नई दिल्ली । अमेरिका(America) और चीन (China)के बीच बीते कुछ समय से व्यापारिक तनाव(Trade tensions) बढ़ता जा रहा है और नए टैरिफ वार(New tariff war) ने इसमें और भी बढ़ोतरी(increase) की है. तनाव के बीच चीन ने एक बड़ा कदम उठाया है. उसने सात खास दुर्लभ धातुओं के निर्यात पर रोक लगा दी है. ये धातुएं ऐसी हैं जो आज की दुनिया में बहुत जरूरी हैं. इनका इस्तेमाल नई तकनीक, दवाइयों, हथियारों और ऊर्जा बनाने में होता है. ये धातुएं सिर्फ अमेरिका के लिए ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए अहम हैं. चीन ने अब इनके निर्यात पर रोक लगा दी है. यह रोक सभी देशों पर लागू होगी, न कि सिर्फ अमेरिका पर. इससे साफ जाहिर होता है कि चीन अपनी ताकत को हथियार की तरह इस्तेमाल करना चाहता है.
ये सात खास धातुएं कौन सी हैं?
चीन ने जिन सात धातुओं पर रोक लगाई है, उनमें सैमेरियम, गैडोलिनियम, टर्बियम, डिस्प्रोसियम, ल्यूटेशियम, स्कैंडियम और येट्रियम शामिल हैं. ये नाम शायद आपको थोड़े अजीब लगें, लेकिन ये धातुएं हमारी जिंदगी का एक बड़ा हिस्सा हैं. इनसे कई तरह की चीजें बनाई जाती हैं, जैसे तार, छड़, पाउडर, प्लेट, ट्यूब और मैग्नेट. ये धातुएं खास इसलिए हैं क्योंकि इनके बिना कई बड़े उद्योग ठप हो सकते हैं. ये मध्यम और भारी दुर्लभ पृथ्वी तत्वों में भी शामिल हैं. इनके इस्तेमाल को थोड़ा और आसानी से समझते हैं.
इनका क्या काम है?
हर धातु का अपना खास काम है. इनके बिना कई जरूरी चीजें बनाना मुश्किल हो जाएगा. सैमेरियम: यह धातु हेडफोन और पर्सनल स्टीरियो जैसी चीजों में इस्तेमाल होती है. इसके अलावा, ऑप्टिकल लेजर और परमाणु रिएक्टरों में भी इसका बड़ा रोल है. अगर आपके पास अच्छी क्वालिटी का हेडफोन है, तो उसमें सैमेरियम हो सकता है.
गैडोलिनियम: यह धातु मैग्नेट बनाने में काम आती है. साथ ही, इलेक्ट्रॉनिक सामान और डेटा स्टोरेज डिवाइस में भी इसका इस्तेमाल होता है. सबसे खास बात, यह एमआरआई स्कैन में कैंसर के ट्यूमर ढूंढने में मदद करती है. परमाणु रिएक्टरों में भी यह जरूरी है.
टर्बियम: यह धातु बिजली बचाने वाले बल्ब और मरकरी लैंप में इस्तेमाल होती है. इसके अलावा, यह मेडिकल एक्स-रे को सुरक्षित और साफ बनाने में मदद करती है.
डिस्प्रोसियम: पवन चक्कियों और इलेक्ट्रिक गाड़ियों में मजबूत मैग्नेट बनाने के लिए ये मेटल काफी जरूरी होता है. परमाणु रिएक्टरों की नियंत्रक छड़ों (कंट्रोलर रॉड) में भी इसका इस्तेमाल होता है.
ल्यूटेशियम: यह धातु तेल को साफ करने में मदद करती है. खासकर तेल रिफाइनरियों में हाइड्रोकार्बन को तोड़ने के लिए यह बहुत जरूरी है.
स्कैंडियम: यह धातु हल्के और मजबूत सामान बनाने में काम आती है. जैसे कि रूस के मिग लड़ाकू जेट, हाई-एंड साइकिल फ्रेम और बेसबॉल बैट. वाष्प लैंप में भी इसका इस्तेमाल होता है.
येट्रियम: यह धातु सफेद एलईडी लाइट, लेजर, कैमरा लेंस और सुपरकंडक्टर में इस्तेमाल होती है. कैंसर के इलाज में भी यह बहुत मददगार है.
ये धातुएं क्यों जरूरी हैं?
