नई दिल्ली। अपने पसंदीदा वकीलों को जज बनाने के लिए केरल हाईकोर्ट ने सिलेक्शन प्रोसेस को ही बदल डाला। मामले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। हालांकि सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने हाईकोर्ट के फैसले को गलत करार दिया लेकिन उन जजों के खिलाफ कोई एक्शन नहीं लिया जो इस प्रक्रिया के तहत ही चुने गए थे। संवैधानिक बेंच का कहना था कि अगर हम इन जजों को हटाते हैं तो उसके कई गलत परिणाम होंगे। इनमें सबसे अहम ये है कि न्यायपालिका को अनुभवी जजों से वंचित होना पड़ेगा। लिहाजा उन जजों को हटाकर दूसरों को नियुक्त करना गलत होगा।
हाईकोर्ट ने 1961 के कानून से ही कर दिया खिलवाड़
संवैधानिक बेंच में सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ के साथ जस्टिस ऋषिकेश रॉय, जस्टिस पीएस नरसिम्हा, जस्टिस पंकज मित्तल और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल हैं। बेंच उन 11 कैंडिडेट्स की याचिका पर सुनवाई कर रही थी जो 2017 के सिलेक्शन प्रोसेस में जज बनने के दावेदार थे। इनका कहना था कि केरल हाईकोर्ट ने 1961 के नियमों के तहत बार से जज बनने की प्रक्रिया में शामिल होने वाले कैंडिडेट्स को रिटन एग्जाम के साथ वाइवा फेस करना होगा। लेकिन हाईकोर्ट के प्रशासनिक तंत्र ने ऐन वक्त पर नियम बदल डाले। इसकी सूचना भी नहीं दी गई।
वाइवा के लिए अलग से एक कट ऑफ सिस्टम बना दिया
हाईकोर्ट ने वाइवा के लिए अलग से एक कट ऑफ सिस्टम बना दिया। हालांकि हाईकोर्ट के एडमिनिस्ट्रेशन ने जो नियम बदला उसकी अनुमति न तो 1961 का कानून कहता है और न ही 2015 को जारी किए गए नोटिफिकेशन में इसका कोई जिक्र था। सीजेआई की बेंच ने माना कि हाईकोर्ट ने जो कुछ किया वो सरासर गलत है। ऐन वक्त पर वाइवा के नंबरों को जोड़कर सिलेक्शन प्रोसेस को फाइनल कर दिया गया। इसकी वजह से कुछ ऐसे उम्मीदवार जज नहीं बन सके जिनका परफारमेंस रिटन एग्जाम में काफी अच्छा था। लेकिन सीजेआई का कहना था कि 2017 में भरती हुए जजों को हटाना भी कोई समझदारी नहीं होगी।
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