नई दिल्ली। हरियाणा विधानसभा चुनाव (Haryana Assembly elections) में अब दो सप्ताह से भी कम का वक्त बचा है। उससे पहले 10 साल की ऐंटी-इनकम्बैंसी (Anti-incumbency.) का सामना कर रही भाजपा (BJP) ने कमर कस ली है। एक तरफ भाजपा ने आरएसएस से इस चुनाव में मदद मांगी है और पन्ना प्रमुख वाला अभियान तेज करने का फैसला लिया है। पन्ना प्रमुख की रणनीति में आरएसएस के काडर से सहयोग की अपेक्षा है। वहीं नमो ऐप के जरिए भी बूथ लेवल के कार्यकर्ताओं को ऐक्टिव करने की कोशिश है। दरअसल यह पूरी कवायद इसलिए तेज है क्योंकि सूबे की करीब 20 ऐसी सीटें हैं, जिन पर भाजपा को गेम पलटने की उम्मीद है।
इन सीटों पर कोई भी अपनी जीत का दावा करने की स्थिति में नहीं है। इन सीटों पर मुकाबला त्रिकोणीय है या बहुकोणीय (Triangular or Polygonal) है। निर्दलीय भी कई सीटों पर बेहद मजबूत स्थिति में हैं। ऐसे में कांग्रेस (Congress) इन सीटों को लेकर टेंशन में है और भाजपा इसे अपने लिए एक मौके के तौर पर देख रही है। इन सीटों में हिसार, सिरसा, कुरुक्षेत्र आदि शामिल हैं। ऐसे में भाजपा को लग रहा है कि वोटों के बंटवारे के बीच यदि अपने काडर को मजबूती से ऐक्टिव कर दिया जाए तो उसे बढ़त मिल सकती है। इसीलिए संघ के साथ समन्वय स्थापित कर काम करने की रणनीति बन रही है। अगले 10 दिनों में पन्ना प्रमुख की रणनीति पर काम करते हुए गली-गली और गांव-गांव तक जाने का प्लान है।
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मोहन लाल बड़ौली का भी कहना है कि हमारी पार्टी जमीनी कार्यकर्ताओं वाली है। बड़ी संख्या ऐसे लोगों की है, जो निस्वार्थ सहयोग करते हैं। ऐसे में उन लोगों से अपील की जाएगी कि वे आगे आएं और चुनाव में पार्टी की मदद करें। मेरा बूथ सबसे मजबूत का नारा दिया जाएगा और पन्ना प्रमुख की रणनीति के साथ आगे बढ़ा जाएगा। दरअसल भाजपा नेतृत्व को लगता है कि बड़ी संख्या में संघ के कार्यकर्ता लोकसभा चुनाव में निष्क्रिय थे और अब यदि उनकी मदद मिल जाए तो स्थिति बदल भी सकती है।
कहा जा रहा है कि आरएसएस ने भी लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा से समन्वय में कमी की शिकायत की थी। ऐसे में अब भाजपा नेतृत्व ने चुनाव में आरएसएस को साथ लेकर आगे बढ़ने का फैसला लिया है। पिछले महीने इसे लेकर कुछ बैठकें भी हुई हैं। यही नहीं अंबाला समेत कई जगहों पर ऐसे लोगों को टिकट मिले हैं, जो आरएसएस बैकग्राउंड के रहे हैं। यहां तक कि पार्टी ने 40 नए चेहरे चुनाव में उतारे हैं। ऐसे तमाम कैंडिडेट हैं, जिनका पूरा प्रचार ही आरएसएस से जुड़े लोगों ने संभाल रखा है।
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