मिस्टर विधायक यह चोरी है!
मप्र के कुछ विधायक गलत तरीके से वाहन भत्ता लेकर तमाम विधायकों की इमेज को पलीता लगा रहे हैं। दरअसल विधायकों को रेल यात्रा के लिए कूपन मिलते हैं। इसके अलावा ने अपनी कार से भी भोपाल आ जा सकते हैं। कार से आने जाने पर उन्हें 15 रुपए किलोमीटर का भुगतान दिया जाता है। विधानसभा सत्र अथवा विधानसभा की किसी भी बैठक में आने के लिए विधायक रेल अथवा वाहन में से कोई भी एक भत्ता ले सकते हैं। कुछ विधायक मामूली लाभ के लिए विधानसभा सचिवालय से मिले फ्री रेल कूपन का उपयोग कर भोपाल आते हैं और यहां विधानसभा सचिवालय में वाहन से आने की जानकारी देकर 15 रुपए किलोमीटर आने-जाने का भत्ता भी वसूल रहे हैं। पहले टोल बैरियरों पर न तो सीसीटीवी कैमरे थे और न ही वाहनों की ऑनलाइन इन्ट्री होती थी। लेकिन अब बैरियर से गुजरने वाले वाहनों का पूरा रिकार्ड रखा जाता है। ऐसे में आसानी से पता लग सकता है कि किस विधायक की गाड़ी कब किस बैरियर से गुजरी। ऐसे में यदि जांच हुई तो इन विधायक की चोरी पकड़ी जा सकती है। इस मामले में पहले भी विधायकों को चेतावनी दी गई थी। वाहन भत्ता लेने वाले कई विधायक सतर्क भी हो गए थे। लेकिन अभी भी कई विधायक रेल और वाहन दोनों का भत्ता लेकर अपराध करने से बाज नहीं आ रहे हैं।
प्रमुख सचिव के खिलाफ विद्रोह
मप्र मंत्रालय में पहली बार किसी महिला प्रमुख सचिव के खिलाफ उनके ही स्टाफ ने मोर्चा खोल दिया है। प्रमुख सचिव के रूखे व्यवहार से परेशान स्टाफ ने प्रमुख सचिव को विभाग से हटाने का लिखित आवेदन अतिरिक्त मुख्य सचिव जीएडी को सौंपा है। बताते हैं कि यह मामला धीरे धीरे तूल पकड़ता जा रहा है। पीएस के खिलाफ उनका स्टाफ सामूहिक अवकाश पर जाने की तैयारी कर रहा है। इसकी सूचना जीएडी ने मुख्य सचिव व मुख्यमंत्री सचिवालय को दे दी है। यह भी खबर है कि यह प्रमुख सचिव मप्र में कोरोना काल में हुए एक कथित बड़े घोटाले की जांच कर रही हैं। इस विद्रोह को उस जांच से जोड़कर भी देखा जा रहा है।
आईएएस की मलाईदार पोस्टिंग
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के दूसरे और तीसरे कार्यकाल में उनके बेहद नजदीक रहे एक आईएएस को लगातार बड़े जिलों की कलेक्टरी मिलती रही। शिवराज सरकार जाने के बाद इस अधिकारी ने कमलनाथ के पाले में एन्ट्री लेकर जमकर माल कूटा। इस आईएएस अधिकारी को शायद भरोसा हो गया था कि अब मप्र में शिवराज सिंह चौहान दोबारा कभी नहीं आएंगे। यही कारण है कि अधिकारी ने शिवराज से दूरी बना ली थी। शिवराज ने चौथी बार मुख्यमंत्री बनने के बाद इस अधिकारी को न केवल लूपलाईन में भेज दिया, बल्कि इससे मिलना जुलना भी बंद कर दिया था। अधिकारी ने सीएम से नजदीकी बढ़ाने और मलाईदार पदस्थापना के लिए अपने गृह राज्य के एक भाजपा नेता का सहारा लिया है। अधिकारी को मलाईदार पोस्टिंग तो मिल गई है लेेकिन मंत्रालय में खबर है कि कमलनाथ सरकार में उनके द्वारा की गई कमाई की फाईल तैयार कराई जा रही है।
सब पर भारी अभय तिवारी!
