– योगेश कुमार गोयल
हिन्दू पंचांग के अनुसार हनुमान जन्मोत्सव चैत्र मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है और इस वर्ष यह 16 अप्रैल को मनाया जा रहा है। हालांकि देश के कुछ हिस्सों में इसे कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को भी मनाया जाता है। वैसे हनुमान जन्मोत्सव साल में दो बार मनाया जाता है। पहला हिन्दू कैलेंडर के अनुसार चैत्र शुक्ल पूर्णिमा को और दूसरा कार्तिक कृष्ण चतुर्दशी अर्थात नरक चतुर्दशी को। कुछ मान्यताओं के अनुसार चैत्र पूर्णिमा को प्रातःकाल में एक गुफा में हनुमानजी का जन्म हुआ था जबकि वाल्मिकी रचित रामायण के अनुसार हनुमानजी का जन्म कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष चतुर्दशी को हुआ था।
मान्यता है कि चैत्र पूर्णिमा के दिन हनुमानजी सूर्य को फल समझकर खाने के लिए दौड़ पड़े थे और एक ही छलांग में उन्होंने सूर्यदेव के पास पहुंचकर उन्हें पकड़ कर अपने मुंह में रख लिया था। जैसे ही नटखट हनुमान ने सूर्य को मुंह में रखा, तीनों लोकों में हाहाकार मच गया। इसी तिथि को विजय अभिनन्दन महोत्सव के रूप में भी मनाया है। एक मान्यता के अनुसार कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी के दिन हनुमानजी की भक्ति और समर्पण से प्रसन्न होकर माता सीता ने उन्हें अमरता का वरदान दिया था।
आजन्म ब्रह्मचारी हनुमानजी को भगवान महादेव का 11वां अवतार अर्थात् रूद्रावतार भी माना जाता है और हिन्दू धर्म में हनुमान जन्मोत्सव का विशेष महत्व है। महर्षि वाल्मीकि जी ने रामायण में उन्हें विशिष्ट पंडित, राजनीति में धुरंधर और वीर-शिरोमणि कहा है। बजरंग बली हनुमान को कलियुग में कलियुग के राजा की उपाधि प्राप्त है। भक्तजन हनुमान जी को प्रसन्न करने के लिए पूरे विधि-विधान से उनकी पूजा-अर्चना करते हुए व्रत भी रखते हैं, जगह-जगह भव्य शोभायात्राएं भी निकाली जाती हैं। इस अवसर पर हनुमान चालीसा, सुंदरकांड तथा हनुमान आरती का पाठ करना शुभ माना जाता है।
मान्यता है कि इस दिन जो भक्तजन हनुमानजी की भक्ति और दर्शन करते हुए व्रत रखते हैं, उन्हें हनुमानजी का आशीष प्राप्त होता है और उनके जीवन में किसी तरह का कोई संकट नहीं आता। दरअसल समस्त ब्रह्मांड में एकमात्र हनुमानजी ही ऐसे देवता माने जाते हैं, जिनकी भक्ति से हर प्रकार के संकट तुरंत हल हो जाते हैं और इसीलिए हनुमानजी को संकटमोचक भी कहा गया है। यह भी मान्यता है कि हनुमानजी की पूजा जीवन में मंगल लेकर आती है, इसीलिए उन्हें मंगलकारी कहा गया है।
शक्ति, तेज और साहस के प्रतीक देवता माने गए हनुमानजी को सभी देवताओं ने वरदान दिए थे, जिससे वह परम शक्तिशाली बने थे। वाल्मीकि रामायण के अनुसार बचपन में हनुमान ने जब सूर्यदेव को फल समझकर अपने मुंह में रख लिया था तो पूरी सृष्टि में हाहाकार मच गया। तब घबराकर देवराज इंद्र ने पवनपुत्र हनुमान पर अपने वज्र से प्रहार किया, जिसके बाद हनुमान बेहोश हो गए। यह देख पवनदेव ने क्रोधित होकर समस्त संसार में वायु का प्रवाह रोक दिया, जिससे संसार में हाहाकार मच गया। तब परमपिता ब्रह्मा हनुमान की बेहोशी दूर कर उन्हें होश में लाए। उसके बाद सभी देवताओं ने दिल खोलकर उन्हें वरदान दिए।
