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    सुनी सुनाई : पट्टे की जमीनों के नाम पर आईएएस ने करोड़ों कमाए!

  • August 02, 2022

    यह मप्र के प्रशासनिक इतिहास का गंभीरतम मामला है। ग्वालियर कलेक्टर रहे एक आईएएस ने पट्टे की जमीनों की खरीद बिक्री की अनुमति के नाम पर करोड़ों रुपए कमाए हैं। दस्तावेज देखकर ऐसा लगता है कि आईएएस भ्रष्टाचार की खुली दूकान खोलकर बैठे थे। जहां मोटी रकम मिली पट्टे की जमीन निजी व्यक्ति या निजी फर्म के नाम कर दी गई। जहां मनमाफिक चढ़ोत्री नहीं आई उन पट्टे की जमीनों को शासकीय घोषित कर दिया गया। मजाक देखिये कि एक व्यक्ति ने अपनी पट्टे की भूमि को छह लोगों को बेचा। कलेक्टर साहब ने एक ही खसरे की इस भूमि में तीन बिक्रेताओं के नाम चढ़वा दी और अन्य खरीदारों से डील नहीं हो सकी तो भूमि शासकीय घोषित कर दी गई। यदि इन आईएएस की ईमानदारी से जांच हो जाए तो इनकी आईएएस तो छिन ही सकती है, यह जेल भी जा सकते हैं। मजेदार बात यह है कि चौथे कार्यकाल में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इस अफसर से नाराज थे। उन्होंने संभागायुक्त को जांच के निर्देश भी दिए, लेकिन आईएएस अफसर का दक्षिणी कनेक्शन इतना मजबूत है कि फिलहाल जांच ठंडे बस्ते में डाल दी गई है।

    लोकायुक्त संगठन में सफाई अभियान शुरु!
    मप्र में भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई करने वाले लोकायुक्त संगठन के अधिकारियों पर ही भ्रष्टाचार करने और भ्रष्ट अफसरों को बचाने के आरोप लगते रहे हैं। लोकायुक्त विशेष पुलिस स्थापना के नये महानिदेशक कैलाश मकवाना ने संगठन में सफाई अभियान शुरु कर संगठन की छवि साफ सुथरी रखने का फैसला किया है। उन्होंने सभी अधिकारी कर्मचारियों को पत्र लिखकर संदेश दे दिया है कि अब लोकायुक्त संगठन में भ्रष्टाचार व पक्षपात सहन नहीं किया जाएगा। बेहद ईमानदार व सहज सरल अधिकारी मकवाना ने सभी लोकायुक्त एसपी को पत्र लिखकर निर्देश दिये हैं कि पहले स्वयं ईमानदार हों फिर भ्रष्ट लोकसेवकों की जांच करें। यह भी निर्देश दिये हैं कि संगठन में साक्ष्यों के आधार पर कार्यवाही होना चाहिए। अनावश्यक किसी को परेशान न किया जाए और भ्रष्टाचार के साक्ष्य होने पर किसी को बख्शा भी नहीं जाना चाहिए। मकवाना ने इस पत्र को सभी स्तर के कर्मचारियों को पढ़ाने और उनके हस्ताक्षर कराकर लौटाने के निर्देश भी दिए हैं। यानि लोकायुक्त संगठन में अब पोस्टिंग कराने वाले पुलिस अफसर ढूंढने पड़ेंगे!

    झगड़े के बाद आईजी-एसपी का हटना तय
    मप्र के एक जोन आईजी और उसी जोन के एक एसपी के बीच विवाद इतना बढ़ गया है कि दोनों एक दूसरे की शिकायतें भोपाल भेज रहे हैं। इन दोनों अफसरों के झगड़े की शिकायत डीजीपी, गृह विभाग और मुख्यमंत्री सचिवालय तक पहुंची हैं। बताया जाता है कि एसपी ने आईजी पर बेवजह हस्तक्षेप करने के आरोप लगाए हैं। यह भी चर्चा है कि एसपी ने आईजी की एक गोपनीय शिकायत कराई है कि वे पहले जिस जोन में पदस्थ थे, वहां से एक सप्लायर से मंहगा ड्रोन लेकर अपने पास रख लिया है जिसका भुगतान जिला पुलिस से कराया गया है। आईजी ने भी एसपी के खिलाफ रिपोर्ट भेजी है कि एक बड़े हवाला रैकेट में एसपी ने 5 करोड़ का खेल किया है। हवाला रैकेट में पहले दुबई के कारोबारी को आरोपी बनाया, फिर उसका नाम हटाने के लिए बड़ी सौदेबाजी हुई है। गृह विभाग ने इस मामले की गोपनीय जांच शुरु कर दी है। चर्चा है कि इन शिकायतों के बाद आईजी और एसपी दोनों का हटना तय है।


