हिंदू पंचांग के अनुसार भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हरतालिका तीज मनाई जाती है। विवाहित महिलाओं के लिए ये दिन बहुत मायने रखता है। इस दिन हर सुहागिन भगवान शिव और माता पार्वती की आराधना करती हैं। हिन्दू धर्म (Hindu religion) के सभी व्रतों में हरतालिका व्रत को सबसे कठिन इसलिए माना गया है क्योंकि यह निर्जला और निराहार किया जाता है. अगले दिन पूजा (worship) के बाद ही महिलाएं अपने व्रत का पारण करती हैं।
हरतालिका तीज 2021 मुहूर्त
हरतालिका तीज 9 सितंबर (गुरुवार)
प्रातःकाल मुहूर्त- 06:02:40 से 08:32:55 तक
प्रदोष काल मुहूर्त- 18:33:51 से 20:51:43 तक
हरतालिका तीज का धार्मिक महत्व
हरतालिका तीज का व्रत सुहागिन महिलाएं (married women) अपने पति की लंबी उम्र की कामना के लिए करती हैं। हालांकि इस व्रत से जुड़े कई अहम नियम और सावधानियां भी होती हैं, जिनका पालन अनिवार्य बताया गया है। इसके अलावा कुंवारी कन्याएं भी इस दिन का व्रत करती हैं जिससे उन्हें सुयोग्य और मनचाहा पति मिल सके। हरतालिका तीज का सबसे अहम नियम है कि यह व्रत निर्जला (anhydrous) और निराहार रखना होता है। इस व्रत के अगले दिन ही व्रती को खाने-पीने की अनुमति होती है। इसके अलावा जिस किसी ने भी एक बार हरतालिका व्रत शुरू कर दिया उसे बीच में कभी भी यह व्रत छोड़ना नही होता है। प्रत्येक वर्ष नियमपूर्वक इस व्रत को करना अनिवार्य है। मुमकिन हो तो हरतालिका व्रत के दिन रात में सोना नहीं चाहिए। इस दिन बहुत से लोग रात्रि जागरण करते हैं।
हरतालिका तीज पूजन विधि
कहते हैं कोई भी पूजा तभी फलित होती है जब उसे सही विधि से किया जाए। आइए जानते हैं कि हरतालिका तीज की सही पूजन विधि क्या होती है-
-इस दिन की पूजा के लिए महिलाएं हाथों से रेत और मिट्टी की मदद से भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश की प्रतिमा बनाती हैं।
-इसके बाद पूजा वाली जगह को साफ़ करके वहां साफ़ चौकी स्थापित की जाती है जिसपर केले के पत्ते रखें और फिर इस पर मिट्टी के शिव, पार्वती और भगवान गणेश (Lord Ganesha) को स्थापित कर दें। भगवानों को फूल अर्पित करें।
-इसके बाद भगवान शिव (Lord Shiva), माता पार्वती और भगवान गणेश का षोडशोपचार विधि से पूजन करें।
-इस दिन की पूजा में मां पार्वती (Maa Parvati) को सुहाग का पिटारा और भगवान शिव को धोती और अंगोछा अवश्य चढ़ाएं।
-पूजा के बाद सुहाग का पिटारा अपनी सास के चरण स्पर्श करने के बाद इसे किसी ब्राहम्ण को दान कर दें।
-इस दिन से संबंधित व्रत कथा अवश्य सुनें और रात्री जागरण करें।
-अगले दिन पूजा करें और उसके बाद मां पार्वती को सिन्दूर चढ़ाने के बाद कुछ हल्का भोजन करके अपना व्रत खोल लें।
नोट- उपरोक्त दी गई जानकारी व सूचना सामान्य उद्देश्य के लिए दी गई है। हम इसकी सत्यता की जांच का दावा नही करतें हैं यह जानकारी विभिन्न माध्यमों जैसे ज्योतिषियों, धर्मग्रंथों, पंचाग आदि से ली गई है । इस उपयोग करने वाले की स्वयं की जिम्मेंदारी होगी ।
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