चंडीगढ़ । पूर्व केंद्रीय मंत्री कुमारी सैलजा (Former Union Minister Kumari Sailja) ने कहा कि हरियाणा की भाजपा सरकार (Haryana’s BJP Government) किसानों को परेशान करने का (To Harass Farmers) कोई मौका नहीं छोड़ रही (Is not leaving any Opportunity) । सरसों की खरीद जल्द शुरू करने का किसानों को फायदा ही नहीं पहुंच पाया, क्योंकि मंडियों में खरीद को लेकर न तो किसी तरह की तैयारी ही की गई और न ही इंतजाम मुकम्मल किए गए। इसी के चलते 12 जिलों में से 8 में तो एक भी दाना नहीं खरीदा जा सका।
मीडिया को जारी बयान में कुमारी सैलजा ने कहा कि भाजपा की प्रदेश सरकार के लिए इससे अधिक शर्म की कोई बात हो ही नहीं सकती है, कि वह अपनी घोषणा के अनुरूप खरीद को शुरू नहीं करवा सकी। 4 जिलों में सरसों का एक भी दाना न खरीदे जाने से साफ है कि सिर्फ घोषणा तक सरकार सीमित थी, धरातल पर कोई तैयारी ही नहीं थी। इससे पता चलता है कि राज्य सरकार का मकसद किसी न किसी बहाने से किसानों को परेशान करने का है।
पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहाकि जिन मंडियों में किसान सरसों की फसल लेकर पहुंच रहे हैं, वहां भाजपा की पोर्टलबाजी उनके लिए नुकसानदायक साबित हो रही है। उनके द्वारा मेरी फसल मेरा ब्यौरा पोर्टल पर डाला गया डेटा मैच ही नहीं हो रहा। इसकी वजह से मंडी के गेट पास जारी नहीं हो रहे और मजबूरी में किसानों को अपनी फसल औने-पौने दामों को ओपन मार्केट में व्यापारियों को बेचनी पड़ रही है। जिससे एमएसपी के मुकाबले दाम कम मिल रहे हैं और किसानों को आर्थिक नुकसान सहन करना पड़ रहा है।
कुमारी सैलजा ने कहा कि कुछ जिलों में राज्य सरकार ने खरीद एजेंसियों को किसानों से प्रति एकड़ 8 क्विंटल सरसों खरीदने की हिदायत दी हुई है, जबकि कुछ जिलों में यह लिमिट 06 क्विंटल प्रति एकड़ ही तय की हुई है। इससे लोगों में रोष है। सरसों के लिए जिन 12 जिलों में खरीद होनी है, उन सभी में 8 क्विंटल प्रति एकड़ के हिसाब से ही एमएसपी पर खरीद की जानी चाहिए।
पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कहा कि जिस किसी भी कारण से किसान अपनी फसल को निजी व्यापारियों को बेचने को मजबूर हों, लेकिन उन्हें एमएसपी से कम भुगतान मिलने की सुध भाजपा सरकार को लेनी चाहिए। इसके लिए भावांतर स्कीम के तहत अभी तक बिक चुकी सरसों के दाम के अंतर का भुगतान किसानों के खातों में तुरंत डालना चाहिए। इसके साथ ही सभी मंडियों में साफ-सफाई व किसानों के ठहरने का इंतजाम करना चाहिए, ताकि उन्हें फसल बेचने में दिक्कत का सामना न करना पड़े।
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