बेंगलुरु । हिजाब विवाद (Hijab controversy) को लेकर दायर याचिकाओं (Petitions) पर गौर करने के लिए गठित कर्नाटक हाईकोर्ट (Karnataka High Court) की तीन-न्यायाधीशों की पीठ (Three Judges) ने सोमवार दोपहर फिर से सुनवाई शुरू की (Hearing begins) । इस बीच कई छात्राओं (Many Girl Students) ने परीक्षा का बहिष्कार किया (Boycott the Examination) ।
मुख्य न्यायाधीश रितु राज अवस्थी की अध्यक्षता वाली पीठ दिन-प्रतिदिन के आधार पर मामले की सुनवाई कर रही है, मगर इसके बावजूद राज्य में हिजाब विवाद जारी है, जिससे कानून और व्यवस्था की स्थिति पर चिंता बढ़ रही है।
इस बीच, राज्य भर की कई छात्राओं ने कक्षाओं में हिजाब पहनने की अनुमति नहीं होने के कारण सोमवार से शुरू हुई महत्वपूर्ण 2 पीयूसी प्रैक्टिकल परीक्षाओं का बहिष्कार किया है। हालांकि, मुस्लिम समुदाय की अधिकांश छात्राओं ने अपना हिजाब उतारकर परीक्षा में शामिल होने का विकल्प चुना।
बेंगलुरु के पुलिस आयुक्त कमल पंत ने स्कूलों, पीयू कॉलेजों, डिग्री कॉलेजों या अन्य शैक्षणिक संस्थानों के आसपास के 200 मीटर के आसपास लगाई गई निषेधाज्ञा को 8 मार्च तक बढ़ा दिया है।
अगर पीयूसी छात्र प्रैक्टिकल यानी व्यावहारिक परीक्षा के लिए अनुपस्थित रहते हैं तो वे 30 अंक खो देंगे और इससे उन्हें थ्योरी यानी लिखित रूप से दी जाने वाली मुख्य परीक्षा के माध्यम से अधिकतम 70 अंक ही प्राप्त हो सकेंगे। सीईटी में भाग लेने के लिए, छात्रों को न्यूनतम 45 अंक प्राप्त करने होंगे। प्रैक्टिकल परीक्षा के अंक छात्रों के भविष्य के लिए महत्वपूर्ण हैं।
मुख्य परीक्षाएं 16 अप्रैल से 6 मई के बीच निर्धारित हैं। प्रैक्टिकल परीक्षा भौतिकी, रसायन विज्ञान, जीव विज्ञान, मनोविज्ञान, कंप्यूटर विज्ञान और इलेक्ट्रॉनिक्स विषयों के लिए आयोजित की जाएगी। परीक्षा के तुरंत बाद अंक पीयू बोर्ड की वेबसाइट पर अपलोड कर दिए जाएंगे। यदि छात्र प्रैक्टिकल परीक्षा के लिए अनुपस्थित रहते हैं, तो उन्हें कोई दूसरा मौका नहीं दिया जाएगा।
विजयपुरा जिले में 40 से अधिक स्टूडेंट्स ने हिजाब हटाने को लेकर जिला आयुक्त कार्यालय के समक्ष विरोध प्रदर्शन किया और साथ ही परीक्षा का भी बहिष्कार किया। हसन में 10 से अधिक छात्राओं ने अपना हिजाब उतारने से इनकार कर दिया और महिला पॉलिटेक्निक कॉलेज के पास परिसर में घुसने की अनुमति के लिए इंतजार किया। बाद में, वे हिजाब के साथ कक्षाओं में प्रवेश की मांग को लेकर प्रधानाध्यापक से बहस करने लगीं।
कोप्पल जिले में 26 फरवरी तक निषेधाज्ञा जारी रहेगी। जिला प्रशासन ने चेतावनी दी है कि 300 मीटर के दायरे में पांच से अधिक लोग इकट्ठा नहीं हो सकते हैं। इस बीच, उडुपी प्री-यूनिवर्सिटी गर्ल्स कॉलेज में विरोध-प्रदर्शन शुरू करने वाली छह छात्राएं प्रैक्टिकल परीक्षा में अनुपस्थित रहीं।
मदिकेरी जूनियर कॉलेज के नौ स्टूडेंट्स ने प्रवेश द्वार पर मौन विरोध प्रदर्शन किया। छात्राएं ‘हिजाब हमारा अधिकार है, हमारी पसंद है’, ‘हमें न्याय चाहिए’ जैसे संदेश वाली तख्तियां लिए गेट के पास बैठ गईं।
कोलार गवर्नमेंट प्री-यूनिवर्सिटी कॉलेज की छात्राओं ने प्राचार्य से कक्षाओं में हिजाब की अनुमति नहीं देने को लेकर लिखित में एक पत्र की मांग की। उन्होंने दावा किया कि अदालत ने उन कॉलेजों में छात्राओं को हिजाब के साथ प्रवेश के लिए सहमति दे दी है, जिनमें कॉलेज विकास समिति नहीं है। इन्होंने अपनी मांग को लेकर धरना भी दिया।
बड़ी पीठ ने राज्य सरकार को यह देखने का निर्देश दिया है कि उसके अंतरिम आदेश का उल्लंघन न हो। याचिकाकर्ताओं के वकील अंतरिम आदेश पर पुनर्विचार करके मुस्लिम छात्रों को हिजाब पहनने की अनुमति देने के लिए जोरदार दबाव डाल रहे हैं। वकीलों में से एक ने अदालत से अनुरोध किया है कि मुस्लिम छात्राओं को कम से कम शुक्रवार को हिजाब पहनने की अनुमति दी जाए, जो कि मुसलमानों के लिए सबसे शुभ दिन माना जाता है।
वकीलों ने यह भी प्रस्तुत किया है कि कॉलेज विकास समिति (सीडीसी) और स्कूल विकास और प्रबंधन समितियों (एसडीएमसी) की ओर से यूनिफॉर्म को लेकर ऑर्डर देने को लेकर कोई कानूनी वैधता नहीं है।
पीठ पहले ही सीडीसी और एसडीएमसी की कानूनी वैधता पर सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले महाधिवक्ता प्रभुलिंग नवादगी से सवाल कर चुकी है। उन्होंने प्रस्तुत किया था कि सरकार द्वारा 5 फरवरी को जारी किए गए आदेश ने हेडस्कार्फ पर प्रतिबंध नहीं लगाया है, बल्कि सीडीसी को केवल वर्दी पर निर्णय लेने की शक्ति दी गई है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि सरकार ने धार्मिक प्रतीकों से संबंधित मामलों में हस्तक्षेप नहीं करने के लिए एक सचेत रुख अपनाया है और अनावश्यक रूप से इस मुद्दे को घसीटा जा रहा है।
महाधिवक्ता तीन बिंदुओं पर अपनी दलीलें पेश करेंगे और सबसे पहले वह साबित करेंगे कि हिजाब इस्लाम की एक आवश्यक धार्मिक प्रथा नहीं है, इस लिहाज से इसके उपयोग को रोकना भारतीय संविधान के अनुच्छेद 25 का उल्लंघन नहीं है। वह अपनी तमाम दलीलों के साथ स्पष्ट करेंगे कि सरकारी आदेश कानून के अनुसार है। पीठ ने महाधिवक्ता से सवाल किया है कि सरकार ने आदेश देते समय उच्च न्यायालयों और उच्चतम न्यायालय द्वारा दिए गए फैसलों का जिक्र क्यों किया।
©2024 Agnibaan , All Rights Reserved