अब सवाल यह है कि ये धातुएं इतनी अहम क्यों हैं? आज की दुनिया में तकनीक और उद्योग बहुत तेजी से बढ़ रहे हैं. हर देश नई-नई चीजें बनाना चाहता है. इसके लिए ये दुर्लभ धातुएं चाहिए. मिसाल के तौर पर, अगर इलेक्ट्रिक गाड़ियां बनानी हैं, तो डिस्प्रोसियम चाहिए. अगर कैंसर का इलाज करना है, तो येट्रियम और गैडोलिनियम जरूरी हैं. अगर सेना के लिए हथियार या जेट बनाना है, तो स्कैंडियम चाहिए. यानी ये धातुएं हर बड़े काम में शामिल हैं.
दुनिया भर में इन धातुओं को पाने की होड़ मची है. हर देश चाहता है कि उसके पास इनका स्टॉक हो, ताकि वह आगे रह सके. अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भी इन धातुओं पर खास ध्यान दिया है. उन्होंने यूक्रेन के साथ एक सौदा करने की बात की, ताकि वहां से ये धातुएं मिल सकें. यह सौदा रूस के साथ संघर्ष को खत्म करने की शर्त पर था. इससे पता चलता है कि ये धातुएं कितनी बड़ी भूमिका निभाती हैं.
कई बड़ी कंपनियां इन धातुओं पर निर्भर
बड़ी-बड़ी कंपनियां जैसे एप्पल, सोनी, सैमसंग, टेस्ला, लॉकहीड मार्टिन और बोइंग भी इन धातुओं पर निर्भर हैं. इनके फोन, गाड़ियां, हवाई जहाज और दूसरे सामान बनाने में ये धातुएं काम आती हैं. अगर इनकी सप्लाई रुक जाए, तो इन कंपनियों को बहुत नुकसान हो सकता है.
चीन इन दुर्लभ धातुओं का सबसे बड़ा उत्पादक है. 2024 में उसने 2,70,000 टन धातुएं बनाईं. यह बहुत बड़ी मात्रा है. दूसरी तरफ, अमेरिका ने सिर्फ 45,000 टन बनाया. यानी चीन का उत्पादन अमेरिका से पांच गुना ज्यादा है. पिछले साल दुनिया में जितनी भी दुर्लभ धातुएं बनीं, उसका 70% हिस्सा चीन से आया था. यह आंकड़ा यूएस जियोलॉजिकल सर्वे की रिपोर्ट से लिया गया है.
चीन न सिर्फ इन धातुओं को बनाता है, बल्कि इन्हें दुनिया भर में बेचता भी है. अमेरिका अपनी जरूरत का 70% हिस्सा चीन से ही लेता है. बाकी हिस्सा मलेशिया, जापान और एस्टोनिया जैसे देशों से आता है. 2024 में अमेरिका ने इन धातुओं का 170 मिलियन डॉलर का आयात किया. यह जानकारी यूएस जियोलॉजिकल सर्वे की जनवरी 2025 की रिपोर्ट में दी गई है.
चीन के अलावा कुछ और देश भी इन धातुओं को बनाते हैं, लेकिन उनकी मात्रा बहुत कम है. 2024 में भारत ने 2,900 टन दुर्लभ धातुएं बनाईं. ऑस्ट्रेलिया और थाईलैंड ने 13,000-13,000 टन बनाया. यह चीन के मुकाबले बहुत कम है. भारत में भी इन धातुओं का खनन होता है, लेकिन अभी उनकी मात्रा बहुत कम है.
चीन ने सात धातुओं पर लगाई रोक
अमेरिका 2020 से 2023 तक अपनी जरूरत का 70% हिस्सा चीन से लेता रहा. इसके बाद मलेशिया से 13%, जापान से 6% और एस्टोनिया से 5% हिस्सा आया. बाकी 6% दूसरे देशों से लिया गया. लेकिन अब चीन की रोक के बाद अमेरिका और बाकी देशों को मुश्किल हो सकती है.
चीन का यह कदम बहुत बड़ा है. ये धातुएं हमारी जिंदगी का हिस्सा हैं. इनके बिना फोन, गाड़ियां, बल्ब, हवाई जहाज और दवाइयां बनाना मुश्किल हो जाएगा. इन धातुओं के निर्यात पर रोक के जरिए चीन ने अपनी ताकत दिखाने की कोशिश की है कि वह दुनिया को अपनी शर्तों पर चला सकता है. यह व्यापारिक जंग का नया तरीका है. अगर दूसरे देशों ने जल्दी इन धातुओं का दूसरा रास्ता नहीं ढूंढा, तो कई उद्योगों पर असर पड़ेगा.
भारत जैसे देशों के लिए यह एक मौका भी हो सकता है. अगर हम अपने खनन को बढ़ाएं, तो दुनिया में अपनी जगह बना सकते हैं. लेकिन अभी के लिए चीन का दबदबा साफ दिख रहा है. आने वाले दिनों में देखना होगा कि दुनिया इस चुनौती से कैसे निपटती है.
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