नई दिल्ली (New Delhi)। भगवान हनुमान का जन्म कर्नाटक के किष्किंधा में एक पर्वत पर हुआ था. इस पर्वत की एक शिला दूर से देखने पर उनके चेहरे जैसी आकृति बनाती है. यहां जाने वाला हर शख्स इसे देखकर चमत्कार ही समझता है. इस पर्वत पर ऊपर चढ़ने पर एक मंदिर है. जहां हनुमानजी का जन्म बताया जाता है. यहां हमेशा अखंड कीर्तन चलता रहता है, ये पूरा इलाका बहुत सुंदर है. इसी इलाके में भगवान राम ने सीताहरण के बाद कुछ समय गुजारा था.
ये वो जगह भी है जहां वानरों की राजधानी हुआ करती थी. इसे हम दण्डकारण्य भी कहते हैं. मनोरम स्थान. इस पर्वत जहां हनुमानजी का जन्म हुआ, उसको अंजनी पर्वत के नाम से जानते हैं.
ये वो जगह भी है, जहां दक्षिण भारत की पवित्र नदी तुंगभद्रा यानि पम्पा पहाड़ियों के बीच बल खाते हुए पूरे इलाके को खूबसूरत नजारे में बदल देती है. यहां अलौकिक पहाड़ियां हैं. दूर तक फैले हुए धान के खेत. केले के बाग और जिधर देखो उधर नारियल के पेड़ों का झुंड. यहां आने पर हवा मोहक अंदाज में आपके कानों में अलग सा संगीत घोलती है. इसे किष्किंधा कहते हैं. जो कर्नाटक के बेल्लारी जिले में है. जिसके पड़ोस में एक और दर्शनीय स्थल हम्पी है, जो महान प्रतापी राजा श्रीकृष्णदेवराय की राजधानी थी.
खूबसूरत किष्किंधा
किष्किंधा के पूरे रास्ते में आपको पहाड़ियां दिखती हैं. हरे-भरे खेत और नारियल से लदे-फदे वृक्ष. इस इलाके की ग्रेफाइट चट्टानें भी ऐसी विशेष हैं कि पूरे देश में उनकी मांग है.
सबसे पहले रामायण में हुई किष्किंधा की चर्चा
किष्किंधा की चर्चा काफी विस्तार से बाल्मीकी रामायण में की गई है. सीताजी की तलाश में जब राम इस इलाके में पहुंचे तो बरसात की ऋतु शुरू हो चुकी थी. अब कोई चारा नहीं था कि राम और लक्ष्मण इसी दंडकारण्य में समय बिताएं. दंडकारण्य में ही उन्होंने एक गुफा में शरण ली.
कभी ये सुग्रीव और बाली की नगरी थी
फिर कुछ महीने एक मंदिर में रुके. यहीं उनकी मुलाकात दंडकारण्य में हनुमान से हुई. प्राचीन भारत में ये सुग्रीव और बाली जैसे ताकतवर वानरों की नगरी थी. आज भी यहां बड़ी संख्या में वानर दिखते हैं. हर तरह के वानर ललमुंहे और काले मुंह वाले दोनों. यहां के वानरों और वासिंदों के बीच अजीब दोस्ती भी देखने को मिलती है.
ब्रह्म सरोवर भी है यहां
यहां की दो बातें लोगों को बड़ी संख्या में यहां आकर्षित करती हैं-पहली है अंजनि पर्वत, जहां पवनसुत हनुमान का जन्म हुआ और दूसरा अंजनी पर्वत के करीब स्थित ब्रह्म सरोवर, जो काफी पवित्र माना जाता है. गुजरात और महाराष्ट्र से यहां काफी तादाद में लोग पर्यटक बसों में आते हैं.
कैसा अंजनी पर्वत
अंजनी पर्वत एक ऊंचा पहाड़ है. यही हनुमान जी की जन्मस्थली है. पहाड़ के ऊपर हनुमान जी का एक मंदिर है, जहां अखंड पूजा चलती रहती है. लगातार हनुमान चालीसा पढ़ी जाती रहती है. ये मत सोचिए कि इस मंदिर तक पहुंचना आसान है. शायद ये मुश्किल ही इस मंदिर में आकर हनुमान जी के दर्शनों को और खास भी बनाती है
500 से ज्यादा सीढ़ियां
इसके लिए 500 से अधिक सीढियां चढनी होती हैं। ये आसान तो कतई नहीं. सीढियां चढने के दौरान आप पाते हैं कि कई जगहों पर ये सीढियां पहाड़ियों को काटकर बनाई गई हैं तो कई जगह ये पहाड़ की गुफाओं के बीच से गुजरती हैं. सीढियों के साथ ऊपर चढ़ने के दौरान कई बार ऐसी चट्टानें भी मिलती हैं कि उनके बीच से प्रकृति की खूबसूरती का कैनवस दिखता है. ऊपर पहुंचने पर हनुमान मंदिर में दर्शन के दौरान आप एक अलग आनंद से भर उठेंगे.
