इंदौर। इंद्रपुरी, अहिल्यापुरी, अनंतपुरी सर्वानंद नगर, शिवमपुरी (Indrapuri, Ahilyapuri, Anantapuri Sarvanand Nagar, Shivampuri) सहित अन्य कालोनियों (Colonies) में डेंगू बुखार (dengue fever) ने कहर बरपा रखा है, मगर स्वास्थ्य विभाग डेंगू (Dengue) बुखार को मौसमी बीमारियां बताकर पल्ला झाड़ रहा है। निजी अस्पताल में इलाज करा रहे डेंगू मरीजों की जांच रिपोर्ट नकारने के कारण स्वास्थ्य विभाग के डेंगू संबंधित सरकारी आंकड़ों व जमीनी हकीकत में बहुत बड़ा अंतर है।
भंवरकुआं थाना क्षेत्र में कई कालोनियों के मरीजों से इस इलाके के निजी अस्पताल भरे पड़े हैं । हर दूसरे घर में कोई न कोई सदस्य बीमार है, बल्कि कहीं-कहीं तो पूरा परिवार चपेट में चल रहा है। 18 साल के एक युवक की प्लेटलेट्स कम होने की वजह से 24 घंटे में मौत हो जाती है। मरीजों में सारे लक्षण डेंगू बुखार के हैं, मगर स्वास्थ्य विभाग इन्हें डेंगू के मरीज मानने को सिर्फ इसलिए तैयार नहीं है, क्योंकि मरीज के परिजन इनका इलाज निजी डाक्टर या प्राइवेट अस्पतालों में करवा रहे हैं।
18 वर्षीय छात्र की मौत से दहशत
अनंतपुरी कालोनी निवासी युवा होनहार छात्र जितेश कनोजिया की प्लेटलेट्स कम हो जाने की वजह से 24 घंटे में मौत हो चुकी है। उसके बाद से उसका पूरा परिवार सदमे में है, वहीं आसपास के रहवासी दहशत में हैं। विनोद कनोजिया के अनुसार उन्होंने डेंगू बुखार के लक्षण नजर आते ही उसे मेडिस्क्वेयर हास्पिटल में एडमिट कराया, मगर उसके प्लेटलेट्स घटते जा रहे थे। डाक्टर ने हाथ खड़े कर दिए। फिर उसे टी. चोइथराम अस्पताल ले गए। वहां आईसीयू में एडमिट किया, मगर वहां 24 घंटों में जितेश ने दम तोड़ दिया। इस परिवार में अन्य सदस्य भी बीमार चल रहे हैं।
ग्राउंड रिपोर्ट व सरकारी आंकड़ों में अंतर का मुख्य कारण
ग्राउंड रिपोर्ट यानी जमीनी हकीकत व सरकारी आंकड़ों में अंतर के मुख्य दो कारण हैं। पहला कारण यह कि स्वास्थ्य विभाग का निजी अस्पताल वालों पर कोई नियंत्रण नहीं है। अधिकांश निजी अस्पताल वाले स्वास्थ्य विभाग के निर्देशों का पालन नहीं करते, न डेंगू मरीज संबंधित कोई जानकारी साझा करते हैं। इसके अलावा स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों की निजी अस्पताल में जाकर हकीकत जांचने की हिम्मत नहीं होती । कई बार विभाग के कुछ दबंग अफसरों ने कोशिश की तो राजनीतिक दबाव के चलते उन्हें नाकाम कर दिया गया। दूसरा प्रमुख कारण यह कि डेंगू की जांच रिपोर्ट को लेकर शासन की गाइड लाइन भी इस मामले में सबसे बड़ा अड़ंगा डालती है। स्वास्थ्य विभाग के अनुसार अभी तक डेंगू मरीजों की संख्या 677 ही है, जबकि निजी अस्पताल में भर्ती हर तीसरे-चौथे मरीज में डेंगू बुखार के लक्षण हैं। निजी अस्पतालों की रैपिड टेस्ट रिपोर्ट भी डेंगू बुखार बताती है, मगर स्वास्थ्य विभाग व जिला प्रशासन इसे नहीं मानता। यह सिर्फ महात्मा गांधी मेडिकल कॉलेज की माइक्रोबॉयोलॉजी लैब की रिपोर्ट को ही मान्यता देता है। इस वजह से डेंगू पीडि़तों की असली संख्या व शहर एवं जिले में इस बीमारी की भयावहता का पता नहीं चलता।
यह कदम उठाने होंगे…
यदि प्रशासन शहर में डेंगू बुखार की जमीनी हकीकत से रूबरू होना चाहता है तो जो रणनीति कोरोना से लडऩे के लिए बनाई थी, उस पर अमल करना होगा। डेंगू बुखार के मरीजों के लिए निजी अस्पतालों को चिह्नित करना होगा। उनके यहां इलाज कराने वाले सारे मरीजों की जांचें मेडिकल कालेज में कराना होंगी। डेंगू लक्षण वाले मरीज के भर्ती होते ही निजी अस्पताल को तुरंत स्वास्थ्य विभाग को सूचना देना चाहिए। जहां डेंगू बुखार के मरीज हैं, उन इलाकों में स्वास्थ्य विभाग की टीम को सर्दी-बुखार वाले मरीजों के ब्लड सैम्पल लेकर उनकी लैब में जांच करना चाहिए। तब ही डेंगू बीमारी के वास्तविक आंकड़े व असली हकीकत सामने आ सकेगी।
फॉगिंग मशीन नदारद… निगम की लापरवाही से स्वास्थ्य विभाग खफा…
इंद्रपुरी, अहिल्यापुरी, अनंतपुरी इलाके के रहवासियों में स्वास्थ्य विभाग व नगर निगम के प्रति बहुत आक्रोश है। इन तीनों कालोनियों के निवासी दीपक कर्दम, विनोद यादव, मनीष शर्मा, विनोद कनोजिया के सारे परिजन डेंगू बुखार से पीडि़त हैं। इनका कहना हैकि स्वास्थ्य विभाग दावा करता है कि अभी तक 60 हजार से ज्यादा घरों का सर्वे कर चुके हैं। उधर नगर निगम बताता है कि मच्छर मारने के लिए फॉगिंग मशीन डेंगू प्रभावित इलाकों में दौड़ रही है, मगर हकीकत में ऐसा कुछ नहीं है। स्वास्थ्य विभाग की टीम तो छोड़ो एक कर्मचारी भी कभी देखने नहीं आया। जब यहां के रहवासी खुद फोन करके बता रहे हैं तो भी कोई सुनवाई या कार्रवाई नहीं हो रही है। नगर निगम पर रहवासी इसलिए भडक़े हुए हैं, क्योंकि यहां घरों में पीने का पानी गंदा आ रहा है, क्योकि ड्रेनेज लाइन चोक है। इस मामले में भी निगम के स्थानीय झोनल से लगाकर मुख्यालय तक रहवासी गुहार लगाकर परेशान हो चुके है, मगर कोई सुनने वाला नहीं है।
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