भोपाल। बालाघाट जिले के नक्सल आदिवासी क्षेत्रों में अब क्विनोवा की फसल कोदो-कुटकी की जगह लेगी है। जंगलों के खेतों में यह फसल न केवल आदिवासियों में पोषण बढ़ाएगी, बल्कि उनकी सम्रद्धि भी बढ़ेगी। जिले के 60 आदिवासी किसान 150 एकड़ में इसकी खेती करेंगे। इसकी फसल पर न मौसम की मार होगी न यह फसल बीमार होगी। निरोगी फसल के रूप में जानी जाने वाली अंग्रेजी बथुआ प्रजाति की यह फसल किसानों की सम्रद्धि भी बढ़ाएगी। इसके लिए कृषि विशेषज्ञों ने सर्वे कर करीब दर्जन भर गांवों के 60 किसानों को चिन्हित किया है। अक्टूबर-मार्च में यह फसल लगाई जाती है। कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर शरद बिसेन ने बताया कि क्विनोवा अन्य अनाजों की अपेक्षा बहुत ही पौष्टिक होता है। इसलिए इसे महाअनाज या सुपरग्रेन के नाम से जाना जाता है। क्विनोवा में प्रोटिन कार्बोहाइड्रेट, ड्राइट्री फाइबर, वसा, पोषक तत्व व विटामिनों का अच्छा स्त्रोत है। संयुक्त राष्ट्र खाद्य व कृषि संगठन ने वर्ष 2013 को क्विनोवा वर्ष घोषित किया था। शोध से पता चला है कि क्विनोवा में एंटीऑंक्सिडेंट गुण पाए जाते है। जो विभिन्न प्रकार की बीमारी से दूर रखते है। ग्लाइसेमिक इंडेक्स कम होने के कारण डायबिटिज मरीज के लिए अच्छा माना जाता है। इसके दाने ग्लूटीन से फ्री होते है। अत: गेहूं से एलर्जी वाले लोग इसे खा सकते है। इसके फाइबर में बाइल एसीड होता है, जो कोलेस्ट्रोल को बढऩे से रोकता है। क्विनोवा में मैग्नेसियम,पोटेशियम, केल्सियम, सोडियम, लोहाए जिंक, मैग्निज, विटामिन ई, विटामिन बी.6, फोलिकअम्ल व ओमेगा.3 का मुख्य श्रोत है। इसलिए नासा के वैज्ञानिक इसे लाइफ सस्टेनिंग ग्रेन मानते हुए अपने अन्तरिक्ष यात्रियों को क्विनोवा उपलब्ध कराता है।
लगातार बढ़ रही डिमांड
कृषि वैज्ञानिक डॉक्टर उत्तम बिसेन ने बताया कि साउथ अमरिका की मुख्य फसल क्विनोवा पोषक तत्वों व एंटीआक्सेडेंट गुणों से भरपूर है। जिसके चलते ही शिक्षित समुदाय व महानगर इसकी मांग कुछ वर्षो में तेजी से घर रहे है। हर क्षेत्र में उपलब्ध न होने के कारण इसे ऑनलाइन माध्यम से मंगाया जा रहा है। वहीं कान्हा राष्ट्रीय उद्यान में सैलानियों द्वारा भोजन में इसकी मांग की जा रही है। साथ ही भारत व अंतर्राष्ट्रीय बाजार में इसका दाम 150 से 200 रूपये प्रति किलोग्राम तक हैं। जिसे ध्यान में रखते हुए बालाघाट जिले के नक्सल प्रभावित गांवों के आदिवासियों को फसल के उत्पादन से पौषण मिलने के साथ ही उन्हें आर्थिक रुप से मजबूत करने का प्रयास किया जा रहा है।
इन गांवों में किया जा रहा उत्पादन
बालाघाट जिले के नक्सल प्रभावित बैहर, बिरसा, गढ़ी व परसवाड़ा के नारंगी, भर्री, रेहंगी, लोरा, गुदमा, राजपुर व लगमा के 60 आदिवासी बैगा किसानों के खेतों में क्विनोवा फसल का प्रथम बार उत्पादन किया जा रहा है। कृषि वैज्ञानिकों ने बताया कि क्विनोवा की फसल के लिए बालाघाट जिले की जलवायु उपयुक्त है। कम पानी कम लागत है ये फसल 120 दिन से एक सौ पचास दिन में तैयार हो जाती है। उन्होंने बताया कि एक किलो बीज एक एकड़ खेती के लिए प्रयाप्त होता है और छह से सात क्विंटल तक इसका उत्पादन होता है।
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