मप्र कांग्रेस के सोशल मीडिया विभाग के अध्यक्ष अभय तिवारी सब पर भारी साबित हो रहे हैं। सोशल मीडिया पर उनकी सक्रियता का ही परिणाम है कि प्रदेश भाजपा को अपने सोशल मीडिया प्रभारी शिवराज डाबी को पहले चेतावनी देनी पड़ी और फिर अंतत: प्रदेश भाजपा से उनकी विदाई करनी पड़ी। भाजपा लंबे समय से सत्ता में है। उनकी सोशल मीडिया टीम के पास संसाधन की कोई कमी नहीं है। इसके बाद भी ट्वीटर पर प्रदेश भाजपा के 8 लाख 20 हजार फालोअर हैं जबकि लगातार सत्ता से बाहर रही और संसाधनों के लिए जुझ रही प्रदेश कांग्रेस के ट्वीटर पर 9 लाख 62 हजार फालोअर हैं। प्रदेश भाजपा संगठन की होने वाली बैठकों में कई बार सोशल मीडिया पर पिछडऩे के मुद्दे पर चर्चा हुई। बताते हैं कि पहले शिवराज डाबी को कहा गया कि मप्र भाजपा के फालोअर बढऩे चाहिए, लेकिन 6 माह बाद भी भाजपा कांग्रेस से आगे नहीं निकली तो अंतत: भाजपा ने डाबी के स्थान पर अमन शुक्ला को प्रदेश भाजपा आईटी सेल का संयोजक बना दिया है। फिलहाल कांग्रेस और अभय तिवारी को खुशी मनाने का मौका मिल गया है। देखते हैं अभय तिवारी कैसे अमन शुक्ला का मुकाबला करते हैं?
चर्चा में उप सचिव का जबाव
महाकौशल क्षेत्र के रहने वाले लक्ष्मण सिंह मरकाम वैसे तो इंडियन नेवी के आयुध्द विभाग में हैं, लेकिन उन्हें संघ की इच्छा पर प्रतिनियुक्ति पर मप्र सरकार में उप सचिव पद पर लाया गया है। मरकाम मुख्यमंत्री सचिवालय में कामकाज देख रहे हैं। वे मंत्रालय में पदस्थ अन्य उप सचिवों की तरह काम करने के बजाय सरकार के विरोध में उठने वालों मुद्दों का जबाव सोशल मीडिया पर देने के कारण चर्चा में हैं। नीमच में एक भील युवक की हत्या पर हो रही राजनीति का जबाव देते हुए मरकाम ने फेसबुक पर लिखा है कि – मप्र…चाहे नेमावर हो चाहे नीमच…आरोपी अंदर हैं, मुकदमे फास्ट ट्रेक पर हो आदेश पारित, पाँच लाख मुआवजा 48 घंटे के भीतर मिला…आरोपियों की सम्पत्ति पर जेसीबी चल गई…न्याय से पहले की संवेदना जितनी वर्तमान में है कहीं और हो तो बताना…. ज्ञान देने वाले, चंदा इक_ा करने वाले,जाति/ धर्म पंचायत वाले जो भी लाशों पर भुट्टे भूनकर खाते हैं….मानव रूपी गिद्ध हैं !!
विधानसभा का घटता महत्व
विधानसभा का मूल कार्य कानून बनाना और इसे बनाने से पहले इसके गुण दोष पर चर्चा करना है। इसके अलावा प्रदेश की जन समस्याओं पर सरकार का ध्यान आकर्षित करना है। पिछले लंबे समय से मप्र विधानसभा में बनने वाले कानून इसलिए चिंता का विषय हो गए हैं कि इन्हें बनाने से पहले किसी प्रकार की कोई चर्चा सदन में नहीं हो रही है। पिछले दो साल में बने लगभग सभी कानून शोर-शराबे के बीच पारित किए गए हैं। यानि विधानसभा लगातार अपना महत्व खोती जा रही है। राज्य सरकार पिछली 19 नए कानून अथवा कानून में संशोधन के प्रस्ताव लेकर सदन आई लेकिन इनमें सात प्रस्ताव बिना चर्चा के शोर शराबे के बीच पारित किए गए। इस साल अभी तक कानून बनाने या संशोधन के लगभग 28 प्रस्ताव सदन में रखे गए इनमें से 19 से अधिक प्रस्ताव शोर-शराबे के बीच बिना चर्चा किए पारित हुए। पिछले 2 साल में किसी भी कानून पर सदन में चर्चा न होना लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए गंभीर चिंतन का विषय है।
और अंत में….
सरकार में इन दिनों मंत्रियों के स्टाफ में प्राइवेट लोगों की नियुक्तियों का चलन बढ़ गया है। मजेदार बात हैं कि प्राइवेट लोग मंत्रियों के सभी तरह के काम देखते हैं। कभी-कभी सरकार में कुछ गुप्त फैसले भी लिए जाते हैं जिनकी जानकारी इन प्राइवेट लोगों तक होती है। पिछली कमलनाथ सरकार में जो प्राइवेट लोग मंत्रियों के यहां पदस्थ थे। सरकार बदलते ही वे बेरोजगार हो गए। लेकिन उनके पास कई गोपनीय जानकारी हैं। खबर है कि यह लोग अफसरों पर अब दबाव डालकर अपना काम भी निकलवा रहे हैं। अफसरों के सामने मजबूरी है कि वे अपना दुखड़ा किसे सुनाएं।
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