नई दिल्ली: राम मंदिर में होने वाली रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के लिए पूरा देश उत्साह के साथ तैयार है. हालांकि, ये उत्साह कहीं न कहीं फीका भी नजर आ रहा है. इसकी वजह ये है कि देश के चार शंकराचार्य इसमें शामिल नहीं हो रहे हैं. ज्योतिर्मठ के वर्तमान जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कहा कि चारों शंकराचार्य प्राण प्रतिष्ठा आयोजन में शामिल नहीं होंगे. उन्होंने ये भी बताया है कि आखिर क्यों शंकराचार्यं की तरफ से प्राण प्रतिष्ठा में शामिल होने का फैसला नहीं किया गया है.
‘द वायर’ को दिए एक इंटरव्यू में स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने बताया है कि किस तरह से 22 जनवरी को होने वाली प्राण प्रतिष्ठा शास्त्रों के खिलाफ है. इंटरव्यू के दौरान जब उनसे सवाल किया गया कि आपने 22 जनवरी होने वाली प्राण प्रतिष्ठा में जाने से इनकार क्यों कर दिया है, क्या आपको इस कार्यक्रम में शामिल होने का निमंत्रण नहीं मिला है?
इसके जवाब में शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कहा कि मैंने किसी भी निमंत्रण से इनकार नहीं किया है. सच्चाई ये है कि हमें अभी तक निमंत्रण नहीं दिया गया है. इस वजह से हमारे ऊपर इस बात का कोई भी आरोप नहीं लगाया जा सकता है कि हमने निमंत्रण को ठुकराया है. उन्होंने कहा कि राम जन्मभूमि के लिए हमने अपना कर्तव्य पूरा किया है और हम इससे संतुष्ट हैं.
अशास्त्रीय चीज को नहीं कर सकते स्वीकार: शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद
स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कहा कि अगर हमें निमंत्रण मिला भी होता तो हम वहां पर नहीं जाते. उन्होंने बताया कि हम वहां इसलिए नहीं जा सकते हैं, क्योंकि अगर शंकराचार्यों के सामने कोई चीज अशास्त्रीय होती है, तो उसे स्वीकार नहीं किया जा सकता है. स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा कि हम लोग चाहते हैं कि जो भी कार्य हो, वो शास्त्रों के मुताबिक ही हो. भगवान ने भी कहा है कि चीजें शास्त्रों के मुताबिक होनी चाहिए और सभी विधियों का पालन होना चाहिए.
क्यों शंकराचार्य ने प्राण प्रतिष्ठा को बताया शास्त्रों के विरुद्ध?
वहीं, जब शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद से सवाल किया गया कि अब तक राम मंदिर पूरी तरह से तैयार नहीं हुआ है. यहां तक कि मंदिर का शिखर भी बनकर तैयार नहीं हुआ है. क्या शास्त्र अधूर मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा करने से मना करते हैं? इस सवाल का जवाब देते हुए स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद ने कहा, ‘हमारे सभी शास्त्रों में ये बात कही गई है कि मंदिर भगवान का शरीर होता है. प्राण प्रतिष्ठा मूर्ति में नहीं होती है, बल्कि ये मंदिर में होती है. मंदिर जो है, वो दैवीय रूप है, यानि वह भगवान का शरीर है. मूर्ति जो है वो आत्मा है. शास्त्रों की दृष्टि से मंदिर ही भगवान का शरीर है.’
उन्होंने आगे बताया, ‘शास्त्रों में बताया गया है कि कलश भगवान का सिर होता है. अभी तक शिखर ही नहीं बना है. शिखर को भगवान की आंखें बताया गया है. जिस तरह से हमारे शरीर में सिर से लेकर पैर तक अंग होते हैं, उसी तरह से मंदिर में भगवान के अंग की कल्पना की गई है. उन अलग-अलग अंगों की प्रतिष्ठा होती है. मंदिर के इन अंगों में से अभी तक आंख, मुंह, सिर बना ही नहीं है. जब मंदिर का शिखर बनेगा तो उसके ऊपर कलश चढ़ेगा. अभी सिर बना ही नहीं है और आप प्राण प्रतिष्ठा कर रहे हैं. ये कोई सामान्य गलती नहीं है.’
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