पहाड़ियां, हरियाली और बलखाती तुंगभद्रा नदी
अंजनि पर्वत पर ऊपर पहुंचने के बाद आप किष्किंधा नगरी का दूर तक विहंगम दृश्य भी देख सकते हैं, जहां कंक्रीट के जंगल नहीं बल्कि पहाड़ियां, हरियाली और उनके बीच गुजरती तुंगभद्रा नदी दिखती है. वैसे अंजनि पर्वत की एक और खासियत है, उसका ऊपरी सिरा बिल्कुल हनुमान जी के चेहरे सरीखा दिखता है.
ब्रह्म सरोवर की खासियत
अंजनि पर्वत के दर्शन के बाद अगर कहीं जाना हो तो पहाड़ियों से घिरे ब्रह्म सरोवर पर जा सकते हैं. जो यहां से बहुत पास है. इसे पंपा सरोवर भी कहते हैं. कहा जाता है कि भगवान ब्रह्मा ने ब्रंह्माड में केवल चार सरोवर बनाए, ये उनमें से एक है. मान्यता है कि यहां नहाने से आप पापों से मुक्ति के साथ ही सीधे मोक्ष पाएंगे. इस सरोवर में पानी कहां से आता है, ये भी आश्चर्य ही है. इसमें हमेशा कमल खिले हुए मिलते हैं.
शबरी कुटिया भी पास ही है
इसी सरोवर से सटी शबरी कुटिया है, जिसने भगवान राम को बेर खिलाए थे. शबरी और राम के प्रसंग को हम सबने खूब सुना है. शबरी कुटिया से सटा देवी लक्ष्मी का मंदिर है.
अब भी है वो गुफा, जिसमें रहता था बाली
बाली जिस गुफा में रहता था, वो गुफा भी आकर्षण का केंद्र होती है. ये अंधेरी लेकिन काफी लंबी चौड़ी गुफा है. जहां एक साथ कई लोग अंदर जा सकते हैं. इसी गुफा से ललकार कर राम ने बाली को निकाला. जब उनके हाथों बाली की मृत्यु हो गई तो सुग्रीव को राजपाट सौंपा.
यहां राम के कई स्मृति चिन्ह
भगवान राम के युग यानी त्रेतायुग में किष्किंधा दण्डक वन का एक भाग होता था, जो विंध्याचल से आरंभ होता था और दक्षिण भारत के समुद्री क्षेत्रों तक पहुंचता था. भगवान श्रीराम को जब वनवास मिला तो लक्ष्मण और पत्नी सीता के साथ उन्होंने इसी दण्डक वन में प्रवेश किया. यहां से रावण ने सीता का अपहरण कर लिया था. श्रीराम सीता को खोजते हुए किष्किंधा में आए. चूंकि राम यहां कई स्थानों पर रहे, लिहाजा यहां उनके कई मंदिर और स्मृति चिन्ह हैं.
ऐश्वर्यशाली नगरी थी किष्किंधा
लगता है कि प्राचीन समय में किष्किंधा काफी ऐश्वर्यशाली नगरी थी, बाल्मीकि रामायण में इसका विस्तार से उल्लेख है. अंश इस प्रकार है- लक्ष्मण ने उस विशाल गुहा को देखा जो कि रत्नों से भरी थी और अलौकिक दीख पड़ती थी. उसके वनों में खूब फूल खिले हुए थे. विविध रत्नों से शोभित और सदाबहार वृक्षों से वह नगरी सम्पन्न थी.
दिव्यमाला और वस्त्र धारण करने वाले सुन्दर देवताओं, गन्धर्व पुत्रों और इच्छानुसार रूप धारण करने वाले वानरों से वह नगरी बड़ी भली दीख पड़ती थी. चन्दन, अगरु और कमल की गन्ध से वह गुहा सुवासित थी. मैरेय और मधु से वहाँ की चौड़ी सड़कें सुगन्धित थीं. इस वर्णन से यह स्पष्ट है कि किष्किंधा पर्वत की एक विशाल गुहा के भीतर बसी हुई थी.
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