सूर्यदेव ने उन्हें अपने प्रचण्ड तेज का सौवां भाग देते हुए कहा कि जब इस बालक में शास्त्र अध्ययन करने की शक्ति आएगी, तब मैं ही इसे शास्त्रों का ज्ञान दूंगा, जिससे यह अच्छा वक्ता होगा और शास्त्रज्ञान में इसकी बराबरी करने वाला कोई नहीं होगा। परमपिता ब्रह्मा ने उन्हें दीर्घायु, महात्मा और सभी प्रकार के ब्रह्मदण्डों से अवध्य होने, इच्छानुसार रूप धारण करने, जहां चाहे वहां जा सकने, अपनी गति को अपनी इच्छानुसार तीव्र या मंद करने का वरदान दिया। देवराज इंद्र ने कहा कि यह बालक मेरे वज्र द्वारा भी अवध्य रहेगा और देव शिल्पी विश्वकर्मा ने भी उन्हें चिंरजीवी तथा अपने बनाए सभी शस्त्रों से अवध्य रहने का वर प्रदान किया। ऐसे ही वरदान उन्हें भगवान शिव, कुबेर, जलदेवता वरूण, यमराज इत्यादि ने भी दिए। इन्द्र का वज्र बालक मारुति की हनु (ठोडी) पर लगा था, जिससे उनकी ठोडी टूट गई थी, इसीलिए उन्हें हनुमान कहा जाने लगा।
जिस प्रकार भगवान शिव के शिवालय नंदी के बगैर अपूर्ण माने जाते हैं, उसी प्रकार हनुमानजी की उपस्थिति के बिना रामदरबार अपूर्ण रहता है। परम रामभक्त हनुमानजी के करीब 108 नाम बताए जाते हैं, जिनमें से कुछ काफी प्रचलित हैं और माना जाता है कि इन नामों को जपने से हर तरह के संकट दूर हो जाते हैं। हनुमानजी का बचपन का नाम मारूति था, जो उनका वास्तविक नाम माना जाता है। उनकी माता का नाम अंजना तथा पिता का केसरी था, इसलिए उन्हें अंजनी पुत्र या आंजनेय तथा केसरीनंदन भी कहा जाता है। उन्हें वायु देवता का पुत्र भी माना जाता है, इसीलिए इनका नाम पवन पुत्र तथा मारुति नंदन भी हुआ। उन्हें भगवान शंकर का पुत्र अर्थात् रुद्रावतार भी माना जाता है, इसलिए एक नाम शंकरसुवन भी है। वज्र धारण करने और वज्र के समान कठोर और बलशाली होने के कारण उन्हें बजरंगबली कहा जाने लगा। पातल लोक में अहिरावण की कैद से राम, लक्ष्मण को मुक्त कराने तथा अहिरावण का वध करने के लिए हनुमानजी ने पंचमुखी रूप धारण किया, इसलिए उन्हें पंचमुखी हनुमान भी कहा जाता है।
दरअसल अहिरावण ने मां भवानी के लिए पांच दिशाओं में पांच जगहों पर पांच दीपक जलाए थे। उसे वरदान मिला था कि इन पांचों दीपकों को एक साथ बुझाने पर ही उसका वध हो सकेगा। इसीलिए हनुमानजी ने उत्तर दिशा में वराह मुख, दक्षिण दिशा में नरसिंह मुख, पश्चिम में गरुड़ मुख, आकाश की ओर हयग्रीव मुख एवं पूर्व दिशा में हनुमान मुख धारण कर पंचमुखी मुख से पांचों दीप एक साथ बुझाकर अहिरावण का वध किया था।
वे भगवान श्रीराम का हर कार्य करने वाले दूत की भूमिका निभाने के कारण रामदूत भी कहलाए। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार उनके ऐसे ही 12 नामों हनुमान, अंजनीसूत, पवनपुत्र, महाबल, रामेष्ट, सीताशोकविनाशन, लक्ष्मणप्राणदाता, दशग्रीवदर्पहा, उदधिक्रमण, अमितविक्रम, पिंगाक्ष, फाल्गुनसख का निरंतर जप करने वाले व्यक्ति की हनुमानजी दसों दिशाओं एवं आकाश-पाताल से रक्षा करते हैं।
धार्मिक ग्रंथों के अनुसार धर्म की स्थापना और रक्षा का कार्य चार लोगों के हाथों में है, दुर्गा, भैरव, हनुमान और कृष्ण। मान्यता है कि हनुमानजी को धर्म की रक्षा के लिए अमरता का वरदान मिला था और इसी वरदान के कारण आज भी हनुमानजी जीवित हैं तथा प्रभु श्रीराम के भक्तों तथा धर्म की रक्षा में लगे हैं। वे आज भी धरती पर विचरण करते हैं और कलियुग के अंत तक अपने शरीर में ही रहेंगे। हनुमानजी अपार बलशाली और वीर हैं, उनका कोई सानी नहीं है। हनुमान चालीसा में उनका गुणगान करते हुए कहा गया है कि चारों युगों में हनुमानजी के प्रताप से ही सम्पूर्ण जगत में उजियारा है।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।)
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