चंडीगढ़। हरियाणा विधानसभा चुनाव (Haryana Assembly Elections) के नतीजे कांग्रेस (Congress) के साथ ही चुनावी पंडितों तक को चौंकाने वाले हैं। राज्य की 90 असेंबली सीटों (90 assembly seats) में से भाजपा 48 पर जीती है और कांग्रेस 37 पर ही अटक गई है। भाजपा को 10 साल की सत्ता के बाद भी इस तरह का बहुमत मिलना हैरान करने वाला है। वहीं कांग्रेस के लिए करारा झटका है, जो किसान, जवान और पहलवान का नारा देते हुए विजयश्री की ओर बढ़ना चाहती थी। अब राजनीतिक विश्लेषक इस हार के कारण और मायने निकाल रहे हैं। कांग्रेस की इस पराजय की एक वजह अकेले भूपिंदर सिंह हुड्डा गुट (Bhupinder Singh Hooda group) को ही कमान देना और फिर टिकट बंटवारे में जाटों को तवज्जो देना है।
कांग्रेस के लिए ये नतीजे इतना बड़ा झटका हैं कि जयराम रमेश (Jairam Ramesh) ने कहा कि हम ऐसे रिजल्ट को स्वीकार नहीं कर सकते। इसकी शिकायत की जाएगी। वहीं राजनीतिक जानकार मानते हैं कि अति आत्मविश्वास, एक ही नेता पर निर्भरता और जाट समुदाय को ही ज्यादा तवज्जो देना भी इस परिणाम की वजह है। दरअसल कांग्रेस ने कुल 89 टिकट दिए थे, जिनमें से 28 जाट समुदाय के लोगों को मिले। वहीं भाजपा ने 16 कैंडिडेट ही जाट उतारे। भाजपा की ओर से जाट बाहुल्य सीटों पर उनको प्राथमिकता दी गई, लेकिन जहां गुर्जर, सैनी, कश्यप, यादव जैसी अन्य ओबीसी जातियों के वोट अच्छी संख्या में थे। वहां उनको ही महत्व मिला।
इसके अलावा जाट बिरादरी से ही आने वाले भूपिंदर सिंह हुड्डा को ही प्रचार की कमान मिली। वह टिकट बंटवारे में भी हावी दिखे और कहा जाता है कि सूबे में 72 उम्मीदवार उनकी पसंद के तय किए गए। वहीं भाजपा ने इसके बरक्स एक तरफ नायब सिंह सैनी को प्रमोट किया, जो खुद सैनी समाज के हैं। इसके अलावा प्रदेश अध्यक्ष मोहन लाल बड़ौली को बनाया, जो ब्राह्मण हैं। यदि जातिवार देखें तो हरियाणा में जाटों के बाद ब्राह्मणों की अच्छी आबादी है। इसलिए सैनी, ब्राह्मण को साध लिया। वहीं कृष्णपाल गुर्जर, सुभाष बराला, ओमप्रकाश धनखड़, कैप्टन अभिमन्यु समेत अन्य सभी नेताओं को भी प्रमुखता दी।
सैनी को रखा आगे और खट्टर से थोड़ी दूरी, हो गई मंशा पूरी
इससे भाजपा ने एक तरफ जाटों का बहुत ज्यादा ध्रुवीकरण भी नहीं होने दिया और अन्य जातियों को साधे रखा। अहम बात यह थी कि नायब सिंह सैनी को पूरे प्रचार में आगे रखा गया और वह किसी भी विवाद में पड़े बिना काम करते रहे। यह भी उनके पक्ष में गया, जबकि जिन खट्टर से नाराजगी की बात कही जा रही थी। उन्हें भाजपा ने प्रचार अभियान से थोड़ा दूर रखा। इस तरह ऐंटी-इनकम्बैंसी की काट की तो सामाजिक गोलबंदी पर भी पूरा ध्यान दिया। इसके अलावा अहीरवाल बेल्ट में भी भाजपा को मिले समर्थन ने रही-सही कसर पूरी कर दी।
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