    पूर्व आईएएस की लोकायुक्त जांच शुरु
    यह बड़ा मजेदार किस्सा है। मप्र के दो आईएएस बीआर नायडू और सभापति यादव कभी खास दोस्त हुआ करते थे। दोनों एक दूसरे के गहरे राजदार भी हैं। दोनों ने रिटायरमेंट के बाद भोपाल में अगल बगल में घर बनाया। बस यहीं से झगड़े की शुरुआत हो गई। दोनों के घर की बीच की थोड़ी सी जमीन को एक दोनों अधिकारी लंबे समय से झगड़ रहे हैं। दोनों का झगड़ा पुलिस थाने होता हुआ अब लोकायुक्त तक पहुंच गया है। बताते हैं कि दोनों ने एक दूसरे के खिलाफ भ्रष्टाचार और अकूत सम्पत्ति की शिकायतें लोकायुक्त में करवा दी हैं। यह भी चर्चा है कि बीआर नायडू ने अपने संपर्कों के जरिए सभापति यादव के खिलाफ हुई शिकायत पर पीई (प्राइमरी इन्क्वारी) दर्ज करा दी है। लोकायुक्त में सभापति यादव के खिलाफ जांच तेज हो गई है। उनकी वैध अवैध सम्पत्ति का लंबा चौथा चिठ्ठा लोकायुक्त पहुंच गया है। लोकायुक्त पुलिस इसकी पड़ताल में जुट गई है। अटकलें लगाई जा रही हैं कि सभापति यादव के खिलाफ जल्दी ही भ्रष्टाचार की धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज हो सकती है।

    अविश्वास से क्यों डरती है कांग्रेस!
    मप्र में कांग्रेस पार्टी प्रदेश में काबिज भाजपा सरकार के खिलाफ बयानबाजी तो करती है, लेकिन सदन (विधानसभा) और सड़क पर सशक्त विरोध करने से पीछे रह जाती है। दिग्विजय सिंह के दस वर्ष के शासनकाल में भाजपा तीन बार सदन में सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लेकर आई थी और सरकार पर जमकर हमले किये थे। लेकिन कांग्रेस लगभग 17 वर्षों से मप्र की सत्तारूढ भाजपा सरकार के खिलाफ सिर्फ एक बार अविश्वास प्रस्ताव ला सकी है। कांग्रेस की ओर से तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष अजय सिंह ने अविश्वास प्रस्ताव रखकर तीन दिन सदन में सार्थक बहस कराई थी। जमुना देवी, सत्यदेव कटारे और कमलनाथ नेता प्रतिपक्ष रहे, लेकिन सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाए। मौजूदा नेता प्रतिपक्ष डॉक्टर गोविन्द सिंह व्यक्तिगत तौर पर सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाना चाहते हैं, लेकिन विधायक दल में इस पर अभी तक सहमति नहीं बन पाई है।

    नरोत्तम- इमरती में ठनी!
    मप्र के गृहमंत्री नरोत्तम मिश्रा और कांग्रेस से भाजपा में आईं पूर्व मंत्री इमरती देवी के बीच बनी खाई अब लगभग दुश्मनी में बदलने की खबर आ रही है। डबरा जनपद चुनाव को लेकर इमरती देवी ने मप्र भाजपा के चाणक्य व शिवराज सिंह चौहान सरकार के संकटमोचक मंत्री नरोत्तम मिश्रा से सीधे टक्कर ले ली है। इमरती देवी डबरा जनपद के 25 में से 18 सदस्यों को लेकर 15 दिन लापता रहीं। इस दौरान वे एक दिन दिल्ली में इन 18 सदस्यों के साथ ज्योतिरादित्य सिंधिया के बंगले पर दिखाई थीं। चर्चा है कि नरोत्तम मिश्रा डबरा में रामेश्वर तिवारी को जनपद अध्यक्ष बनाना चाहते थे। इमरती देवी ने अपनी समर्थक प्रवेश मेहताब सिंह गुर्जर को अध्यक्ष बनवा लिया। तिवारी चुनाव हार गये। जीत की खुशी से झूमती इमरती ने इसका श्रेय ज्योतिरादित्य सिंधिया और नरेन्द्र सिंह तोमर को दिया। नरोत्तम मिश्रा की पूरी तरह उपेक्षा की। मुखबिर का कहना है कि गृह नगर डबरा में नरोत्तम को मिली यह चुनौती इमरती को बहुत भारी पड़ सकती है। सभी को नरोत्तम मिश्रा के जबावी हमले का इंतजार है।

    और अंत में….!
    मप्र के पंचायत व नगरीय निकाय चुनाव में भाजपा को सबसे तगड़ा झटका सिंगरौली में लगा है। यहां महापौर, जिला पंचायत और तीनों जनपद भाजपा के हाथ से फिसल गई हैं। दावा किया जा रहा है कि भाजपा ने सिंगरौली को लेकर चिन्ता व चिन्तन नहीं किया तो 2023 में विधायक और 2024 में सांसद भी उसके हाथ से निकल सकते हैं। मुखबिर का कहना है कि सिंगरौली में भाजपा को अपने स्थानीय नेताओं के आतंक को सख्ती से रोकना होगा। पुलिस व जिला प्रशासन भाजपा नेताओं की कठपुतली बनकर रह गये हैं। आम जनता को कहीं भी न्याय नहीं मिल रहा है। भाजपा नेताओं के संरक्षण में भ्रष्टाचार चरम पर है।

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