर्स होना जरूरी है। तब पुलिस आपकी शिकायत को गंभीरता से सुनती और कार्रवाई करती है नहीं तो चलता कर देती है। वहीं दूसरी श्रृणी में उन लोगों की शिकायत पर कार्रवाई की जा रही है जो स्वयं आर्थिक तौर पर सक्षम हैं और पुलिस को सीधे तौर पर लाभ पहुंचा सकते हैं। जबकि तीसरी श्रृणी में वह लोग शामिल हैं जो असल में परेशान हैं, उनके पास न धन दौलत है और न ही कोई सिफारिश, वह त उम्र अपनी जमीन के एक तुकड़े को पाने के लिए जद्दोजहद करते हैं। किसी के मकान पर कब्जा है तो कोई दुकान किराए पर देकर परेशान है। ऐसे लोगों को थाने में पहुंचने के बाद खाकीधारी जमकर खरीखोटी सुनाते हैं। शिकायत लिखना तो दूर फरियाद सुनना भी बहतर नहीं समझा जाता। ज्यादा जिद करने पर कानूनी पाठ पढ़ाया जाता है और कोर्ट की शरण में जाने की सलाह दी जाती है। हालांकि पुलिस का यह बर्ताव अधिकतर सिर्फ धोखाधड़ी और गबन के शिकायतकर्ताओं के लिए ही होता है।

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